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SC Upholds Demonetisation : सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है. (File Photo)
SC upholds demonetisation decision process: सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले की प्रक्रिया को सही ठहराया है. अदालत ने अपने बहुमत के फैसले में कहा है कि मोदी सरकार ने 2016 में 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का फैसला लेते समय जिस प्रक्रिया का पालन किया, उसमें कोई गड़बड़ी नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की, जिनमें से 4 जजों ने नोटबंदी के फैसले को सही ठहराने का फैसला सुनाया. हालांकि एक जज ने अपने अल्पमत आदेश में कहा है कि सरकार ने इतने अहम मामले में संसद को अलग-थलग रखकर ठीक नहीं किया, उसे नोटबंदी का फैसला नोटिफिकेशन की बजाय संसद में कानून बनाकर लागू करना चाहिए था. लेकिन अल्पमत का फैसला होने के कारण यह आदेश प्रभावी नहीं होगा.
आर्थिक नीति को न्यायिक समीक्षा के जरिए पलटना ठीक नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने बहुमत के आदेश में कहा है कि सरकार ने 2016 में पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को बंद करने का जो एलान किया था, उसमें फैसला लेने की प्रक्रिया के लिहाज से कोई खामी नहीं थी. संविधान पीठ ने इस आदेश में कहा कि आर्थिक नीतियों के मामले में बेहद संयम से काम लेना जरूरी है और अदालत किसी आर्थिक फैसले की न्यायिक समीक्षा के जरिए सरकार की समझदारी को गलत नहीं ठहरा सकती. बहुमत का फैसला सुनाने वाले जजों में संविधान पीठ के प्रमुख जस्टिस एस ए नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम शामिल हैं.
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फैसले का मकसद पूरा होना या न होना अप्रासंगिक : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि 8 नवंबर 2016 को जारी इस नोटिफिकेशन को फैसला लेने की प्रक्रिया के आधार पर अविवेकपूर्ण (unreasonable) ठहराकर खारिज नहीं किया जा सकता है. सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि इस बात की कोई प्रासंगिकता नहीं है कि सरकार के इस फैसले का घोषित मकसद पूरा हो पाया या नहीं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि नोटबंदी के मामले में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बीच 6 महीने तक परामर्श (consultation) हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने अपने मेजॉरिटी जजमेंट में कहा है, "हम मानते हैं कि सरकार के पास यह फैसला लेने का पर्याप्त कारण था और इसे डॉक्ट्रिन ऑफ प्रपोर्शनैलिटी (doctrine of proportionality) के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता."
इतने अहम फैसले से संसद को अलग-थलग रखना गलत : जस्टिस नागरत्ना
हालांकि पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना ने आरबीआई एक्ट (RBI Act) के सेक्शन 26(2) के तहत केंद्र सरकार को मिले अधिकारों के मामले में मेजॉरिटी जजमेंट से अलग राय जाहिर की है. अपने अल्पमत फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये के सभी प्रचलित नोटों को रद्द करने का फैसला नोटिफिकेशन के जरिए किया जाना सही नहीं था. इसके लिए संसद में कानून पारित किया जाना चाहिए था. उन्होंने अपने फैसले में लिखा है, "नोटबंदी पर संसद में चर्चा करके कानून पारित किया जाना चाहिए था. एक गजट नोटिफिकेशन निकालकर ऐसा करना सही नहीं था. देश से जुड़े इतने अहम फैसले के मामले में संसद को अलग-थलग नहीं रखा जा सकता." जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने इस मामले में स्वतंत्र ढंग से अपनी समझदारी का इस्तेमाल नहीं किया. इस मामले में RBI की सिर्फ राय मांगी गई थी, जिसे सिफारिश (recommendation) नहीं कहा जा सकता है. हालांकि जस्टिस नागरत्ना की इस राय से अलग संविधान पीठ के बहुमत के फैसले में कहा गया है कि नोटबंदी के सरकार के फैसले को गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि इस मसले पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार के बीच सलाह-मशविरा हुआ था.
पीएम मोदी ने 8 नवंबर 2016 को किया था नोटबंदी का एलान
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नोटबंदी के खिलाफ दायर उन 58 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया है, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर 2016 के नोटबंदी के एलान को चुनौती दी गई थी. प्रधानमंत्री मोदी ने उस दिन रात 8 बजे देश के नाम अपने संदेश में 500 और 1000 रुपये के सभी प्रचलित नोटों को बंद करने का एलान करके सबको चौंका दिया था. सरकार ने इस एलान को लागू करने के लिए उसी दिन एक नोटिफिकेशन जारी किया था.