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कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में तेजी बनी रही तो भारत की GDP में गिरावट आने का खतरा है.
Indian Economy May Lose 1.7% of GDP : यूक्रेन और रूस के युद्ध का कोई शांतिपूर्ण समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा है, जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में तेजी का दौर आने वाले दिनों में भी जारी रह सकता है. इन हालात का सीधा असर भारत पर पड़ना भी तय ही है, क्योंकि देश को अपनी जरूरतों के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा तेल इंपोर्ट करना पड़ता है. ब्रोकरेज हाउस कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ (Kotak Institutional Equities) का मानना है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में तेजी ऐसे ही बनी रही तो भारत की जीडीपी में काफी गिरावट आने का खतरा है.
रूस से तेल खरीदना कम करेंगे यूरोपीय देश
यूरोप के देश अपनी क्रूड ऑयल की जरूरतों के लिए अब तक काफी हद तक रूस पर निर्भर रहे हैं. लेकिन अब वे रूस से तेल की खरीद घटाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ के मुताबिक जर्मनी ने रूस से कच्चे तेल के इंपोर्ट में जून तक 50 फीसदी की कटौती करने का प्लान तैयार भी कर लिया है. इतना ही नहीं, उसने 2024 के मध्य तक रूस से गैस का आयात पूरी तरह बंद करने की योजना भी बनाई है. रूस से तेल और गैस का आयात करने वाले देशों में जर्मनी, पोलैंड और नीदरलैंड्स सबसे प्रमुख हैं. रूस के क्रूड ऑयल एक्सपोर्ट का करीब आधा हिस्सा यूरोप के OECD में शामिल देश ही खरीदते हैं. रूस के गैस निर्यात का तो करीब तीन-चौथाई हिस्सा इन्हीं देशों को बेचा जाता है. यही नहीं, ब्रोकरेज हाउस के मुताबिक रूस का करीब एक तिहाई कोयला भी यही मुल्क खरीदते हैं.
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ के मुताबिक रूस के कच्चे तेल और गैस का एक बड़ा हिस्सा अगर अंतराष्ट्रीय बाजार से बाहर हो जाएगा, तो दुनिया में इनकी सप्लाई और डिमांड में भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा. ब्रोकरेज हाउस का मानना है कि मौजूदा हालात में यही लगता है कि इस असंतुलन को दूर करने के लिए दूसरे देशों द्वारा रूस के तेल और गैस को खरीदने का विकल्प मौजूद नहीं है. ऐसे में कीमतों में भारी बढ़ोतरी के जरिए मांग में कटौती का नुकसानदेह रास्ता ही बच जाएगा.
युद्ध का भारत पर असर : CAD में इजाफा, विकास दर में कटौती
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ का कहना है कि अगर तेल की कीमतों में तेजी का दौर जारी रहा तो भारत की मुसीबतें और बढ़ेंगी, जिससे देश के व्यापक आर्थिक हालात खराब होने का खतरा है. ब्रोकरेज के मुताबिक अगर क्रूड ऑयल की औसत कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल पर बनी रही, तो देश की अर्थव्यवस्था पर 60 अरब अमेरिकी डॉलर का बोझ पढ़ेगा, जिससे वित्त वर्ष 2021-22 के मुकाबले 2022-23 में देश की जीडीपी में 1.7 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है. कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का असर तीन रूपों में सामने आएगा : (1) जीडीपी में करेंट एकाउंट डेफिसिट (CAD) का अनुपात बढ़ेगा, (2) महंगाई दर बढ़ेगी और (3) विकास दर घटेगी.
इस बीच, सोमवार को भी कोविड 19 के मामलों में बढ़ोतरी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा पॉलिसी रेट्स बढ़ाए जाने की अटकलों के बीच क्रूड ऑयल की कीमतें 5 फीसदी बढ़ गईं. हालांकि पिछले कुछ दिनों में यह कीमतें 139 डॉलर प्रति बैरल के बेहद ऊंचे स्तर से नीचे आई हैं, लेकिन यह अब भी 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चक्कर काट रही हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स का कहना है कि यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर लगाए गए पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण कच्चे तेल की सप्लाई पहले से ही घटी हुई है, ऐस में अगर यूरोपीय यूनियन ने भी रूसी कच्चे तेल की खरीद पर पाबंदी लगा दी, तो हालात और भी बिगड़ सकते हैं.