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Ghantwat suggested setting up a committee to prepare a white paper for making new farm laws. (File)
नरेंद्र मोदी ने भले ही तीन नए कृषि कानूनों को खत्म करने का ऐलान आज किया हो लेकिन इन्हें हटाने के फैसले के संकेत लगभग पंद्रह दिन पहले खत्म हुई बीजेपी राष्ट्र कार्यकारिणी की बैठक में ही मिल गए थे. कार्यकारिणी में जो राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया गया, उसमें कृषि से जुड़े हिस्से में इन तीनों कानूनों का कोई जिक्र नहीं था. यह साफ संकेत था कि सरकार कृषि कानूनों को हटाने पर गंभीरता से विचार कर रही है. जबकि फरवरी में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में न सिर्फ इन कानूनों को किसानों के हित में बताया गया था बल्कि इन्हें लागू करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की प्रशंसा भी गई थी.
प्रस्ताव में नदारद था कृषि कानूनों का जिक्र
फरवरी का यह प्रस्ताव किसानों और सरकार की बातचीत टूटने के एक महीने बाद पारित किया गया था. फरवरी में जब यह प्रस्ताव पारित किया गया था तो पीएम नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे. इसके उलट जब 7 नवंबर को इससे भी अहम राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो प्रस्ताव में सरकार की ओर से किसानों के हित में लागू की गई कई पुरानी और नई योजनाओं का जिक्र था. इनमें फसलों की नई प्रजातियों को जारी करने से लेकर कृषि ऋण, पीएम-किसान, एफपीओ, किसान रेल आदि का तो जिक्र था लेकिन इन तीनों कृषि कानूनों की कोई चर्चा नहीं थी. इसके बाद ही इस बात के संकेत मिलने लगे थे कि सरकार नए कृषि कानूनों को रद्द कर सकती है.
यूपी, पंजाब में नुकसान होने का डर
सरकार ने इस दिशा में इसलिए भी सोचा होगा कि यूपी और पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं. दोनों राज्यों में किसान वोटर बड़ी तादाद में है और यह मुद्दा उसे राजनीतिक तौर पर काफी नुकसान पहुंचा सकता है. इसके साथ ही लखीमपुरी खीरी में किसानों को कुचलकर मारे जाने की घटना से पैदा रोष को देखते हुए सरकार को पुनर्विचार पर मजबूर किया होगा.
कानून हटाने का ऐलान गुरुनानक जयंती पर क्यों?
इससे पहले बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बारे में रिपोर्टरों को ब्रीफ करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पार्टी प्रस्ताव में तीनों कृषि कानूनों का जिक्र हटाने का मामला पर कुछ नहीं कहा. उल्टे उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर विरोध कर किसानों से बातचीत के लिए हमेशा तैयार हैं.
उन्होंने कहा, किसानों को सिर्फ यह बताना है कि उन्हें इस कानून में कहां आपत्ति है.लेकिन उन्होंने इस कानून की उस एक बात का जिक्र नहीं किया है, जिस पर उन्हें आपत्ति है. हालांकि प्रसातव में कृषि कानूनों के जिक्र न होने के बाद ही लगने लगा था कि सरकार अब नरम पड़ती जा रही है और वह इन्हें वापस ले सकती है. पीएम ने इन्हें हटाने का ऐलान गुरुनानक जयंती के दिन किया क्योंकि आंदोलनकारी किसानों में बड़ी तादाद पंजाब के सिख किसानों की है..
(Article: Ravish Tiwari)