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कोयले की किल्लत पर सियासी घमासान क्यों? बिजली संकट के खतरे का बुलडोज़र पॉलिटिक्स से कैसे जुड़ा कनेक्शन?

राहुल गांधी ने कोयले की कमी के बहाने बीजेपी की बुलडोजर राजनीति पर भी निशाना साधा, AIPEF ने दी है चेतावनी, देश के 12 राज्यों में 8 दिन की जरूरत का कोयला ही बचा

राहुल गांधी ने कोयले की कमी के बहाने बीजेपी की बुलडोजर राजनीति पर भी निशाना साधा, AIPEF ने दी है चेतावनी, देश के 12 राज्यों में 8 दिन की जरूरत का कोयला ही बचा

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Viplav Rahi
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कोयले की किल्लत पर सियासी घमासान क्यों? बिजली संकट के खतरे का बुलडोज़र पॉलिटिक्स से कैसे जुड़ा कनेक्शन?

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के मुताबिक देश के कई थर्मल पावर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे हैं.

Risk of Power Crisis Due to Coal Shortage : गर्मी के मौसम में बिजली की बढ़ती मांग के बीच कोयले की कमी की खबरों ने सियासत का माहौल और गर्म कर दिया है. कोयले की कमी मुद्दा बनी तो कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को बीजेपी सरकार पर दोहरा हमला करने का मौका मिल गया. राहुल ने न सिर्फ कोयले की कमी के लिए मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया, बल्कि अपने ट्वीट के जरिए नफरत के बुलडोज़र बंद करने की हिदायत भी दे डाली. इस तरह राहुल ने कोयले के मुद्दे के बहाने बीजेपी की बुलडोज़र पॉलिटिक्स पर भी निशाना लगा दिया.

बुलडोज़र के स्विच बंद करें, बिजली घरों के स्विच ऑन करें : राहुल

राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा है, " 8 साल तक बड़ी-बड़ी बातें करने का नतीजा ये हुआ है कि देश में अब सिर्फ 8 दिन की जरूरत का कोयला बचा है. मोदी दी, स्टैफ्लेशन का खतरा मंडरा रहा है. बिजली कट गई तो छोटे उद्योग बर्बाद हो जाएंगे, जिससे और ज्यादा नौकरियां छिन जाएंगी. नफरत के बुलडोज़र के स्विच बंद कीजिए और पावर प्लांट्स के स्विच ऑन कीजिए."

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अपने इस ट्वीट के साथ राहुल गांधी ने एक ग्राफिक प्लेट भी शेयर की है, जिसमें कोयले की किल्लत से जुड़ी दो खबरों की हेडलाइन्स दिख रही हैं. पहली खबर 18 जून 2018 की है, जिसमें कहा गया है, "कोयला सेक्टर को दशकों के लॉकडाउन से बाहर निकाला गया : पीएम ने किया बड़े कदम का एलान." इस हेडलाइन के ठीक नीचे दूसरी हेडलाइन है. 19 अप्रैल की इस हेडलाइन में लिखा है, "भारत पर मंडराया बिजली कटौती का संकट, बिजली घरों में कोयले की कमी." इस तरह राहुल गांधी अपने इस ट्वीट में एक तरफ जहां बिजली संकट के खतरे को मुद्दा बना रहे हैं, वहीं इसके लिए बीजेपी सरकारों के बुलडोज़र प्रेम पर निशाना साधने से भी नहीं चूक रहे.

कर्नाटक सरकार ने भी कहा कोयले की कमी है

दरअसल, देश में कोयले की कमी का मुद्दा सिर्फ राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेता ही नहीं उठा रहे हैं, खुद बीजेपी के शासन वाली कर्नाटक सरकार भी कोयले की किल्लत से परेशान है. कर्नाटक सरकार के एक आला अधिकारी ने मीडिया से कहा कि राज्य के बिजली घरों में मौजूद कोयला सिर्फ दो दिन ही चल पाएगा. राज्य के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (एनर्जी) जी कुमार नाइक ने मंगलवार को यह भी बताया था कि राज्य सरकार कोयले की सप्लाई बढ़ाने के लिए लगातार केंद्र सरकार से अनुरोध कर रही है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि कर्नाटक में बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता दूसरे राज्यों के मुकाबले कम है, इसलिए हमारी स्थिति उतनी खराब नहीं है.

