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लैंसेट ने कोरोना के टीकों के साइड इफेक्ट्स के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. जिसके मुताबिक टीका लगवाने के बाद हर चार में एक शख्स को हल्के साइड इफेक्ट्स का सामना करना पड़ रहा है.
Covishield Vaccine Side effects: दुनिया के जानेमाने हेल्थ जर्नल लैंसेट (Lancet) ने कोरोना की रोकथाम के लिए लगाए जा रहे टीकों के साइड इफेक्ट्स के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक एस्ट्रा-जेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड हो या फाइज़र का टीका, इन्हें लगवाने के बाद हर चार में एक यानी करीब 25 फीसदी लोगों को हल्के साइड इफेक्ट्स का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक इन साइडइफेक्ट्स का असर ज्यादा समय तक नहीं रहता, इसलिए इनसे घबराने की जरूरत नहीं है.
जिन दो वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की चर्चा इस रिपोर्ट में की गई है, उनमें से एस्ट्रा-जेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड के नाम से भारत में बड़े पैमाने पर लगाई जा रही है. अनुमान है कि भारत में अब तक हुए टीकाकरण के दौरान करीब 90 फीसदी टीके कोविशील्ड के ही लगाए गए हैं. फाइज़र की वैक्सीन अब तक तो भारत में अप्रूव नहीं है, लेकिन आने वाले दिनों में इसे भी मंजूरी मिल सकती है.
पहला टीके के बाद होने वाले कॉमन साइड इफेक्ट्स
रिपोर्ट के मुताबिक कोविशील्ड की वैक्सीन लगवाने वाले हर चार में एक शख्स को हल्के साइड इफेक्ट हो रहे हैं. इनमें सिर दर्द, थकान या टीके वाली जगह पर दर्द होना सबसे आम है. इनके अलावा कुछ और आम सिस्टमिक साइड इफेक्ट हैं ठंड या कंपकंपी लगना, डायरिया, बुखार, जोड़ों में तेज़ दर्द, मायेल्जिया यानी गठिया जैसा दर्द और मिचली आना. इनके अलावा टीका लगने वाली जगह गर्म हो जाना या वहां दर्द होना, सूजन, टेंडरनेस यानी छूने से परेशानी होना, लाली, खुजली या बगल की ग्रंथियों में सूजन जैसे लोकल साइड इफेक्ट्स भी देखने को मिल रहे हैं.
एक-दो दिन में ठीक हो जाते हैं ज्यादातर लक्षण
रिपोर्ट में लंदन के किंग्स कॉलेज में हुई रिसर्च के हवाले से बताया गया है कि ज्यादातर सिस्टमिक साइड इफेक्ट यानी टीके वाली जगह को छोड़कर शरीर के बाकी हिस्सों में सामने आने वाले लक्षण, आम तौर पर वैक्सीनेशन के पहले 24 घंटे में पूरी तरह उभरते हैं. रिसर्च के मुताबिक इनमें से ज्यादातर लक्षण एक या दो दिन में ठीक हो जाते हैं.
ट्रायल के मुकाबले कम हो रहे हैं साइड इफेक्ट
रिसर्च के मुताबिक एस्ट्रा-जेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन हो या फाइज़र का टीका, इन दोनों के ही ट्रायल के दौरान साइड इफेक्ट्स का अनुपात कहीं ज्यादा था. यानी बड़ी आबादी को टीका लगाए जाने के बाद साइड इफेक्ट महसूस करने वाले लोगों का जो अनुपात सामने आ रहा है, वह ट्रायल के मुकाबले काफी कम है. यह टीकाकरण करवाने वालों के लिए एक अच्छी खबर है. मिसाल के तौर पर कोविशील्ड के तीसरे चरण के ट्रायल के दौरान पहला टीका लगने के बाद 18 से 55 साल के 88 फीसदी लोगों में सिस्टमिक साइड इफेक्ट्स देखे गए थे, लेकिन ताज़ा स्टडी के दौरान यह अनुपात महज 46.2 फीसदी देखने को मिला.
पहले टीके से कितना घटता है इंफेक्शन का खतरा
स्टडी में यह भी बताया गया है कि एस्ट्रा-जेनेका की बनाई वैक्सीन कोविशील्ड का पहला टीका लगाने के 12 से 21 के भीतर इंफेक्शन रेट 39 फीसदी तक कम हो जाता है. जबकि फाइज़र की वैक्सीन लगवाने पर इतने ही समय के दौरान इंफेक्शन दर 58 फीसदी तक कम हो जाती है. 21 दिन से ज्यादा वक्त गुजर जाने पर इंफेक्शन की दर कोविशील्ड के मामले में 60 फीसदी और फाइज़र की वैक्सीन के मामले में 69 फीसदी तक घट जाती है.
55 साल से कम उम्र के लोगों और महिलाओं में ज्यादा साइड इफेक्ट
लैंसेट में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक साइड इफेक्ट्स के मामले 55 साल से कम उम्र के लोगों और महिलाओं में ज्यादा पाए गए. लेकिन 50 साल और उससे ज्यादा उम्र वालों में यह साइड इफेक्ट्स काफी हल्के देखे जा रहे हैं. इस रिसर्च में मुख्य भूमिका निभाने वाले लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर और वैज्ञानिक टिम स्पेक्टर के मुताबिक यह अच्छी बात है,क्योंकि इसी उम्र के लोगों को इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. रिसर्च के नतीजे 627,383 से ज्यादा लोगों के 8 दिसंबर से 10 मार्च तक के अनुभव पर आधारित हैं.
पहले इंफेक्शन हो चुका है तो साइड इफेक्ट की संभावना अधिक
रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि जिन लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन का पहला टीका लगवाने से पहले कोविड-19 का इंफेक्शन हो चुका था, उन्हें सिस्टमिक साइड इफेक्ट्स होने का अनुपात बाकी लोगों के मुकाबले दो गुने से ज्यादा रहा. ऐसे लोगों को लोकल साइ़ड इफेक्ट होने की आशंका भी ज्यादा रहती है. फाइज़र के टीके के मामले में यह फर्क तीन गुने का है. प्रोफेसर स्पेक्टर का कहना है कि नए रिसर्च से यही पता चलता है कि वैक्सीन लगवाने वालों को घबराने की जरूरत नहीं है. साइड इफेक्ट्स के मामले न सिर्फ ट्रायल के मुकाबले काफी कम हैं, बल्कि ज्यादातर लक्षण एक-दो दिन में ही ठीक हो जाते हैं.