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सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों के लिए वन रैंक, वन पेंशन (OROP) पर केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है.
One Rank One Pension: सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों के लिए वन रैंक, वन पेंशन (OROP) पर केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है. कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए बुधवार को कहा कि OROP सरकार का एक नीतिगत फैसला है और जिस तरह से इसे लागू किया जा रहा है, उसमें कोई संवैधानिक दोष नहीं है. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वन रैंक- वन पेंशन का केंद्र का नीतिगत फैसला मनमाना नहीं है और सरकार के नीतिगत मामलों में न्यायालय दखल नहीं देगा.
तीन महीने में हो पेंशनर्स को बकाया भुगतान : सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने निर्देश दिया कि OROP के पुनर्निर्धारण (re-fixation) की कवायद एक जुलाई, 2019 से की जानी चाहिए और पेंशनर्स को बकाया भुगतान तीन महीने में होना चाहिए. शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही एक्स-सर्विसमैन एसोसिएशन की उस याचिका का निपटारा कर दिया जिसमे भगत सिंह कोश्यारी समिति की सिफारिश पर पांच साल में एक बार पीरियोडिक रिव्यू की वर्तमान नीति के बजाय ऑटोमैटिक एनुअल रिवीजन के साथ ‘वन रैंक वन पेंशन’ को लागू करने का अनुरोध किया गया था.
कोर्ट ने फैसले में क्या कहा
फैसले के मुताबिक, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी पेंशनर्स जो समान रैंक होल्ड करते हैं, उनके अश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेस और मॉडिफाइड अश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेस को ध्यान में रखते हुए उन्हें ‘एक ही वर्ग’ (Homogenous Class) में नहीं रखा जा सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा कोई कानूनी आदेश नहीं है कि समान रैंक वाले पेंशनर्स को समान पेंशन दी जानी चाहिए क्योंकि वे एक समरूप वर्ग नहीं बनाते हैं. इस मामले में करीब चार दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने 23 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था. न्यायालय ने यह फैसला OROP के केन्द्र के फार्मूले के खिलाफ इंडियन एक्स-सर्विसमेन मूवमेंट (आईईएसएम) की याचिका पर सुनाया.
(इनपुट-पीटीआई)