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भारत, रूस और चीन समेत कुछ देशों ने छह मानवाधिकार समूहों को परामर्शदाता का दर्जा देने का विरोध किया था. (Image- Pixabay)
ऑनलाइन वर्ल्ड डिक्शनरी विकीपीडिया (Wikipedia) का संचालन करने वाले फाउंडेशन समेत छह मानवाधिकार संगठनों को कई साल की देरी के बाद आखिरकार संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिल गयी है. यह मान्यता मिलने के बाद वे अब आर्थिक विकास और समाजिक मुद्दों पर नजर रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था में अपने मुद्दे पेश कर सकेंगे और चर्चा में भाग ले सकेंगे. इन्हें परामर्शदाता के रूप में मान्यता देने वाले प्रस्ताव का भारत, चीन और रूस समेत कुछ देशों ने विरोध किया था.
संयुक्त राष्ट्र की मान्यता हासिल करने वाले छह संगठनों में बेलारूस की ‘हेलसिंकी कमेटी’, स्वीडन की ‘डायकोनिया’, इटली की ‘नो पीस विदआउट जस्टिस’, ‘एस्टोनिया इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमैन राइट्स’ और अमेरिका के दो समूह ‘सीरियन-अमेरिकन मेडिकल सोसायटी’ और ‘विकीमीडिया फाउंडेशन’ शामिल हैं.
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अमेरिका ने जून में प्रस्ताव किया था पेश
संयुक्त राष्ट्र की नॉन-गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन्स से जुड़ी एक कमेटी के सामने अमेरिका ने इन छह समूहों पर मतदान कराने का जून में प्रस्ताव पेश किया था. हालांकि उस समय कोई कदम नहीं उठाया जा सका था. यह समिति संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद की मान्यता देने के अनुरोधों पर फैसला लेती है. बाद में अमेरिका, इटली, स्वीडन और एस्टोनिया ने एक प्रस्ताव पेश किया, जिस पर गुरुवार को मतदान हुआ. इस प्रस्ताव के पक्ष में 23 देशों ने मतदान किया, सात ने इसके खिलाफ मतदान किया और 18 सदस्य देश मतदान से दूर रहे.
भारत और रूस ने इस प्रस्ताव का किया विरोध
रूस ने इन छह मानवाधिकार समूहों को परामर्शदाता का दर्जा देने का विरोध किया. इसके अलावा चीन, भारत, कजाखस्तान, निकारागुआ, नाइजीरिया और जिम्बाब्वे ने भी इसका विरोध किया. वहीं मानवाधिकार निगरानी संगठन में संयुक्त राष्ट्र के निदेशक लुइस चार्बोनियु का कहना है कि छह मानवाधिकार समूहों को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता देने का फैसला सही दिशा में लिया गया निर्णय है, लेकिन यह उन सैकड़ों संगठनों का महज एक छोटा-सा हिस्सा है, जिनके आवेदन रूस, चीन और अन्य सरकारों ने अनुचित रूप से वर्षों से रोके हुए हैं.
(इनपुट: पीटीआई)