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यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र घर पहुंचकर भी किसलिए परेशान? दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री को क्यों लिखी चिट्ठी?

NMC ने इंटर्नशिप पूरी किए बिना विदेश से लौटे मेडिकल छात्रों को भारत में इंटर्नशिप पूरी करने की छूट तो दी है, लेकिन इससे यूक्रेन से लौटे सभी छात्रों को राहत नहीं मिलेगी.

NMC ने इंटर्नशिप पूरी किए बिना विदेश से लौटे मेडिकल छात्रों को भारत में इंटर्नशिप पूरी करने की छूट तो दी है, लेकिन इससे यूक्रेन से लौटे सभी छात्रों को राहत नहीं मिलेगी.

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यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र घर पहुंचकर भी किसलिए परेशान? दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री को क्यों लिखी चिट्ठी?

दिग्विजय सिंह ने यूक्रेन से लौटे मेडिकल स्टूडेंट्स को देश के मेडिकल कॉलेजों में सरकारी खर्चे पर पढ़ाई पूरी करने का मौका देने की जो मांग की है, क्या सरकार उसे पूरा करेगी?

जंग की आग में झुलस रहे यूक्रेन से बड़ी संख्या में भारतीय मेडिकल छात्र स्वदेश लौटे हैं या लौट रहे हैं. आसमान से बरसती युद्ध की आग के बीच जो छात्र तमाम मुश्किलों को पार करके सुरक्षित लौट आए, वे खुशकिस्मत हैं. लेकिन घर पर माता-पिता और परिजनों के अलावा एक नई मुश्किल भी बहुत से छात्रों का इंतजार कर रही है. खास तौर पर उनका, जो अपनी मेडिकल की पढ़ाई अधूरी छोड़कर घर लौटे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यूक्रेन में अब तक उन्होंने मेडिकल की जितनी भी पढ़ाई की थी, उसका मौजूदा नियमों के हिसाब से भारत में कोई मतलब नहीं है.

अगर किसी छात्र ने यूक्रेन में एमबीबीएस के साढ़े पांच साल के कोर्स में से चार या पांच साल पूरे कर लिए हैं, तो भी इस पढ़ाई की मौजूदा नियमों के मुताबिक उसके अपने देश में कोई अहमियत नहीं है. वो अगर अपनी आगे की शिक्षा यहां रहकर पूरी करना चाहे, तो उसे एक बार फिर पहले पायदान पर खड़ा होना पड़ेगा. यह न सिर्फ उस छात्र के वक्त-मेहनत और उसके अभिभावकों के पैसों की बर्बादी है, बल्कि डॉक्टरों की कमी से जूझते देश में इससे राष्ट्रीय संसाधनों का नुकसान भी होता है.

प्रधानमंत्री से क्या चाहते हैं दिग्विजय सिंह?

यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्र-छात्रों की इसी मुश्किल को वरिष्ठ कांग्रेस नेता और सांसद दिग्विजय सिंह ने उठाया है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम चिट्ठी लिखकर मांग की है कि यूक्रेन से आने वाले मेडिकल स्टूडेंट्स को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में अपनी पढ़ाई पूरी करने की सहूलियत दी जाए. लेकिन साथ ही दूसरी खबर यह भी आई कि जिन छात्रों को विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद इंटर्नशिप पूरी किए बिना देश लौटना पड़ा है, उन्हें भारत में अपनी इंटर्नशिप पूरी करने की छूट दी जाएगी. पहली नजर में लग सकता है कि दिग्विजय सिंह ने जो मसला उठाया, शायद उसका कुछ समाधान हो गया है. लेकिन पूरे मामले को गहराई से देखने पर कुछ और ही तस्वीर नजर आती है.

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NMC ने एलान से कितनी मिलेगी राहत?

दरअसल, नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने एलान किया है कि जो छात्र-छात्राएं विदेश के किसी संस्थान से मेडिकल में ग्रेजुएशन कर चुके हैं, लेकिन इंटर्नशिप पूरी नहीं कर पाए हैं, उन्हें कुछ शर्तों के साथ भारत में इंटर्नशिप पूरी करने की छूट दी जाएगी. इस एलान से कुछ छात्रों को तो राहत मिलेगी, लेकिन जिन छात्र-छात्राओं का ग्रेजुएशन पूरा नहीं हुआ है, उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा. यानी उनकी मेडिकल की अब तक की पढ़ाई पूरी तरह बेकार चले जाने का खतरा बना हुआ है.

युद्ध रुकने पर भी जल्द शुरू नहीं होंगे यूक्रेन के मेडिकल कॉलेज

इन हालात में वे मुद्दे और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जो दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री के नाम लिखी चिट्ठी में उठाए हैं. उन्होंने लिखा है, "यूक्रेन में अध्ययनरत भारत के हजारों छात्रों का संकट दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद भी फिलहाल युद्ध विराम की संभावना नजर नहीं आ रही है. ऐसी स्थिति में यूक्रेन में चिकित्सा शिक्षा लेने गये छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. रूस के हमलों में शैक्षणिक संस्थान भी क्षतिग्रस्त हो गये हैं. इसलिए यूक्रेन में चल रहा युद्ध यदि समाप्त हो भी जाता है, तो भी वहां के मेडिकल कॉलेजों के शीघ्र प्रारंभ होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है.'

