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वर्ष 2050 में चीन को सबसे बड़ा और भारत को दूसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस उत्सर्जक माना जा रहा है. (Image- Pixabay)
Greenhouse Gas Emission: ग्रीन हाउस गैसों का एमिशन यानी उत्सर्जन घटाने के मामले में भारत और चीन का प्रदर्शन बहुत खराब है. एक अमेरिकी संस्था ने पर्यावरणीय प्रदर्शन के आधार पर 180 देशों की एक सूची तैयार की है जिसमें भारत को सबसे नीचे रखा गया है. येल सेंटर फॉर एनवॉरमेंटल लॉ एंड पॉलिसी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क द्वारा हाल ही में प्रकाशित एनवारमेंटल परफॉरमेंस इंडेक्स (Environmental Performance Index - EPI) 2022 में डेनमार्क सबसे ऊपर है.
डेनमार्क के बाद ब्रिटेन और फिनलैंड का नंबर है. डेनमार्क, ब्रिटेन और फिनलैंड को हाल के वर्षों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के चलते ऊपर रखा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक खतरनाक एयर क्वॉलिटी के बेहद खतरनाक स्तर और ग्रीन हाउस गैसों के तेजी से बढ़ रहे उत्सर्जन के चलते पहली बार भारत को इस सूची में सबसे नीचे जगह दी गई है.
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अमेरिका की भी स्थिति अच्छी नहीं
ईपीआई (EPI) को तैयार करते समय 40 परफॉरमेंस इंडिकेटर्स का इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें 11 कैटेगरीज़ में बांटा गया है. इन इंडिकेटर्स से पता चलता है कि कोई देश पर्यावरण के लिए तय नीतिगत लक्ष्यों से अभी कितनी दूर है. इसी आधार पर इस इंडेक्स में क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस, एनवायरमेंटल हेल्थ और इकोसिस्टम वाइटैलिटी के आधार पर 180 देशों की रैंकिंग तय की जाती है. ताजा इंडेक्स में 180 देशों में सबसे कम 18.9 का स्कोर भारत को मिला है. म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) भी पर्यावरण से जुड़े नीतिगत लक्ष्यों को हासिल करने के मामले में काफी खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल हैं. खराब रैंकिंग बताती है कि इन देशों ने पर्यावरण की सस्टेनिबिलिटी से अधिक महत्व इकनॉमिक ग्रोथ को दिया है. चीन भी इस इंडेक्स में 28.4 अंक हासिल करके 161 वें स्थान पर है. पश्चिम के 22 अमीर लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका 22वें स्थान पर है, जबकि पूरी लिस्ट में उसका नंबर 42वां है. ईपीआई रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन के दौरान पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी के चलते अमेरिका की रैंकिंग कम हुई है. रूस इस सूची में 112वें स्थान पर है.
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2050 तक के लिए क्या हैं अनुमान
इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2050 तक चीन दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसें रिलीज करने वाला देश होगा, जबकि भारत इस लिहाज से दूसरे नंबर पर होगा. इन देशों की तरफ से हाल ही में प्रदूषण घटाने का वादा किया गया है, इसके बावजूद अनुमानों में भविष्य के हालात चिंताजनक नजर आ रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ डेनमार्क और ब्रिटेन जैसे चंद देश ही हैं जो वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस न्यूट्रलिटी की स्थिति में पहुंच सकते हैं जबकि चीन, भारत और रूस जैसे अहम देश उलटी दिशा में बढ़ रहे हैं. यानी यहां ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है. ईपीआई प्रोजेक्शन के मुताबिक अगर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का मौजूदा रूझान जारी रहा तो 50 फीसदी से अधिक सिर्फ चार देश चीन, भारत, अमेरिका और रूस से होगा.
(Input: PTI)