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CAG Report: वेतन से ज्यादा पेंशन पर खर्च कर रही केंद्र और ये 3 राज्य सरकारें, CAG ने दी जानकारी

सीएजी के आकड़ों के मुताबिक 2019-20 के दौरान गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में वेतन से ज्यादा पेंशन पर खर्च हुआ.

सीएजी के आकड़ों के मुताबिक 2019-20 के दौरान गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में वेतन से ज्यादा पेंशन पर खर्च हुआ.

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FE Hindi Desk
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भारत के सीएजी गिरीश चन्द्र मुर्मू दिल्ली के एक कार्यक्रम में संबोधित करते हुए. (PTI/IE file)

CAG Data: पेंशन पर होने वाला खर्च हाल के वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए तयशुदा व्यय का अहम हिस्सा बन चुका है. कंट्रोलर ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया यानी सीएजी (CAG) के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019-20 के दौरान केंद्र सरकार का पेंशन बिल, 'सैलरी और मजदूरी' पर होने वाले खर्च से अधिक रहा. राज्यवार देखें तो गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल का पेंशन बिल, वेतन खर्च से अधिक रहा है.

सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 के दौरान केंद्र सरकार का कुल व्यय 9.78 लाख करोड़ रुपये था. सरकार ने इस वर्ष के दौरान 'वेतन और मजदूरी' पर 1.39 लाख करोड़ रुपये खर्च किया. पेंशन पर केन्द्र सरकार ने 1.83 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे. 2019-20 के दौरान 'ब्याज भुगतान और कर्ज चुकाने' पर केंद्र सरकार ने 6.55 लाख करोड़ रुपये किए थे. 2019-20 में केंद्र का कुल तयशुदा व्यय उसके कुल रेवेन्यू एक्सपेंडिचर 26.15 लाख करोड़ रुपये का 37% रहा था. सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019-20 के दौरान केंद्र सरकार के कुल खर्च (कमीटेड एक्सपेंडिचर) में ‘ब्याज भुगतान और ऋण भुगतान सेवा’ का हिस्सा 67% है. बाकी 19 % ‘पेंशन’ और 14% ‘सैलरी व मजदूरी’ पर होने वाला खर्च है.

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आकड़ों से साफ जाहिर है कि पेंशन पर आने वाला खर्च वेतन और मजदूरी पर होने वाले खर्च से अधिक है. रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में केंद्र का पेंशन बिल ‘सैलरी और मजदूरी’ पर सरकार के खर्च का 132 % था. ये सभी आकड़े 2020 में भारत में कोरोना महामारी के आने से ठीक पहले का है. 2019-20 के दौरान गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल, इन तीनों राज्यों में ‘सैलरी और मजदूरी’ खर्च से बहुत अधिक पेंशन बिल हो गया.

2019-20 के दौरान गुजरात में पेंशन बिल 17,663 करोड़ रुपये आया है. वहीं राज्य में सैलरी और मजदूरी पर 11,126 करोड़ रुपये खर्च हुआ था. गुजरात में पेंशन बिल और सैलरी खर्च राज्य के खर्च का 159% रहा.  इसी तरह, कर्नाटक का पेंशन बिल (18,404 करोड़ रुपये) वेतन और मजदूरी (14,573 करोड़ रुपये) पर राज्य के खर्च का 126 % था और पश्चिम बंगाल में पेंशन बिल (17,462 करोड़ रुपये) था, वहीं सैलरी और मजदूरी (16,915 करोड़ रुपये) पर खर्च राज्य के खर्च का 103% था.

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खास बात ये कि ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) चुनावी राज्यों, हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव में एक प्रमुख वादा होने के कारण काफी चर्चा में है. राजनीतिक चर्चाओं के बाहर भी ओल्ड पेंशन स्कीम वाद-विवाद शुरू है.  कांग्रेस शासित राज्य- राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने पहले ही ओल्ड पेंशन स्कीम यानी पुरानी पेंशन योजना (OPS) को लागू करने का फैसला ले लिया है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस पार्टी की जीत होने पर पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा है.

आंकड़ों से पता चलता है कि 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का एकमुश्त पेंशन बिल, जिसके लिए तुलनात्मक आकड़े उपलब्ध है, साल 2019-20 में 3.38 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वेतन और मजदूरी पर उनके द्वारा हुए कुल ख़र्च (5.47 लाख करोड़ रुपये) का 61.82 प्रतिशत था.  पांच राज्यों - उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा में पेंशन बिल, वेतन और मजदूरी पर इन राज्यों के खर्च का 2/3 हिस्से से अधिक था.

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पेंशन पर खर्च सरकार के कमीटेड एक्सपेंडिचर के प्रमुख हिस्सों में से एक है. इसके आलावा सैलरी और मजदूरी और ब्याज भुगतान व ऋण भुगतान पर व्यय है. कमीटेड एक्सपेंडिचर यानी तयशुदा खर्च अधिक होने का मतलब है कि सरकार के पास अपनी कमाई (रेवेन्यू) को इन्फ्रास्ट्रक्चर या अन्य स्कीम पर खर्च करने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं है. 2019-20 के दौरान, सभी राज्यों का कुल कमीटेड एक्सपेंडिचर 12.38 लाख करोड़ रुपये था (वेतन और मजदूरी पर 5.47 लाख करोड़ रुपये; ब्याज भुगतान व ऋण भुगतान पर 3.52 लाख करोड़ रुपये और पेंशन पर 3.38 लाख करोड़ रुपये), जो  27.41 लाख करोड़ रुपये के उनके कुल राजस्व व्यय का लगभग आधा यानी 45 प्रतिशत था.

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राजस्थान में पेंशन पर आने वाला खर्च 2019-20 में 20,761 करोड़ रुपये था. जहां पुरानी पेंशन योजना लागू करने का फैसला किया गया है. राजस्थान में सैलरी और मजदूरी पर राज्य के खर्च (48,577 करोड़ रुपए) का करीब 42.7 % हिस्सा है.  इसी तरह, छत्तीसगढ़ का पेंशन बिल (6,638 करोड़ रुपये) राज्य के वेतन और मजदूरी व्यय (21,672 करोड़ रुपये) का 30.62 % था. हालांकि, हिमाचल प्रदेश में, जहां हाल ही में चुनाव संपन्न हुए, पेंशन बिल 5,490 करोड़ रुपये और सैलरी और मजदूरी पर खर्च 11,477 करोड़ रुपये, जो राज्य के व्यय का 47% था. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 19 नवंबर को जारी हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स ऑन इंडियन स्टेट्स के हालिया प्रकाशन से पता चलता है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का कुल पेंशन खर्च 2019-20 में 1.63 लाख करोड़ रुपये से दोगुना होकर 3.45 लाख करोड़ रुपये हो गया है.

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