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A bench comprising Chief Justice S A Bobde, Justice B R Gavai and Justice Surya Kant took note of the submission and disposed of the petition filed by the DMK.
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राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण से चिंतित उच्चतम न्यायालय (SC) ने गुरुवार को सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण अपनी वेबसाइट पर डालें. शीर्ष अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइट पर ऐसे व्यक्तियों को प्रत्याशी के रूप में चयन करने की वजह भी बतानी होगी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे प्रत्याशियों के चयन को चुनाव में जीतने की संभावना से इतर उनकी योग्यता और मेरिट न्यायोचित ठहराने की वजह भी बतानी होंगी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं.
सोशल मीडिया पर भी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी
न्यायालय ने राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे पर शीर्ष अदालत के सितंबर, 2018 के फैसले से संबंधित निर्देशों का पालन नहीं करने के आधार पर दायर अवमानना याचिका पर यह आदेश दिया. इस फैसले में न्यायालय ने प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि के विवरण के एलान के बारे में अनेक निर्देश दिये थे. पीठ ने राजनीतिक दलों को यह भी निर्देश दिया कि वे ये विवरण फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंच पर सार्वजनिक करने के साथ ही एक स्थानीय भाषा और एक राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र में इसका प्रकाशन करें.
शीर्ष अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को ऐसे प्रत्याशियों के चयन के बारे में 72 घंटे के भीतर निर्वाचन आयोग को अनुपालन रिपोर्ट देनी होगी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह अगर राजनीतिक दल उसके निर्देशोका पालन करने में विफल रहते हैं तो इसे शीर्ष अदालत के संज्ञान में लाया जाये.
पीठ ने यह आदेश सुनाते हुये कहा कि ऐसा लगता है कि पिछले चार आम चुनावों में राजनीति के अपराधीकरण में चिंताजनक वृद्धि हुई है. शीर्ष अदालत ने इससे पहले टिप्पणी कि थी कि आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी नहीं देने वाले प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों पर दंड लगाने के मुद्दे पर बहुत ही सावधानी से विचार करना होगा क्योंकि अक्सर विरोधी प्रत्याशी राजनीतिक भाव के साथ गंभीर आरोप लगाते हैं.
गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसद बढ़े
सितंबर, 2018 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अपने फैसले में कहा था कि सभी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से पहले निर्वाचन आयोग के सामने अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि का एलान करना होगा. न्यायालय ने इस विवरण का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रमुखता से प्रचार और प्रकाशन करने पर भी जोर दिया था. न्यायालय ने राजनीतिक अपराधीकरण पर अंकुश पाने के लिये गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे व्यक्तियों को राजनीतिक परिदृश्य से अलग रखने के लिये उचित कानून बनाने का मसला संसद पर छोड़ दिया था.
इस मामले में अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने न्यायालय से कहा था कि ऐसे सांसदों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं. आयोग ने भाजपा नेता एवं याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण के इस सुझाव से सहमति व्यक्त की थी कि सभी राजनीतिक दलों के लिये अपने प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना अनिवार्य किया जाए और यह भी बताया कि आखिर ऐसे व्यक्ति का चयन क्यों किया गया है.
बहरहाल, आयोग आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करने में विफल रहने वाले प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों को संविधान के अनुच्छेद 324 के दंडित करने के सुझाव से सहमत नहीं था. आयोग ने शीर्ष अदालत के फैसले के बाद 10 अक्टूबर, 2018 को फॉर्म 26 में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना भी जारी की थी.