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महंगे क्रूड का ग्लोबल इकोनॉमी पर असर
महंगे क्रूड का ग्लोबल इकोनॉमी पर असरCrude Impact On Global Economy: इस साल के शुरू से ही क्रूड की कीमतों में लगातार तेजी देखने को मिल रही है. साल 2019 की बात करें तो अबतक क्रूड में करीब 32 फीसदी की तेजी आ चुकी है. 25 अप्रैल को क्रूड 75 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर पहुंच गया था जो अब 72 डॉलर के आस पास है. अमेरिका ने ईरान से तेल के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है, इससे तेल की कीमतों में तेजी दिखी. क्रूड की कीमतों में तेजी जारी रहने के आसार हैं. जानते हैं कि अगर क्रूड की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाती है तो दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर किस तरह का असर पड़ेगा.
ग्लोबल ग्रोथ पर असर
क्रूड की कीमतों में तेजी का मतलब है कि क्रूड खरीदने वाले देशों का खर्च बढ़ेगा, जिससे उस देश की बैलेंसशीट बिगड़ेगी. घरेलू खर्च बढ़ने से उस देश में महंगाई बढ़ने का डर बन जाता है. दुनिया में तेल के सबसे बड़े खरीददार मसलन चीन और भारत को इसका नुकसान हो सकता है. होने के नाते चीन भी क्रूड में तेजी से डरा हुआ है. यूरोप के कई देश भी आयातित ऊर्जा पर निर्भर हैं.
महंगाई बढ़ेगी
अगर क्रूड का भाव 100 डॉलर से ऊपर बना रहता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी असर होगा. हालांकि, यह डॉलर की मजबूती या कमजोरी पर भी निर्भर करेगा. क्रूड की कीमत डॉलर में तय होती है. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के विश्लेषण में पाया गया कि 2019 के अंत तक ब्रेंट का भाव 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकता है. इसका मतलब है कि ग्लोबल ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट का स्तर 2020 के अंत तक 0.6 फीसदी घट जाएगा. वहीं, महंगाई 0.7 फीसदी बढ़ सकती है.
ईरान और ट्रम्प मार्केट डालेंगे असर
ईरान और अमेरिका का ग्लोबल आॅयल ट्रेड पर काफी असर पड़ सकता है. ईरान से सप्लाई घटने से कच्चे तेल की ग्लोबल सप्लाई में 8 लाख बैरल की कमी आ सकती है. इसका असर कीमतों पर दिख रहा है. इसके अलावा राजनीतिक कारणों से भी इसमें उतार-चढ़ाव और बढ़ सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब और यूएई से क्रूड की सप्लाई बढ़ाने को कहा है ताकि ईरान से क्रूड सप्लाई घटने की भरपाई की जा सके.
Crude महंगा होने से किसे फायदा
क्रूड की कीमतें बढ़ती हैं तो नोमुरा के विश्लेषण के अनुसार सऊदी अरब, रूस, नॉर्वे, नाइजीरिया और इक्वाडोर जैसे देशों को इसका लाभ होगा. तेल उत्पादक देशों की लिस्ट में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हावी हैं. इससे इन देशों का रेवेन्यू बढ़ेगा और चालू खाते के घाटे को दुरुस्त करने में मदद मिलेगी. इन वजहों से वहां की सरकारें ज्यादा निवेश कर पाएंगी.
किसे होगा नुकसान
क्रूड खरीदने वाली उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा. नोमुरा के मुताबिक, तुर्की, यूक्रेन और भारत को इससे नुकसान होगा. इन देशों का चालू खाता और राजकोषीय घाटा बढ़ेगा. क्रूड की कीमत ज्यादा अदा करने से इन देशों की करंसी पर भी असर होगा. इन देशों में स्थानीय मुद्राएं कमजोर होंगी. इससे इन देश में महंगाई बढ़ने का खतरा भी बढ़ेगा.
सेंट्रल बैंकों पर असर
फेडरल रिजर्व के नेतृत्व में, दुनिया भर के सेंट्रल बेंकों ने ने रुख में नरमी का संकेत दिया है. क्योंकि महंगाई कम रहने से नीति निर्माताओं ने सुस्त होते विकास को बढ़ावा देने पर फोकस बढ़ाया है. इस महीने आईएमएफ ने अपने वैश्विक विकास के पूर्वानुमान को कम किया है और कहा कि दुनिया नाजुक दौर में है.
महंगाई बढ़ने का डर
कंज्यूमर प्रइस इंडेक्स में ईंधन का काफी वेटेज होता है. यदि ईंधन की कीमतों में लगातार तेजी बनी रही तो ट्रांसपोर्टेशन और जरूरी सेवाओं की लागत बढ़ेगी. इससे महंगाई बढ़ने का भी खतरा पैदा होगा.
सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर असर
अमेरिकी तेल उत्पादक ईरान से सप्लाई घटने का एडवांटेज उठाना चाहेंगे. हालांकि जरूरी नहीं है कि क्रूड 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने का फायदा अमेरिका को उतना मिल पाए. इससे अमेरिकी कंज्यूमर्स पर दबाव बढ़ेगा, जहां अभी भी स्थिर आर्थिक विकास की स्थिति है. अमेरिका के रिटेल सेल्स पर भी असर होगा.
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