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चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति के खिलाफ याचिका पर नहीं हुई सुनवाई, जस्टिस जोसेफ और नागरत्ना ने खुद को किया अलग, अब दूसरी बेंच के पास जाएगा मामला

भारत सरकार द्वारा अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने के फैसले को ADR ने दी है चुनौती, सुप्रीम कोर्ट के ही 2 मार्च के फैसले को बनाया है आधार

भारत सरकार द्वारा अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने के फैसले को ADR ने दी है चुनौती, सुप्रीम कोर्ट के ही 2 मार्च के फैसले को बनाया है आधार

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FE Hindi Desk
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चुनाव आयुक्त के पद पर अरुण गोयल की नवंबर 2022 में की गई नियुक्ति को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. (File Photo)

Supreme Court bench recuses from hearing plea challenging appointment of Arun Goel as EC : जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. जस्टिस जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच ने सोमवार को खुद को इस केस से अलग करते हुए मामले को किसी और खंडपीठ के सामने लिस्ट किए जाने का निर्देश दे दिया. एनजीओ 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' (ADR) ने अपनी याचिका में अरुण गोयल की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए उसे खारिज किए जाने की मांग की है. ये दोनों ही जज पांच जजों वाली उस संविधान पीठ में शामिल थे, जिसने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सीजेआई की कमेटी बनाने का आदेश दिया है.

जज ने पूछा नियुक्ति में किस नियम का उल्लंघन हुआ?

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने सोमवार को खुद को सुनवाई से अलग तो कर लिया, लेकिन उससे पहले याचिका दायर करने वाली संस्था के वकील से कुछ सवाल-जवाब किए. ADR की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण से बेंच ने पूछा कि अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्ति में किन नियमों का उल्लंघन किया गया है? इसके साथ ही बेंच ने यह भी कहा कि संवैधानिक पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति के बाद अनुमान के आधार पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि वह गलत और मनमाने ढंग से ही काम करेगा या सरकार की हां में हां मिलाएगा.

सुप्रीम कोर्ट के 2 मार्च के फैसले का जिक्र

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जस्टिस जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच ने कहा कि यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के 2 मार्च के उस पांच जजों के फैसले पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि "चुनाव की शुद्धता" बनाए रखने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिए. इस समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सदस्य होंगे. अपने लंबे और महत्वपूर्ण फैसले में पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्ति में दिखाई गई जल्दबाजी पर हैरानी जाहिर की थी. साथ ही यह भी कहा था कि ब्यूरोक्रेट अरुण गोयल को अगर चुनाव आयुक्त के तौर पर अपनी नियुक्ति किए जाने के प्रस्ताव के बारे में कुछ भी पता नहीं था, तो उन्होंने पिछले साल 18 नवंबर को वॉलंटरी रिटायरमेंट यानी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कैसे कर दिया था?

जजों ने पूछे अहम सवाल

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने प्रशांत भूषण से यह बताने को कहा कि अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्ति में किस नियम का उल्लंघन हुआ है? जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा कि अरुण गोयल की नियुक्ति मनमाने ढंग से की गई थी और पूरी प्रक्रिया दुर्भावनापूर्ण थी. इस पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "हो सकता है कि यह नियुक्ति हड़बड़ी या अनुचित जल्दबाजी की गई हो, जैसा आप आरोप लगा रहे हैं, लेकिन क्या इस आधार पर नियुक्ति को गलत करार दिया जा सकता है? क्या इसमें किसी नियम का उल्लंघन हुआ है?

प्रशांत भूषण ने दी पीजे थॉमस केस की मिसाल

प्रशांत भूषण ने दलील दी कि अरुण गोयल की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि पूरी प्रक्रिया दुर्भावनापूर्ण थी, क्योंकि कई योग्य उम्मीदवारों को छोड़कर सिर्फ कुछ नामों को चुने जाने का कोई आधार नहीं था. इस पर जस्टिस जोसेफ ने कहा, "चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की एक प्रक्रिया उस वक्त लागू थी. आप सिर्फ हमारे (बाद में दिए) फैसले को आधार बनाकर उसे चुनौती नहीं दे सकते. उन्होंने कहा कि हमें सबसे ज्यादा परवाह इस बात की है कि क्या यह नियुक्ति उस वक्त कानून के तहत लागू प्रक्रिया के तहत की गई थी? हम यह कैसे सोच कि कोई भविष्य में क्या करेगा? जस्टिस नागरत्ना ने यह सवाल भी उठाया कि उस वक्त लागू नियमों के तहत हुई नियुक्ति को चुनौती कैसे दी जा सकती है? प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि गोयल की नियुक्ति "संस्थागत ईमानदारी" (institutional integrity) के सिद्धांत के खिलाफ है, जिसे खुद सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी के प्रमुख के पद पर पीजे थॉमस की नियुक्ति को रद्द करने के लिए लागू किया था.

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अरुण गोयल की नियुक्ति को क्यों दी गई चुनौती?

सुनवाई के दौरान एडीआर की तरफ से दलील देते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि गोयल की नियुक्ति प्रक्रिया दुर्भावनापूर्ण और मनमानी थी.. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा अपनाई गई चयन प्रक्रिया सवालों के घेरे में है.एडीआर की याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार ने अरुण गोयल की नियुक्ति करते समय दलील दी थी कि वे 4 उम्मीदवारों के पैनल में सबसे कम उम्र के हैं, लिहाजा चुनाव आयोग में सबसे लंबे समय तक काम कर पाएंगे. याचिका में तर्क दिया गया है कि उम्र के आधार पर गोयल की नियुक्ति को सही ठहराने के लिए जानबूझकर उम्मीदवारों का ऐसा पैनल पैनल बनाया, जिसमें बाकी उम्मीदवार ज्यादा उम्र के थे, जबकि 1985 बैच में कुल 160 अधिकारी थे, जिनमें से कई उम्र में अरुण गोयल से छोटे थे. फिर भी बिना कोई स्पष्टीकरण दिए उम्र में छोटे इन अधिकारियों को उम्मीदवारों के पैनल में शामिल नहीं किया गया. जबकि अरुण गोयल अपनी उम्र की वजह से संविधान में बताए गए 6 साल के कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाएंगे.

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