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Euro-Dollar Parity : यूरोप की करेंसी में गिरावट का जिम्मेदार कौन? डॉलर और यूरो में 20 साल बाद क्यों हुई बराबरी?

Reasons of Euro-Dollar Parity : एक साल पहले एक यूरो का मूल्य करीब 1.20 डॉलर था. लेकिन अब दोनों की कीमत तकरीबन बराबर है. सवाल ये कि ऐसा क्यों हो रहा है?

Reasons of Euro-Dollar Parity : एक साल पहले एक यूरो का मूल्य करीब 1.20 डॉलर था. लेकिन अब दोनों की कीमत तकरीबन बराबर है. सवाल ये कि ऐसा क्यों हो रहा है?

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FE Hindi Desk
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Euro and US Dollar Parity : What Are The Main Reasons

यूरो और अमेरिकी डॉलर की कीमतें लगभग बराबर हो गई हैं. 20 साल बाद ऐसा क्यों हो रहा है? (Photo source: REUTERS/ File Photo)

Euro-Dollar Parity : What Are The Reasons: यूरोप की करेंसी यूरो और अमेरिकी डॉलर की कीमतें आपस में लगभग बराबर हो गई हैं. ऐसा लगभग 20 साल बाद हुआ है. इससे पहले बीस वर्षों तक यूरो की वैल्यू हमेशा अमेरिकी डॉलर से ज्यादा ही रही है. लगभग एक साल पहले एक यूरो का मूल्य 1.20 डॉलर के बराबर था. जनवरी 2022 में एक यूरो करीब 1.13 डॉलर का हो गया और अब दोनों की कीमत तकरीबन बराबर है. जाहिर है ऐसा यूरो के मूल्य में गिरावट आने की वजह से हुआ है. लेकिन सवाल ये है कि ऐसा क्यों हो रहा है?  

1. यूरो ज़ोन में महंगाई की ऊंची दर

यूरो में गिरावट की पहली बड़ी वजह है यूरो को अपनी करेंसी मानने वाले 19 देशों में इनफ्लेशन (Inflation) यानी महंगाई के बढ़ने की ऊंची रफ्तार. इन देशों को आमतौर पर यूरो ज़ोन (Euro Zone) या यूरो एरिया (Euro Area) भी कहा जाता है. इस यूरो ज़ोन में जून 2022 के दौरान इंफ्लेशन की औसत दर 8.6 फीसदी की ऊंचाई पर जा पहुंची. इतना ही नहीं, इस इलाके के 14 छोटे देशों में तो महंगाई दर इस औसत से भी काफी ऊपर रही. मिसाल के तौर पर एस्टोनिया में इंफ्लेशन 22 फीसदी तक जा पहुंचा. यूरो ज़ोन के सिर्फ 5 देश ऐसे हैं, जिनमें महंगाई दर 8.6 फीसदी के औसत से नीचे है. 

2. रूस - यूक्रेन युद्ध ने बिगाड़े हालात 

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यूरो ज़ोन में महंगाई के आसमान छूने के लिए काफी हद तक यूक्रेन पर रूस का हमला जिम्मेदार है. इस जंग के कारण क्रूड ऑयल और नेचुरल गैस समेत कई जरूरी चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ गए हैं. यूरोपीय देशों के मुकाबले अमेरिका पर इस युद्ध का काफी कम असर पड़ा है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका के पास तेल-गैस के अपने भंडार भी काफी हैं और साथ ही वजह एनर्जी के वैकल्पिक स्रोतों का इस्तेमाल भी ज्यादा करता है. जाहिर है, इन हालात में अमेरिका की करेंसी यूरोप की करेंसी के मुकाबले ज्यादा मज़बूत हो रही है. 

3. अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी 

अमेरिका में ब्याज दरों में हुई बढ़ोतरी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यूरो में आई गिरावट की दूसरी बड़ी वजह है. पिछले कई महीनों के दौरान अमेरिका में ब्याज दरें काफी तेजी से बढ़ी हैं, जबकि यूरो जोन में ऐसा नहीं हुआ है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने जून 2022 में ब्याज दर में 75 बेसिस प्वाइंट्स यानी 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है, जो पिछले 30 सालों के दौरान एक बार में की गई सबसे बड़ी वृद्धि है. जाहिर है इन ऊंची ब्याज दरों ने अमेरिकी डॉलर वाले एसेट्स में निवेश को ज्यादा आकर्षक बना दिया है. हालांकि अब यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ECB) भी जल्द ही ब्याज दर में 25 बेसिस प्वाइंट्स या 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी करने के संकेत दे रहा है, लेकिन उसके लिए ब्याज दर में वैसी बढ़ोतरी करना बेहद मुश्किल होगा, जैसी अमेरिकी फेड ने की है. ऐसा इसलिए क्योंकि ECB को यूरोज़ोन की लड़खड़ाती आर्थिक विकास दर को संभालने की फिक्र भी करनी है, जिसके लिए ब्याज दरों का नीचा रहना जरूरी है. 

4. ‘सेफ हैवन’ करेंसी है डॉलर 

अमेरिकी डॉलर के ‘सेफ हैवन करेंसी’ यानी दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा होने की इमेज ने भी युद्ध के माहौल में उसकी डिमांड और बढ़ा दी है. ऐसे में यूरो से डॉलर की तरफ कैपिटल का फ्लो यानी पूंजी का बहाव होना बेहद स्वाभाविक है. जिससे डॉलर के मुकाबले यूरो का मूल्य कम हो रहा है. मोटे तौर पर देखें तो यही मुख्य वजहे हैं, जिनके चलते पिछले कुछ अरसे के दौरान यूरोप की करेंसी में लगातार गिरावट आई है.

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