कोयले की कमी का मुद्दा क्यों उभरा?

देश में कोयले की कमी के मसले ने एक बार फिर से तूल इसलिए पकड़ा, क्योंकि मंगलवार को मीडिया में आई कुछ खबरों में कहा गया कि देश के पावर प्लांट्स में कोयले की भारी कमी हो गयी है, जिसके कारण आने वाले दिनों में बिजली की कमी का सामना करना पड़ सकता है. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) की तरफ से मंगलवार को बताया कि देश भर के थर्मल पावर प्लांट्स कोयले की कमी से जूझ रहे हैं, जिससे देश में बिजली संकट का खतरा मंडराने लगा है. फेडरेशन की तरफ से जारी बयान के मुताबिक देश के 12 राज्यों के थर्मल पावर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे हैं. इन प्लांट्स में औसतन 8 दिन की जरूरत का कोयला ही बचा है. फेडरेशन के प्रवक्ता वी के गुप्ता की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया कि देश के कई राज्य बिजली घरों में कोयले की कमी के कारण बिजली की मांग और सप्लाई का अंतर दूर नहीं कर पा रहे हैं. इसी बयान में यह भी बताया गया कि देश के 150 सरकारी थर्मल पावर स्टेशनों में से 80 में कोयले का स्टॉक गाइडलाइन्स के हिसाब से क्रिटिकल यानी बेहद कम हो चुका है. निजी क्षेत्र के थर्मल पावर प्लांट्स की हालत भी बेहतर नहीं है. ऐसे 54 बिजली घरों में से 28 में कोयले की उपलब्धता क्रिटिकल स्टेज में पहुंच चुकी है.

किन राज्यों में कैसी है हालत?

AIPEF के बयान के मुताबिक देश के उत्तरी इलाकों में सबसे बुरी हालत राजस्थान और उत्तर प्रदेश की है. राजस्थान के सभी सात थर्मल पावर प्लांट्स में कोयले की कमी है, जबकि उत्तर प्रदेश के 4 में से 3 सरकारी पावर प्लांट्स में कोयले की कमी का सामना करना पड़ रहा है. फेडरेशन की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और झारखंड में भी कोयले की कमी के कारण 3 से 8.7 फीसदी तक बिजली कटौती करनी पड़ रही है.

कोल इंडिया ने सप्लाई बढ़ाने का भरोसा दिलाया

हालांकि मंगलवार को ही कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) ने मीडिया को भरोसा दिलाया कि देश के बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी जरूर है, लेकिन हालात अलार्मिंग यानी खतरनाक नहीं हैं. कंपनी ने यह भी कहा कि बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी दूर करने के लिए उत्पादन और बढ़ाया जा रहा है, ताकि बिजली कटौती की नौबत न आए।

क्यों हो रही है कोयले की कमी?

दरअसल देश में हर साल ही गर्मी में बिजली की मांग तेज हो जाती है. जिससे बिजली घरों में कोयले की खपत बढ़ जाती है. इस साल अप्रैल के महीने में ही तेज गर्मी शुरू हो जाने के कारण बिजली की मांग भी जल्द ही पीक पर पहुंच गई है. AIPEF के मुताबिक इस साल अप्रैल के पहले पंद्रह दिनों में बिजली की घरेलू मांग पिछले 38 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है.

पिछले साल भी हुई थी कोयले की किल्लत

इससे पहले पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में भी देश के बिजली घरों में कोयले की कमी के मुद्दे ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. उस वक्त भी ऐसी खबरें आई थीं कि देश के बिजली घरों में कुछ ही दिनों की जरूरत का कोयला बचा है. लेकिन फिर किसी तरह संकट टल गया था. अब कुछ महीनों के भीतर एक बार फिर से वैसे ही हालात पैदा होने की वजह से विपक्ष को सरकार की तरफ से कोयले की सप्लाई का प्रबंधन ठीक से न किए जाने का आरोप लगाने का मौका मिल गया है.

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