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एसबीआई (SBI) की इकोनॉमिक रिसर्च टीम ने कृषि सुधार को लेकर पांच सुझाव दिए हैं.
19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की. इसके साथ ही उन्होंने कृषि सुधार को लेकर एक कमेटी बनाने की बात भी कही. यह कमेटी जीरो बजटिंग खेती यानी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, देश की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक तरीके से फसल पैटर्न में बदलाव और एमएसपी को ज्यादा प्रभावी और पारदर्शी बनाने जैसे मामलों पर फैसला लेगी. देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई (SBI) की इकोनॉमिक रिसर्च टीम ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में उन्होंने कृषि सुधारों को लेकर पांच सुझाव दिए हैं. एसबीआई (SBI) की इकोनॉमिक रिसर्च टीम का मानना है कि निम्नलिखित 5 कृषि सुधार आवश्यक हैं.
- किसानों की मांग है कि प्राइस गारंटी के तौर पर एमएसपी को अनिवार्य किया जाए. इसके बजाए सरकार, कम से कम 5 साल की अवधि के लिए क्वांटिटी गारंटी क्लॉज सुनिश्चित कर सकती है. यह फसलों के प्रोडक्शन परसेंटेज (वर्तमान में खरीदी जा रही) को पिछले साल के परसेंटेज के कम से कम बराबर होने के लिए अनिवार्य बनाता है (सूखा, बाढ़ आदि जैसी असाधारण घटनाओं में सुरक्षा उपायों के साथ).
2. नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (eNAM) पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को नीलामी के फ्लोर प्राइस में परिवर्तित करना. हालांकि, यह पूरी तरह से समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि मौजूदा आंकड़ों से पता चलता है कि e-NAM मंडियों में एवरेज मॉडल प्राइस सभी खरीफ कमोडिटीज (सोयाबीन को छोड़कर) में एमएसपी से कम है.
3. APMC मार्केट के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने को लेकर प्रयास जारी रहने चाहिए. सरकारी रिपोर्ट पर आधारित अनुमानों के अनुसार, फसल और कटाई के बाद के नुकसान के कारण अनाज के लिए मॉनेटरी लॉस लगभग 27,000 करोड़ रुपये है. तिलहन और दलहन को क्रमश: 10,000 करोड़ रुपये और 5,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
4. भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग इंस्टीट्यूट की स्थापना की जानी चाहिए, जिसके पास कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में प्राइस डिस्कवरी की निगरानी करने का विशेष अधिकार होगा. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कई देशों में उत्पादकों को बाजार और मूल्य स्थिरता के साथ-साथ तकनीकी सहायता के साथ सप्लाई चैन तक पहुंच प्रदान करने में सहायक रही है.
5. राज्यों में एक समान खरीद (Symmetric Procurement) सुनिश्चित किया जाना चाहिए. पश्चिम बंगाल (प्रथम) और उत्तर प्रदेश (द्वितीय) जैसे धान के शीर्ष उत्पादक राज्यों में न्यूनतम खरीद के साथ अनाज की खरीद असममित बनी हुई थी. वहीं, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य जो सबसे बड़े उत्पादक नहीं हैं, में बड़े पैमाने पर खरीद हो रही है.