यूक्रेन से लौटे छात्रों को अपने खर्च पर पढ़ाए सरकार

इन हालात के मद्देनज़र दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री के नाम लिखी चिट्ठी में मांग की है कि "चिकित्सा क्षेत्र में देश को सेवाएं देने के लिए तैयार हो रहे इन हजारों छात्रों के भविष्य को देखते हुए भारत सरकार यूक्रेन से लौटे छात्रों के लिए एक विशेष योजना बनाये और देश में चल रहे समस्त शासकीय के साथ-साथ निजी मेडिकल कॉलेजों में ऐसे छात्रों को MBBS कोर्स में दाखिला दिलाए. ऐसे सभी स्टूडेंट्स की फीस भारत सरकार को अपनी ओर से जमा करनी चाहिए. चूंकि इन छात्रों का परिवार पूर्व में ही बड़ी धन राशि एडमिशन के नाम पर खर्च कर चुका है.. और ये मध्यमवर्गीय परिवार देश के निजी मेडिकल कॉलेजों में अपने बच्चों को पढ़ाने की हैसियत नहीं रखते हैं."

सरकार नीतिगत फैसला करके दे छात्रों को राहत

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि मौजूदा परिस्थितियों में भारत सरकार को जनहित का ध्यान रखते हुए नियमों में छूट देनी चाहिए. दिग्विजय सिंह ने इसके लिए "यूक्रेन से वापस स्वदेशी मेडिकल स्टूडेंट्स प्रवेश योजना" शुरू करने और अभियान चलाकर सभी छात्रों को उनकी सुविधा अनुसार एडमिशन दिलाने का सुझाव भी दिया है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि 20 हजार से ज्यादा मेडिकल स्टूडेंट्स के भविष्य पर मंडराते अंधकार को दूर करने के लिए सरकार इस बारे में नीतिगत फैसला करके छात्रों और अभिभावकों को राहत देगी.

NMC सर्कुलर में अधूरी पढ़ाई पूरी होने का उपाय नहीं

दिग्विजय सिंह ने अपने पत्र में उन सभी छात्रों की परेशानियों को दूर करने की बात कही है, जो यूक्रेन में युद्ध के कारण अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत लौटने को मजबूर हुए हैं. जबकि नेशनल मेडिकल कमीशन का सर्कुलर सिर्फ उन्हीं छात्रों को राहत देने की बात करता है, जो ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद इंटर्नशिप बीच में छोड़कर लौटे हैं. NMC के सर्कुलर में कहा गया है, "विदेशों में पढ़ने वाले कुछ मेडिकल छात्र कोविड-19 महामारी या युद्ध जैसे हालात की वजह से इंटर्नशिप पूरी नहीं कर पाए हैं. इन छात्रों की तकलीफों और परेशानियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपनी इंटर्नशिप का बचा हुआ हिस्सा भारत में पूरा करने की छूट दी जा सकती है."

क्या कहते हैं देश में लागू मौजूदा नियम?

दरअसल, मौजूदा नियमों के तहत विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को 12 महीने की इंटर्नशिप भी उसी संस्थान में पूरी करनी होती है, जहां वे पढ़ाई कर रहे हैं. इसके बाद भारत लौटने पर उन्हें फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एक्जामिनेशन (FMGE) पास करना होता है. यह परीक्षा पास करने के बाद उन्हें भारत में फिर से 12 महीने की इंटर्नशिप करनी होती है और तब कहीं जाकर वे भारत में चिकित्सक के तौर पर स्थायी रूप से अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. NMC ने इंटर्नशिप के लिए नियमों में थोड़ी छूट भले ही दे दी हो, लेकिन कमीशन के कई अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस से साफ-साफ कहा है कि किसी भी छात्र को भारत के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई पूरी करने या किसी और जगह के कॉलेज में ट्रांसफर कराने की सुविधा दिए जाने की उम्मीद नहीं है.

साल 2002 की गाइडलाइन्स में था ऐसी समस्या का समाधान

दरअसल, देश में लागू साल 2002 की गाइडलाइन्स के तहत युद्ध या अशांति जैसे असामान्य हालात में छात्रों को दूसरे संस्थान में ट्रांसफर किए जाने की सुविधा मौजूद थी. लेकिन हैरानी की बात है कि पिछले साल नवंबर में लागू किए गए नए दिशानिर्देशों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं रखा गया है. नई गाइडलाइन्स में किसी छात्र का ट्रांसफर दूसरे मेडिकल कॉलेज में करने की सुविधा नहीं दी गई है. यह जानकारी भी इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दी है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा 2020 में किए गए एक बड़े बदलाव के तहत मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को खत्म करके देश में मेडिकल एजुकेशन का रेगुलेशन करने की जिम्मेदारी NMC सौंपी जा चुकी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एक अधिकारी ने यह भी बताया है कि शुक्रवार को जारी NMC का सर्कुलर दरअसल यूक्रेन युद्ध से पैदा हालात को ध्यान में रखकर लाया ही नहीं गया है. यह फैसला तो महामारी के दौरान आई दिक्कतों के मद्देनजर पहले ही लिया जा चुका था. ऐसे में क्या उम्मीद की जा सकती है कि सरकार जल्द ही कोई नीतिगत फैसला लेकर यूक्रेन युद्ध की वजह से उपजे हालत का समाधान भी करेगी?

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