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यूक्रेन से निकलने के बाद हंगरी के जहोनी (Zahony) में एक रेलवे स्टेशन पर फर्श पर आराम करता हुआ भारतीय छात्र. (REUTERS/Bernadett Szabo- March 3, 2022)
Indians Stranded in Ukraine: रूस के हमले के चलते यूक्रेन में फंसे भारतीयों को बाहर निकालने के लिए भारत सरकार लगातार कोशिशें कर रही है. हालांकि भारतीय दूतावास ने दो दिन पहले खार्कीव से भारतीयों को तत्काल निकलकर नजदीक के तीन सुरक्षित स्थानों पर जाने की एडवाइजरी जारी की और इसके बाद करीब 500 भारतीय खार्कीव के बाहर दो दिन से भूखे-प्यासे अनिश्चित होकर इंतजार कर रहे हैं कि अब किधर बढ़ा जाए. खार्कीव के बाहर नजदीकी स्थान पर गए बच्चों का कहना है सबसे नजदीक रूस की सीमा है. इसके अलावा उनका कहना है कि जो निजी बसें हैं, उनका प्रबंध मेडिकल कोर्स में एडमिशन दिलाने वाली एजेंसियां कर रही हैं और 500 डॉलर मांग रहे हैं.
इंडियन एंबेसी ने 2 मार्च को सभी भारतीयों को तत्काल किसी भी तरीके से यानी कि बस या कोई गाड़ी न मिले तो पैदल ही शाम 6 बजे तक खार्कीव शहर छोड़कर नजदीकी तीन स्थानों पर जाने को कहा था. खार्कीव से बाहर निकलने के लिए भारतीय स्टूडेंट्स ट्रेन में नहीं सवार हो सके तो पिसोशिन (Pisochyn) के लिए 11 किमी पैदल सफर किया. भारतीय दूतावास ने यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खार्कीव से निकलकर भारतीयों को पिसोशिन, बबई (Babai) और बेज्लिडिविका (Bezlyudivka) पहुंचने को कहा गया था. यहां से भारतीय नागरिकों को किधर जाना है, इसे लेकर अनिश्चितता है और इस वजह से ये यहां भी फंसे हुए हैं.
बस वाले मांग रहे 500 डॉलर
मध्य प्रदेश के शिवपुरी के हिमांशु राज मौर्य खार्कीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी (KNMU) में पहले साल के मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि दो दिन पहले वह पिसोशिन पहुंचे और उन्हें एक दिन में ब्रेड की एक सिंगल स्लाइस या एक कटोरी सूप मिल रहा है. इसके अलावा जो भी बसें यहां पर मिल रही हैं, उसके लिए उन्हें 500 डॉलर (38212.75 रुपये) मांगे जा रहे हैं जबकि उनके पास एक डॉलर (76.43 रुपये) भी नहीं है. हिमांशु 2 मार्च से पहले अपने हॉस्टल के बंकर में थे और 2 मार्च को पैदल ही वह रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ चले. वहां हॉस्टल के करीब 1 हजार लोग थे और जब वह स्टेशन पहुंचे थे तो यूक्रेन के लोग उन्हें ट्रेन पर नहीं चढ़ने दे रहे थे. कहा गया कि सिर्फ लड़कियां व बच्चों को ही ट्रेन पर चढ़ने की मंजूरी मिलेगी लेकिन भारतीय लड़कियों को भी ट्रेन में सवार नहीं होने दिया. स्टेशन पर हमला भी किया गया और वे नजदीकी मेट्रो स्टेशन गए. हालांकि उसके बाद ए़डवायजरी आने के बाद वह Pisochyn की तरफ पैदल ही बढ़ चले.
एडमिशन दिलाने वाली एजेंसियां कर रही बसों का प्रबंध
KNMU में पहले साल मेडिकल की पढ़ाई कर रहे झारखण्ड के हजारीबाग के सागर कुमार गुप्त का कहना है कि पूरे इलाके में कर्फ्यू है और खाने की व्यवस्था करना बहुत कठिन है. बमबारी की आवाज सुनाई दे रही है. सागर के मुताबिक पिसोशिन में इस समय करीब 500 भारतीय हैं. इसी मेडिकल कॉलेज में चौथे वर्ष के स्टूडेंट अयान फैज (भोपाल से) ने बताया कि कुछ लोगों ने अपने पैसों से निजी बसों से सफर किया है और करीब 900 लोग अभी भी पिसोशिन में हैं. हिमांशु और अयान का कहना है कि निजी बसों का इंतजाम वे एजेंसियां कर रही हैं जो एडमिशन कराने में मदद की थी. उनका कहना है कि इसके आगे किधर जाया जाए, यह समझ नहीं आ रहा कि हंगरी की सीमा की तरफ बढ़ें या पोलैंड.
रूस की सीमा सबसे अधिक नजदीक
KNMU में पहले साल के एक मेडिकल स्टूडेंट ने बताया कि खार्कीव के रेलवे स्टेशन पर भय का माहौल था और बहुत कम ही लोग चढ़ पा रहे थे. कुछ लोगों को चोटें भी आई हैं. स्टूडेंट ने बताया कि वे सभी पैदल ही पिसोशिन की तरफ बढ़े और उनके पास खाने को कुछ भी नहीं था. पिसोशिन में अभी 500-600 लोग फंसे हैं. एजेंसियां बसों का प्रबंध कर रही हैं और यहां से पोलेंड की सीमा तक ले जाया जाएगा लेकिन उनसे पैसे भी मांगे जा रहे हैं. छात्र ने बताया कि जहां वे हैं, वहां से रूस की सीमा सबसे अधिक नजदीक है. भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि खार्कीव में करीब 300 और सूमी में 700 भारतीय फंसे हुए हैं. इसके अलावा पिसोशिन में 900 से अधिक भारतीयों को पांच बसों में निकाला जा रहा है जबकि लीव (Lyiv) के समीप पश्चिमी सीमाओं पर 1 हजार से भी कम लोग हैं.
(आर्टिकल: इंडियन एक्सप्रेस)