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गुजरात के 68 न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन में हड़बड़ी से सुप्रीम कोर्ट नाराज. (Photo : File)
गुजरात की निचली अदालतों के 68 ज्युडिशयल ऑफिसर्स यानी न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 8 मई को सुनवाई करेगा. याचिका में जिन ज्युडिशयल ऑफिसर्स के प्रमोशन को गलत बताते हुए चुनौती दी गई है, उनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि के मामले में दो साल की अधिकतम सजा सुनाने वाले सूरत के चीफ ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट (CJM) हरीश हसमुखभाई वर्मा का प्रमोशन भी शामिल है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन न्यायिक अधिकारियों को प्रमोशन देने में मेरिट और वरिष्ठता के सिद्धांत (merit-cum-seniority principle) की अनदेखी की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने इन अधिकारियों को प्रमोशन देने में की गई जल्दबाजी पर नाराजगी भी जाहिर की है. राहुल गांधी को 23 मार्च को सजा सुनाने वाले मजिस्ट्रेट समेत 68 न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन का आदेश गुजरात सरकार 18 अप्रैल को ही जारी कर चुकी है.
गुजरात के दो न्यायिक अधिकारियों ने दायर की है याचिका
सुप्रीम कोर्ट में गुजरात के 68 न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन को चुनौती देने वाली याचिका राज्य के सीनियर सिविल जज कैडर के अधिकारियों रविकुमार महेता और सचिन प्रतापराय मेहता ने दायर की है. इन दोनों ने आरोप लगाया है कि प्रमोशन के लिए हुई परीक्षा में उन्होंने ज्यादा अंक हासिल किए थे. फिर भी उनसे कम अंक हासिल करने वाले ज्युडिशियल ऑफिसर्स को जिला जज के तौर पर प्रमोशन दे दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों अधिकारियों की याचिका के आधार पर गुजरात सरकार और गुजरात हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को 13 अप्रैल 2023 को नोटिस भी जारी किया था. लेकिन मामला सर्वोच्च अदालत में लंबित होने के बावजूद 18 अप्रैल को गुजरात सरकार ने 68 न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन का आदेश जारी कर दिया गया. इस बात पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जाहिर की है. प्रमोशन पाने वाले इन न्यायिक अधिकारियों में सीजेएम हरीश हसमुखभाई वर्मा भी शामिल हैं, जिन्होंने 23 मार्च 2023 को राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की अधिकतम संभव सजा सुनाई थी. इस सजा के कारण कांग्रेस नेता की संसद की सदस्यता अगले ही दिन छीनी जा चुकी है.
प्रमोशन देने में हड़बड़ी से सुप्रीम कोर्ट खफा
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि "गुजरात सरकार को कोर्ट में जारी कार्यवाही की जानकारी थी. उन्हें यह भी पता था कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल 2023 तक नोटिस का जवाब देने का निर्देश दिया था. इसके बावजूद राज्य सरकार ने 18 अप्रैल 2023 को प्रमोशन का आदेश जारी कर दिया, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है." सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि "खुद राज्य सरकार ने अपने आदेश में भी जिक्र किया है कि प्रमोशन के इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में जारी कार्यवाही का असर पड़ेगा. ऐसे में प्रमोशन का आदेश जारी करने में दिखाई गई हड़बड़ी और जल्दबाजी की हम तारीफ नहीं कर सकते…खास तौर पर तब जबकि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला लंबित था और नोटिस जारी करते समय इस बारे में विस्तृत आदेश दिया गया था." कोर्ट ने कहा कि इन हालात में प्रमोशन का आदेश जारी करने में असाधारण हड़बड़ी दिखाए जाने की कोई जरूरत नहीं थी. बेंच ने कहा कि पहली नजर में लगता है कि ऐसा जानबूझकर अदालती प्रक्रिया को बेअसर करने के लिए किया गया. अदालत ने राज्य सरकार के सेक्रेटरी को इस असामान्य हड़बड़ी की वजह स्पष्ट करने का निर्देश भी दिया है.