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अमेरिकी हाउस की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है. (Image- Pixabay)
अमेरिकी हाउस की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है. पेलोसी के दौरे को लेकर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई है और इस 'गलती' के लिए अमेरिकी को कीमत चुकाने की चेतावनी दी है. वहीं चीन ने ताइवान की सीमा के समीप ही युद्ध अभ्यास भी शुरू कर दिया है जिसके बाद ताइवान ने वैकल्पिक रास्ते के रूप में जापान और फिलीपींस से बातचीत शुरू कर दिया है. पेलोसी ने ताइवान में कहा कि अमेरिका यथास्थिति का सम्मान करता है लेकिन बलपूर्वक ताइवान भी कुछ भी कराने का समर्थन नहीं करता है. इन सब वजहों से चीन और अमेरिका के बीच तल्खी बढ़ रही है. आइए जानते हैं कि ताइवान को लेकर चीन इतना आक्रामक क्यों है और ताइवान की दुनिया के लिए क्या भूमिका है.
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ताइवान को अपना हिस्सा मानता है चीन
चीन ग्रेटर चाइना यानी वन चाइना पॉलिसी की तरफ बढ़़ रहा है और वह ताइवान को भी इसमें शामिल करता है. यह पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर के बीच स्थित है जिसके उत्तर-पूर्व में जापान, उत्तर-पूर्व में जापान और दक्षिण में फिलीपींस है. वर्ष 1683 में चीन के चिंग वंश ने इस पर कब्जा कर लिया लेकिन 1895 में चीन-जापान के युद्ध के बाद इस पर जापान का कब्जा हो गया. वर्ष 1911 में एक बार फिर चिंग वंश को हटाकर रिपब्लिक ऑफ चाइना बना और इसने द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया तो ताइवान का नियंत्रण चीन के पास आ गया.
वर्ष 1949 में चीन में गृह युद्ध हुआ और माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग आई शेक के नेतृ्त्व वाली राष्ट्रावादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया. हार के बाद चियांग आई शेक ताइवान चले आए और वहां अपनी सरकार बना ली. चीन में कम्युनिस्टों ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की और इसके दो महीने बाद ताइवान में चियांग की निर्वासित सरकार ने प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिक ऑफ चाइना की. दोनों ने ही पूरे चीन की एकमात्र वैध सरकार होने का दावा किया.
अमेरिका ने 70 साल पहले लिया ताइवान की रक्षा का दायित्व
वर्ष 1954-55 और 1958 में चीन ने ताइवान के नियंत्रण वाले कुछ द्वीपों पर बमबारी की तो अमेरिका को बीच में आना पड़ा. अमेरिकी कांग्रेस ने इसे लेकर फार्मोसा प्रस्ताव किया जिसके तहत तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर को रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) की रक्षा के लिए अधिकृत किया गया. वर्ष 1995-96 में जब चीन ने ताइवान के आस-पास के समुद्रों में मिसाइलों का परीक्षण शुरू किया तो वियतनाम युद्ध के बाद से इस क्षेत्र में सबसे बड़ी अमेरिकी सेना भेजी गई.
ताइवान की क्या है वैश्विक स्थिति
चीन ताइवान को अपनी वन चाइना नीति का हिस्सा मानता है तो ताइवान खुद को अलग स्वतंत्र देश मानता है. ताइवान ने चीन के एक देश-दो व्यवस्था के सिद्धांत को नकार दिया है. 1949 से ही दोनों देश अलग-अलग शासन व्यवस्था में संप्रभु राष्ट्र के तौर पर काम कर रहे हैं. विश्व के 15 देश ताइवान को अब तक मान्यता दे चुके हैं. अमेरिका के ऊपर ताइवान की सुरक्षा की जिम्मेदारी है लेकिन उसने ताइवान को अब तक मान्यता नहीं दिया है. अमेरिका 70 के दशक से ही वन चाइना की पॉलिसी को बनाए रखा है लेकिन इसके ताइवान के साथ भी अनाधिकारिक तौर पर संबंध हैं.
ताइवान दुनिया के लिए कितना अहम
अभी कुछ समय पहले चिप की किल्लत के चलते ऑटो सेक्टर, इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री, मोबाइल इंडस्ट्री बुरी तरह जूझ रही थी. इसी चिप को लेकर ताइवान दुनिया भर के देशों का आकर्षण का केंद्र है. ताइवान की ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी या टीएसएमसी दुनिया भर की करीब 60 फीसदी चिप सप्लाई करती है और इसके क्लाइंट्स में एप्पल, क्वॉलकॉम और एनवीडिया शुमार हैं.
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