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इस साल पूजा समितियों ने कोविड से पहले के मुकाबले में लगभग 70 फीसदी कम ऑर्डर दिये हैं
दिल्ली में कोविड के बाद एक बार फिर से नवरात्र और दुर्गा पूजा की तैयारियां से शुरू हो गई हैं. फेस्टिवल का ये सीज़न आम लोगों के साथ ही साथ मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनाने वाले कारीगरों के लिए भी खुशियां लेकर आता है. लेकिन कोविड महामारी के कारण दो साल बाद बड़े पैमाने पर दुर्गा पूजा मनाए जाने के बावजूद इस बार मूर्ति बनाने वाले कारीगर ऑर्डर घटने से निराश हैं. उनका कहना है कि आम श्रद्धालुओं के साथ ही साथ मूर्तियों के बड़े ऑर्डर देने वाली पूजा समितियों ने भी इस बार अपने बजट में भारी कटौती की है, जिसकी वजह से उनकी बिक्री पहले के मुकाबले काफी घट गई है. कारीगरों का कहना है कि इस साल उन्हें कोविड से पहले के साल की तुलना में 70 फीसदी कम ऑर्डर मिल रहे हैं. जो ऑर्डर मिल भी रहे हैं, वे पहले के मुकाबले छोटी और कम कीमत वाली मूर्तियों के लिए हैं, जिसकी वजह से उनका मार्जिन बेहद कम हो गया है.
25 प्रतिशत भी काम नहीं मिला
चितरंजन पार्क में एक मूर्ति की दुकान चलाने वाले गोविंद नाथ ने बताया, “महामारी और उसके बाद के प्रतिबंधों के कारण हमारा बिजनेस बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. दो साल बाद हम काम पर लौटे हैं, लेकिन मूर्ति बनाने के बिजनेस में अभी भी मंदी का दौर बना हुआ है.” गोविंद ने बताया कि कोविड से पहले दुर्गा पूजा के दौरान उन्हें 70 से 80 मूर्तियों के ऑर्डर मिलते थे, लेकिन इस साल अब तक सिर्फ 25 मूर्तियों के ही ऑर्डर मिले हैं. गोविंद ने दावा किया कि उनका परिवार पिछले 50 सालों से मूर्तियां बनाने का बिजनेस कर रहा है, लेकिन पिछले दो वर्षों में उन्हें जितना नुकसान हुआ है वो उतना कभी भी नहीं हुआ.
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गोविंद ने बताया कि इस बार मूर्तियों की सेल कोविड से पहले के मुकाबले 25 प्रतिशत भी नहीं हुई है, जिसकी वजह से हमें अपने कारीगरों को कम करना पड़ा है. उसने बताया कि कोविड से पहले यहां पर पश्चिम बंगाल के करीब ग्यारह मूर्ति कारीगर काम करते थे, जो लॉकडाउन में अपने घरों को लौट गए थे और अब दो साल के बाद दिल्ली वापस आये हैं. लेकिन यहां आने पर उन्हें निराश होना पड़ रहा है क्योंकि कोविड के बाद आयोजित हो रहे दुर्गा पूजा कार्यक्रमों के आयोजनकर्ताओं ने बजट में भारी कटौती की है, जो पूजा समितियों पहले 1.5 से 2 लाख रुपये तक की मूर्ति का ऑर्डर देती थी वो अब सिर्फ 50 से 80 हजार की मूर्ति का ऑर्डर दे रही हैं. इसके साथ ही जो लोग अपने घरों पर माता की मूर्ति की स्थापना करते हैं वे भी छोटी और सस्ती मूर्तियों के ऑर्डर दे रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
बच्चे को सरकारी स्कूल में डालना पड़ा : कारीगर
चित्तरंजन पार्क के एक दूसरे मूर्ति कारीगर तपन बिस्वास ने बताया कि कोविड से पहले उसने अपने नौ साल के बेटे का दिल्ली के एक नामी प्राइवेट स्कूल में एडमिशन कराया था, लेकिन लॉकडाउन और उसके बाद से लगातार हो रहे नुकसान की वजह से उसे अपने बेटे को प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में एडमिशन कराना पड़ा. 40 वर्षीय तपन ने कहा, "बेटे का दिल्ली के नामी स्कूल में एडमिशन कराने पर मैं बहुत खुश था. लेकिन महामारी के बाद मुझे उसे एक सरकारी स्कूल में भेजना करना पड़ा, ताकि मैं परिवार का खर्च उठा सकूं.”
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मुसीबत भरे दो साल दर-दर भटकना पड़ा
दिल्ली में रह रहे एक अन्य मूर्ति कारीगर सुजीत दास ने बताया कि महामारी के दौरान जीविकोपार्जन और अपने परिवार की मदद के लिए उसे दर-दर भटकना पड़ा. दास ने कहा, "पिछले दो साल बेहद मुश्किल रहे हैं. मुझे अपने घर लौटना पड़ा और वहां काम की तलाश करनी पड़ी. मेरा भाई भी एक मूर्ति कारीगर है और हम दोनों मिलकर ही परिवार को चलाते हैं."
फंड की कमी से बजट में 25 प्रतिशत तक कटौती
पूजा समितियों का कहना है कि कोविड के बाद से उनके पास भी फंड की भारी कमी हो गई है, जिसके चलते उन्हें पूजा पंडाल व अन्य कार्यक्रमों के बजट में कटौती करनी पड़ी है. सीआर पार्क पूजा समिति के सदस्य सौरव चक्रवर्ती की माने तो फंड की कमी के कारण इस साल बजट में लगभग 25 प्रतिशत की कटौती की गई है. सौरव ने बताया कि इस साल प्रायोजकों से भी पर्याप्त चंदा नहीं मिला है, जिसकी वजह से हमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बजट में भी कटौती करनी पड़ी है. उन्होंने कहा कि उन्होंने किसी कार्यक्रम को रद्द तो नहीं किया है, लेकिन फंड की कमी के चलते बजट में कटौती करनी पड़ रही है.
(Input : PTI)