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दिल्ली हाईकोर्ट ने CBSE को निर्देश दिया कि वह आठ हफ्तों में यह फैसला करे कि क्या वह 10वीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के लिए ली गई एग्जाम फीस को रिफंड करेगा.
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को CBSE को निर्देश दिया कि वह आठ हफ्तों में यह फैसला करे कि क्या वह 10वीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के लिए ली गई एग्जामिनेशन फीस को रिफंड करेगा क्योंकि उन्हें कोविड-19 महामारी की वजह से रद्द कर दिया गया है. जस्टिस प्रतीक जलान ने सीबीएसई को आदेश दीपा जोसफ की याचिका के संबंध में दिया है, जो सीबीएसई द्वारा मान्यता प्राप्त स्कूल में पढ़ने वाले 10वीं कक्षा के छात्र की मांग हैं और उन्होंने परीक्षा शुल्क के तौर पर 2,100 रुपये का भुगतान किया था.
सीबीएसई के फैसले को दी जा सकेगी चुनौती
कोर्ट ने कहा कि अगर जोसफ संतुष्ट नहीं होती हैं, तो सीबीएसई के फैसले को चुनौती दी जा सकेगी. जज ने आगे कहा कि दोनों तरफ से तर्क सही होना जरूरी है. जस्टिस सलान ने यह भी बात कही उनके बेटे के 12वीं कक्षा में होने की वजह से वे भी याचिका के लाभार्थी हैं, इसके बावजूद पार्टियों को उनके याचिका सुनने से कोई आपत्ति नहीं थी. एडवोकेट रॉबिन राजू, जो जोसेफ की ओर से थे, उन्होंने दलील दी कि क्योंकि बोर्ड परीक्षा को रद्द कर दिया गया है, इसलिए परीक्षा फीस के कम से कम कुछ हिस्से को छात्रों को रिफंड करना चाहिए.
राजू ने दावा किया कि CBSE द्वारा बोर्ड परीक्षा का संचालन करने का खर्च और प्रक्रिया में उसकी भूमिका कम हुई है. उन्होंने कहा कि स्कूल मार्क्स को अपलोड कर रहे थे. हालांकि, कोर्ट ने राजू के साथ असहमति जताई और कहा कि अगर सीबीएसई कुछ नहीं कर रहा है, आप स्कूलों से मार्कशीट लीजिए और जाइए.
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एडवोकेट रुपेश कुमार ने सब्मिट किया कि CBSE एक सेल्फ-फाइनेंसिंग संस्था है और उसके खर्च का इंतजाम मुख्य तौर पर कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले छात्रों से जमा परीक्षा शुल्क से होता है. उन्होंने आगे कहा कि बोर्ड परीक्षा के फिजिकल संचालन और छात्रों द्वारा लिए गए शुल्क का सीधा संबंध नहीं है.