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सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है जो कोर्ट की निगरानी में जांच करेगी.
Pegasus Project: देश की सबसे बड़ी अदालत ने आज 27 अक्टूबर को पेगासस जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है जो टॉप कोर्ट की निगरानी में जांच करेगी. इस मामले में इसकी जांच की जाएगी कि निजता के अधिकार का हनन हुआ है या नहीं. तीन सदस्यों की इस समिति का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस आरवी रवींद्रन करेंगे. इसके अलावा समिति में आलोक जोशी और संदीप ओबेराय भी होंगे. कोर्ट ने विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति को मामले की पूरी जांच कर रिपोर्ट सबमिट करने को कहा है. आठ हफ्ते बाद इसकी सुनवाई होगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने अवैध रूप से निगरानी किए जाने के आरोपों से स्पष्ट रूप से इनकार किया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.
पीड़ितों की याचिका पर कोर्ट ने दिया आदेश
चीफ जस्टिस एनवी रमन और जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि शुरुआत में जब याचिका दायर कर मामले की स्वतंत्र जांच का आग्रह किया गया था तो कोर्ट न्यूजपेपर रिपोर्ट्स के आधार पर दाखिल याचिका को लेकर संतुष्ट नहीं थी. हालांकि इसके बाद कुछ ऐसे लोगों ने याचिका दायर की जो इस मामले के प्रत्यक्ष रूप से भुक्तभोगी थे तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक्सपर्ट कमेटी बनाकर स्वतंत्र जांच का आदेश दिया है. कोर्ट के मुताबिक तकनीक महत्वपूर्ण है लेकिन न सिर्फ पत्रकार बल्कि सभी नागरिकों के निजता के अधिकार की सुरक्षा भी जरूरी है.
पिछले महीने ही कोर्ट ने कर लिया था फैसला सुरक्षित
कोर्ट ने इस मामले में पिछले महीने 13 सितंबर को ही अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. कोर्ट ने कहा था कि वह सिर्फ यह जानना चाहती है कि केंद्र ने नागरिकों की कथित तौर पर जासूसी के लिए पेगासस स्पाइवेयर का अवैध रूप से इस्तेमाल किया या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने एन राम और शशि कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकारों और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका पर यह फैसला सुनाया है. बता दें कि जुलाई में वैश्विक स्तर पर एक इंवेस्टिगेटिव प्रोजेक्ट में अहम खुलासा हुआ कि इजराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाईवेयर ने भारत के 300 से अधिक मोबाइल फोन नंबर्स को टारगेट किया यानी कि इनकी जासूसी की गई. इसमें केंद्रीय मंत्री, विपक्ष के नेता,संवैधानिक पद पर बैठे शख्स और इंडियन एक्सप्रेस समेत कई मीडिया संस्थानों के बड़े पत्रकारों को भी टारगेट किया गया.