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चीन की इस एक कंपनी से खतरे में अमेरिका की सुरक्षा! करना पड़ गया बड़ा फैसला

भारत में यूनिवर्सिटीज पर राजनीतिक दबाव का आरोप लगता रहा है और अमेरिका का उदाहरण दिया जाता रहा है कि वहां यूनिवर्सिटीज को एकदम फ्री हैंड मिला हुआ है. हालांकि यह सच नहीं है.

भारत में यूनिवर्सिटीज पर राजनीतिक दबाव का आरोप लगता रहा है और अमेरिका का उदाहरण दिया जाता रहा है कि वहां यूनिवर्सिटीज को एकदम फ्री हैंड मिला हुआ है. हालांकि यह सच नहीं है.

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Bloomberg
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हुवाई को ट्रंप प्रशासन मान रहा सुरक्षा के लिए खतरा

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भारत में यूनिवर्सिटीज पर राजनीतिक दबाव का आरोप लगता रहा है, और अमेरिका का उदाहरण दिया जाता रहा है कि वहां यूनिवर्सिटीज को एकदम फ्री हैंड मिला हुआ है. हालांकि यह सच नहीं है. अमेरिकी सरकार के दबाव में अमेरिकी की टॉप यूनिवर्सिटीज इस समय Huawei टेक्नोलॉजीज से रिसर्च के लिए फंडिंग लेने से परहेज कर रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अमेरिकी यूनिवर्सिटीज पर यह दबाव बना हुआ है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति चिंताओं को देखते हुए चीनी टेलीकम्युनिकेशंस कंपनियों से कोई संबंध न रखें.

7 साल में कंपनी ने दिए 74 करोड़ रुपये

अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ऐट बर्कले का कहना है कि वे हुवावे के मिलने वाले फंड में कटौती कर रही हैं. हुवावे ने 2012 से लेकर 2018 तक 9 यूएस स्कूल्स को टेक्नोलॉजी और कम्युनिकेशंस प्रोग्राम्स के लिए करीब 74 करोड़ रुपये के गिफ्ट और कांट्रैक्ट दिए. यह आंकड़ा अमेरिका के एजुकेशन डिपार्टमेंट का है.

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सितम्बर में FBI ने की थी बैठक

एसोसिएसन ऑफ अमेरिकन यूनिवर्सिटीज के वाइस प्रेसिडेंट टोबिन स्मिथ ने बताया कि अधिक से अधिक यूनिवर्सिटीज जल्द ही चीनी कंपनियों से मिलने वाले फंडिंग में बड़ी कटौती करने जा रही है. स्मिथ 62 अमेरिकी रिसर्च इंस्टीट्यूट्स का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने बताया कि सितम्बर में अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने इसे लेकर यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट्स के साथ एक बड़ी बैठक भी की थी.

अब तक रही हैं स्वतंत्र, लेकिन हुवावे का मामला अलग

अमेरिकी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स अभी तक किसी भी दबाव से मुक्त रही हैं और यहां वैश्विक स्तर पर बौद्धिकता का आदान-प्रदान होता था लेकिन हुवावे का मामला एकदम अलग है. अब तक अमेरिकी संस्थान सरकारी, राजनीतिक और कॉरपोरेट प्रभाव से मुक्त होकर अपनी फंडिंग का इंतजाम करती थी लेकिन हुवावे का मुद्दा उनके लिए भी संवेदनशील बन गया है. बर्केले वाइस चांसलर फॉर रिसर्च रैंड कैट्ज ने कहा कि हुवावे के साथ अब तक बेहतर संबंध रहे हैं लेकिन कंपनी के बिजनस प्रैक्टिसेज ने सुरक्षा चिंताओं को बढ़ावा दिया है.

हुवावे ट्रंप प्रशासन मान रहा सुरक्षा के लिए खतरा

चीनी कंपनी हुवावे को ट्रंप प्रशासन सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. अमेरिका के मुताबिक हुवावे अमेरिकी कंपनियों के सीक्रेट चीन सरकार को सौंप रहा है. हुवावे की चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर को कुछ समय पहले कनाडा में ऐसे ही मामले में कनाडा से गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद से अमेरिका और चीन के बीच तनाव और बढ़ गया. चीन में भी अब हुवावे का मुद्दा राष्ट्रीयता का बन गया है.

Huawei फंडिंग के जांच की घोषणा

इस मामले में अमेरिकी सांसद जिम बैंक्स ने मंगलवार को घोषणा की कि जिन अमेरिकी संस्थानों में चीनी फंडिंग की जांच होनी चाहिए. बैंक्स ने हुवावे, जेडटीई और कंफ्यूसियस को 'सांप' कहते हुए कहा कि अमेरिकी संस्थानों ने अब चीनी फंडिंग में कटौती करने के लिए तैयार हो गए. बैंक्स के मुताबिक अमेरिका के 100 से अधिक कैंपसों में चीन द्वारा फंडेड समूह अपनी भाषा और संस्कृति का प्रचार करते हैं.

हुवावे इनोवेशन रिसर्च प्रोग्राम में 49 लाख रुपये तक की फंडिंग

चीनी कंपनी हुवावे दुनिया भर से रिसर्च स्कालर को अपने इनोवेशन रिसर्च प्रोग्राम के लिए आमंत्रित करता है. इसमें उन्हें 21 लाख रुपये (30 हजार डॉलर) से 49 लाख रुपये (70 हजार डॉलर) तक का फंड मिलता है. रिसर्च स्कालर को कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी, कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग और इनसे जुड़े फील्ड में रिसर्च का मौका मिलता है. इस रिसर्च प्रोग्राम के लिए हुवाई का कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी और हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी समेत करीब 1000 संस्थानों से टाई-अप है.

ऑक्सफोर्ड ने भी किया मना

ऐसा नहीं है कि सिर्फ अमेरिकी यूनिवर्सिटीज ही हुवावे से अपने संबंधों को लेकर विचार कर रही हैं. ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी इस राह पर है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने जनवरी में ही हुवावे से नई फंडिंग लेने से मना कर दिया. वर्तमान में चल रहे रिसर्च प्रोग्राम के लिए फंडिंग जारी रहेगी.