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कोरोना लॉकडाउन का दंश! एक साल बाद भी बरकरार है आजीविका का संकट

CMIE के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2021 में बेरोजगारी की दर 6.9 फीसदी रही, जो पिछले साल इसी महीने में 7.8 फीसदी और मार्च 2020 में 8.8 फीसदी थी.

CMIE के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2021 में बेरोजगारी की दर 6.9 फीसदी रही, जो पिछले साल इसी महीने में 7.8 फीसदी और मार्च 2020 में 8.8 फीसदी थी.

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PTI
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कोरोना लॉकडाउन में सबसे पीड़ादायक प्रवासी मजदूरों का पलायन रहा, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. (File Image)

One Year of COVID-19 Lockdown: कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) पर काबू पाने के लिए मार्च 2020 में लगाए गए लॉकडाउन के चलते पैदा हुआ आजीविका का संकट आज एक साल बाद भी बरकरार है. देश एक साल बाद भी लॉकडाउन से पैदा बेरोजगारी से उबर नहीं पाया है. सरकार ने कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया था, लेकिन इससे आर्थिक और वाणिज्यिक गतिविधियां पूरी तरह थम गईं. बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी चली गई. इससे भी पीड़ादायक प्रवासी मजदूरों का पलायन रहा, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2021 में बेरोजगारी की दर 6.9 फीसदी रही, जो पिछले साल इसी महीने में 7.8 फीसदी और मार्च 2020 में 8.8 फीसदी थी. आंकड़ों से पता चलता कि अप्रैल में बेरोजगारी दर 23.5 फीसदी तक पहुंच गई थी और मई में यह 21.7 फीसदी पर रही. हालांकि, इसके बाद थोड़ी राहत मिली और जून में यह 10.2 फीसदी और जुलाई में 7.4 फीसदी दर्ज की गई. CMIE के आंकड़ों के मुताबिक, हालांकि बेरोजगारी की दर पिछले साल अगस्त में फिर बढ़कर 8.3 फीसदी और सितंबर में सुधरकर 6.7 फीसदी हो गई.

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अक्टूबर 2020 में यह बढ़कर फिर 7 फीसदी और नवंबर 2020 में नरम पड़कर 6.5 फीसदी पर दर्ज की गई. इसके बाद दिसंबर 2020 तं बेरोगारी दर फिर बढ़कर 9.1 फीसदी पर पहुंच गई, जबकि जनवरी 2021 में यह सुधरकर 6.5 फीसदी पर दर्ज की गई.

विशेषज्ञों के मुताबिक, CMIE के आंकड़ों में जुलाई के बाद से बेरोजगारी के आउटलुक में सुधार के संकेत हैं, लेकिन इसमें स्टेबिलिटी सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में सुधार के बाद आएगा. रोजगार की नजरिए से इस दौरान कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा रहा लेकिन शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है. विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार ने देश में नए सिरे से रोजगार पैदा करने के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन रोजगार के आउटलुक में लगातार सुधार के लिए बार-बार नीतिगत हस्तक्षेप और जमीनी स्तर पर पहल की जरूरत है.