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NASA को मंगल ग्रह पर मिली बड़ी कामयाबी, सतह के कॉर्बन डाईऑक्साइड से बनाया ऑक्सीजन

NASA ने पहली बार मंगल ग्रह के वातावरण में मौजूद कॉर्बन डाइन ऑक्साइड रिच वातावरण को ऑक्सीजन में बदलने में सफलता हासिल की है.

NASA ने पहली बार मंगल ग्रह के वातावरण में मौजूद कॉर्बन डाइन ऑक्साइड रिच वातावरण को ऑक्सीजन में बदलने में सफलता हासिल की है.

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FE Online
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मार्स की सतह पर प्रीजरवेंस रोवर के साथ उतरे मार्स ऑक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट (MOXIE) ने मंगल की सतह पर अपना पहला प्रयोग वहां के वातावरण में ऑक्सीजन बनाकर किया.

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA को मंगल ग्रह पर अपने मिशन में अहम सफलता हासिल हुई है. नासा ने पहली बार मंगल ग्रह के पतले कॉर्बन डाइन ऑक्साइड रिच वातावरण को ऑक्सीजन में बदलने में सफलता हासिल की है. 18 फरवरी को मार्स की सतह पर प्रीजरवेंस रोवर के साथ उतरे मार्स ऑक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट (MOXIE) ने मंगल की सतह पर अपना पहला प्रयोग वहां के वातावरण में ऑक्सीजन बनाकर किया. नासा की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक यह प्रयोग 20 अप्रैल को पूरा हुआ और इसमें 5.4 ग्राम ऑक्सीजन तैयार हुआ जो किसी एस्ट्रोनॉट के लिए 10 मिनट तक सांस लेने के लिए पर्याप्त है. मंगल ग्रह पर भेजे गए छह पहिए वाले रोबोट में एक टोस्टर साइज का एक्सपेरिमेंट इंस्ट्रूमेंट लगा हुआ है जिसने मंगल की सतह पर अपना पहला प्रयोग यह किया.

मार्स के वातावरण में 96 फीसदी कॉर्बन डाईऑक्साइड है और मोक्सी ने कॉर्बन डाईऑक्साइड में ऑक्सीजन अणुओं को अलग कर ऑक्सीजन बनाने में सफलता हासिल की है. कॉर्बन डाईऑक्साइड एक कॉर्बन और दो ऑक्सीजन परमाणुओं से बना होता है. इस प्रक्रिया में मंगल के वातावरण में कॉर्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जित होता है. इस प्रक्रिया में 800 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत पड़ती है. ऐसे में मोक्सी को अधिक तापमान सहने लायक बनाया गया है.

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एस्ट्रोनॉट्स के अलावा रॉकेट्स के लिए भी ऑक्सीजन है जरूरी

MOXIE के प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर माइकल हेत ने कहा कि ऑक्सीजन न सिर्फ अंतरिक्षयात्रियों बल्कि रॉकेट्स के लिए भी जरूरी है. माइकल का कहना है कि हम सभी ऑक्सीजन लेते हैं लेकिन इसके अलावा रॉकेट प्रोपेलंट भी ऑक्सीजन पर निर्भर करता है. नासा के इस नए प्रयोग का फायदा भविष्य में मंगल ग्रह पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स को मंगल की सतह से धरती वापस लौटने के लिए मिलेगा.

मंगल तक अधिक ऑक्सीजन ढोने की नहीं होगी जरूरत

रॉकेट के ईंधन को जलाने के लिए इसके वजन के मुताबिक अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. माइकल ने जानकारी दी कि मंगल ग्रह की सतह पर चार एस्ट्रोनॉट्स को भेजने के लिए करीब 7 मीट्रिक टन रॉकेट फ्यूल और 25 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत होगी. इसकी तुलना में मंगल की सतह पर एक साल तक रूककर काम करने के लिए एस्ट्रोनॉट्स को कम ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी और अनुमानत: एक मीट्रिक टन ऑक्सीजन प्रयोग करेंगे. माइकल के मुताबिक 25 टन ऑक्सीजन धरती से मंगल तक भेजना बहुत बड़ा टास्क है. इसकी बजाय उनका कहना है कि एक टन ऑक्सीजन कंवर्टर जो MOXIE का अधिक शक्तिशाली उत्पाद है, वह 25 टन मंगल की सतह पर ऑक्सीजन बना सकेगा और यह अधिक बेहतर होगा.

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