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भारत सरकार ने कोरोनावायरस (Coronavirus) के इलाज में कारगर साबित हो रही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) और पैरासिटामॉल जैसी जरूरी दवाओं के निर्यात नियमों में ढील देने का फैसला लिया है. भारत सरकार ने इन दोनों दवाओं पर लगाए गए बैन को आंशिक रूप से हटा लिया है. सरकार का यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दी गई धमकी के बाद सामने आया है. हालांकि भारत सरकार का कहना है कि यह फैसला कोविड-19 महामारी से लड़ने को लेकर देश की वैश्विक प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए लिया गया है.
बता दें कि अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा को लेकर निर्यात बैन हटाने की पहले अपील की और उसके बाद धमकी दे डाली कि अगर भारत ऐसा नहीं करता है तो अमेरिका इसका जवाब देगा.
आखिर क्यों मचा है इस दवा पर इतना बवाल?
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया की पुरानी दवा है. यह दवा ऑटोइम्यून डिसीसेज जैसे rheumatoid आर्थराइटिस और lupus के इलाज में भी इस्तेमाल होती है. भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (IPA) के सेक्रेटरी जनरल सुदर्शन जैन के मुताबिक, Hydroxychloroquine की दुनिया को होने वाली सप्लाई का 70 फीसदी भारत बनाता है. भारत की उत्पादन क्षमता हर माह इस दवा का 40 टन उत्पादित करने की है. ट्रंप प्रशासन इसे कोरोना के इलाज में मददगार रहने की संभावना जता रहा है. अमेरिकी फेडरल ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से अनुमति मिलने के बाद अमेरिका में इस दवा को कुछ अन्य दवाओं के साथ न्यूयॉर्क में लगभग 1500 कोरोना मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है. ट्रंप के मुताबिक, यह दवा सकारात्मक परिणाम दे रही है.
चीन की रिपोर्ट्स में भी माना गया है कारगर
चीन की एक रिपोर्ट का दावा है कि यह दवा 10 अस्पतालों में 100 से ज्यादा मरीजों के लिए कारगर रही. उनकी बीमारी का स्तर अलग-अलग था, लिहाजा दवा की डोज और हर डोज के बीच में अंतराल भी अलग-अलग था. चीन के कुछ अन्य रिसर्चर्स का कहना है कि Hydroxychloroquine लेने वाले 31 मरीजों में खांसी, न्यूमोनिया और बुखार इस दवा को न लेने वाले अन्य 31 मरीजों के मुकाबले जल्दी ठीक हो गया.
मार्च में रोक दिया था निर्यात
भारत ने पिछले महीने इस दवा के निर्यात पर रोक लगा दी थी. जब से यह खबर सामने आई कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना के इलाज में सकारात्मक परिणाम दे रही है, तब से इसकी बिक्री में अचानक से बड़ी तेजी आई. देश में कोरोना वायरस से जंग में इस दवा की कमी न हो, इसे देखते हुए सरकार ने निर्यात बंद करने का फैसला किया था.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिया है 10 करोड़ टैबलेट का ऑर्डर
Ipca लैबोरेटरीज, Zydus Cadila और Wallace फार्मास्युटिकल्स भारत में Hydroxychloroquine बनाने वाली टॉप फार्मा कंपनियां हैं. ये कंपनियां जरूरत पड़ने पर दवा का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने Ipca लैबोरेटरीज और Zydus Cadila को Hydroxychloroquine की लगभग 10 करोड़ टैबलेट का ऑर्डर दिया है. COVID-19 के हर मरीज को इस दवा की 14 टैबलेट के कोर्स की जरूरत है और इसलिए सरकार ने 71 लाख लोगों के इलाज को ध्यान में रखकर 10 करोड़ टैबलेट का ऑर्डर दिया है.
देश की जरूरत को पूरा करने के बाद निर्यात
भारत सरकार का कहना है कि वह हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल दवा को देश की जरूरत का आकलन करने और उसके मुताबिक उसे पूरा करने के बाद मामले दर मामले के आधार पर उन देशों को एक्सपोर्ट करेगी, जो पहले से अपना ऑर्डर भारत को दे चुके हैं. इसके अलावा महामारी से बुरी तरह प्रभावित देशों को भी इसका निर्यात किया जाएगा.
भारत को कम कसे कम 20 देशों से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की सप्लाई करने की अपील मिली है. इनमें पड़ोसी देश श्रीलंका और नेपाल भी शामिल हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) इस दवा को उन लोगो को रिकमेंड करता है, जो कोरोना के संदिग्ध या पुष्ट मरीजों की देखभाल में लगे हैं, जैसे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, जिनमे डॉक्टर, नर्से, सफाई कर्मचारी, हेल्पर आदि.
बिना डॉक्टर के परामर्श इस्तेमाल करना हानिकारक
इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IDMA) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अशोक कुमार मदन का कहना है कि भारत को मलेरिया, lupus, rheumatoid arthritis के इलाज के लिए हर साल लगभग 2.4 करोड़ Hydroxychloroquine टैबलेट्स की जरूरत होती है. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के अपने साइड इफेक्ट भी हैं. इसलिए इसे बिना डॉक्टर के परामर्श इस्तेमाल करना सही नहीं है.
Input: PTI, AP