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2012 में किए गए रेट्रोस्पेक्टिव अमेंडमेंट को कुछ दिनों पहले सरकार ने रद्द कर दिया. केंद्र सरकार की इस पहल से लंबे समय से लटके हुए कानूनी झगड़े को समाप्त करने में मदद मिलेगी और निवेशकों के लिए भी टैक्स नियमों को लेकर निश्चितता आएगी. (Image- IE)
वोडाफोन और केयर्न एनर्जी जैसी कंपनियों के लिए भारी मुसीबत का सबब बन चुके Retrospective Tax को संसद ने कुछ दिनों पहले खारिज करने का फैसला किया था. यह टैक्स सिस्टम 2012 में लाया गया था और इसके तहत केयर्न एनर्जी और वोडाफोन समेत कई कंपनियों को नोटिस भेजे गए थे. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक अब सरकार इन कंपनियों के साथ आउटस्टैंडिंग इशू के निपटारे के लिए अनौपचारिक रूप से चर्चा कर रही है. सूत्रों के मुताबिक इसे लेकर अगले महीने नेगोशिएशंस सामने आ सकते हैं. इसके बाद ही सरकार या कंपनियों की तरफ से इसे लेकर औपचारिक बयान जारी हो सकते हैं.
हालांकि सरकार बार-बार कह रही है कि टैक्सेशन के उसके सोवरेन राइट्स को चुनौती नहीं दी जा सकती है. सरकार का दावा है कि सेटलमेंट के तहत कंपनियों को ब्याज व अन्य लागत की मांग को छोड़ना होगा. इसके अलावा सभी पेंडिंग मुकदमों को वापस लेना होगा. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक कंपनियों के साथ इसे लेकर अनौपचारिक बातचीत शुरू हो चुकी है. सूत्रों के मुताबिक इस पर स्थिति तभी स्पष्ट होगी जब सरकार के साथ कंपनियों के साथ नेगोशिएशन पूरा हो जाएगा.
17 मामलों में जुटाए 8100 करोड़ का Retrospective Tax
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा 2012 में लाए गए रेट्रोस्पेक्टिव अमेंडमेंट के तहत 17 मामलों में टैक्स डिमांड की गई थी. सरकार ने इन 17 में से चार मामलों में 8100 करोड़ रुपये टैक्स के रूप में कलेक्ट किए हैं जिसमें से 7900 करोड़ रुपये का टैक्स केयर्न एनर्जी से टैक्स कलेक्ट किया गया. अगर कंपनियां विवाद के निपटारे का संकेत देती हैं तो सरकार को यह राशि वापस करनी होगी. 2012 में किए गए रेट्रोस्पेक्टिव अमेंडमेंट को कुछ दिनों पहले सरकार ने रद्द कर दिया. केंद्र सरकार की इस पहल से लंबे समय से लटके हुए कानूनी झगड़े को समाप्त करने में मदद मिलेगी और निवेशकों के लिए भी टैक्स नियमों को लेकर निश्चितता आएगी.
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यह हुआ है अहम बदलाव
देश के इनकम टैक्स कानून 1961 में संशोधन कर Retrospective Tax लाया गया. मई 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सहमति के बाद इसे लागू किया गया था. इसके तहत इस तारीख से पहले कंपनियों की ओर से किए गए विलय और अधिग्रहण पर सरकार को टैक्स लगाने का अधिकार मिला. अब करीब 9 साल बाद केंद्र सरकार ने इसे खारिज करने का फैसला किया.
नए संशोधन के मुताबिक रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स अब नहीं लगाए जाएंगे यानी कि 28 मई 2012 से पहले किसी भारतीय कंपनियों की किसी दूसरी कंपनी में एसेट ट्रांसफर पर टैक्स की मांग अब नहीं की जाएगी. केंद्र सरकार का यह कदम इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन अदालत में केयर्न एनर्जी के केस में हार के बाद सामने आया था. इसके अलावा वोडाफोन पर लगाए गए Retrospective Tax के मामले में भी इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन का फैसला अभी आना है.
(Source: Indian Express)