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कोर्ट ने कहा कि हम जानते हैं कि न्यायपालिका की लक्ष्मण रेखा कहां है, लेकिन जिस तरह से नोटबंदी की गई है, उसकी पड़ताल की जानी चाहिए
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ साल 2016 में किए गए नोटबंदी के फैसले की जांच करेगी. यह बात सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान कही. अदालत ने कहा कि उसे सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा के मामले में अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ पता है, लेकिन जब कोई सवाल संविधान पीठ के सामने आता है, तो उसका जवाब देना उसकी जिम्मेदारी बन जाती है. लिहाजा साल 2016 में किए गए केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले की जांच की जाएगी. इस जांच से ही पता चलेगा कि यह मामला केवल ‘अकादमिक’ कवायद है या नहीं. जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की इस संविधान पीठ में जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रमासुब्रमण्यम और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना शामिल हैं.
संविधान पीठ में सरकार की दलील
सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि जब तक नोटबंदी से जुड़े अधिनियम को सही परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक ही रहेगा. उन्होंने कहा कि हाई डिनॉमिनेशन बैंक नोट्स (High Denomination Bank Notes) एक्ट सन 1978 में पारित किया गया था. इस एक्ट के तहत सरकार को अर्थव्यवस्था में गैरकानूनी लेनदेन को नियंत्रित करने और व्यापक जनहित में नोटबंदी जैसे फैसले लेने का अधिकार प्राप्त है.
मामले की जांच जरूरी : संविधान पीठ
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि नोटबंदी की कवायद अकादमिक है या नहीं, यह तय करने के लिए भी मामले की जांच जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि हम जानते हैं कि न्यायपालिका की लक्ष्मण रेखा कहां तक है, लेकिन जिस तरह से नोटबंदी की गई है, उसकी जांच की जानी चाहिए. इस दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों के लिए संविधान पीठ को अपना वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए.
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2016 में तीन सदस्यी संविधान बेंच ने भेजा था मामला
तुषार मेहता की वक्त बर्बाद करने वाली दलील पर याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा के वकील श्याम दीवान ने कड़ा एतराज जाहिर किया. दीवान ने कहा, मुझे हैरानी है कि ऐसे गंभीर मामले के लिए, जिसे खुद सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की बेंच ने खुद पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ को सौंपा, समय की बर्बादी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस मामले में एक अन्य पक्षकार की ओर से पैरवी कर रहे सीनियर वकील पी. चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी अकादमिक है या नहीं यह कोर्ट को तय करना है. चिदंबरम ने कहा कि जिस तरह से नोटबंदी की गई है. उसके लिए सबसे पहले संसद में एक एक्ट पारित किया जाना चाहिए था. 2016 में नोटबंदी से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की बेंच ने मामले को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ को सौंप दिया था.