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Asset Allocation: मंदी और तेजी को लेकर है कनफ्यूजन, तुरंत अपने निवेश में लाएं विविधता, कैसा होना चाहिए पोर्टफोलियो

Asset Allocation Strategy: डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में किस एसेट क्लास का कितना हिस्सा हो, यह निवेशक के रिस्क लेने और फाइनेंशियल गोल के अनुसार होना चाहिए.

Asset Allocation Strategy: डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में किस एसेट क्लास का कितना हिस्सा हो, यह निवेशक के रिस्क लेने और फाइनेंशियल गोल के अनुसार होना चाहिए.

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Sushil Tripathi
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Multi Asset Allocation

Asset Allocation: यूएस सहित ग्लोबल बाजारों पर अभी दबाव दिख रहा है, घरेलू बाजार में भी निवेशक सतर्क हैं. (file image)

Asset Allocation Strategy: यूएस फेडरल रिजर्व बैंक ने इस साल एक बार और रेट हाइक के संकेत दिए हैं. यूएस फेड का कहना है कि महंगाई से लड़ाई जारी रहेगी. कुछ और बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भी ऐसे ही संकेत दे रही हैं. ऐसे में यह स्पष्ट है कि इकोनॉमी पर महंगाई का दबाव अभी बना हुआ है. हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि अर्थव्यवस्थाएं इस पर किस तरह से रिएक्ट करती हैं. जो भी सेंट्रल बैंक मॉनेटरी पॉलिसी को लेकर अभी बहुत नरमी नहीं दिखा रहे. ऐसे में इसका असर इक्विटी बाजारों पर दिख रहा है. पिछले कुछ सेशन में ज्यादातर सयम यूएस सहित ग्लोबल बाजारों पर दबाव दिखा है. घरेलू बाजार में भी निवेशक सतर्क हैं और आगे गिरावट की आशंका सता रही है. ऐसे में एसेट अलाकेशल स्ट्रैटेजी बेहतर विकल्प हो सकती है. एक्सपर्ट भी कहते हैं कि जब भी बाजार को लेकर आशंका हो अपना पार्टफोलियो डाइवर्सिफाइड करें.

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क्या है एसेट अलोकेशन

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एसेट अलोकेशन का मतलब है डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो. यानी पोर्टफोलियो में अलग अलग एसेट क्लास को कुछ न कुछ हिस्सा देना. मसलन पोर्टफोलियो में इक्विटी, डेट, फिक्स्ड इनकम, गोल्ड या अन्य विकल्प का मिश्रण होना चाहिए. किस एसेट क्लास का कितना हिस्सा हो, यह निवेशक के रिस्क लेने और फाइनेंशियल गोल के अनुसार होना चाहिए. अलग में अलग अलग एसेट क्लास अलग अलग साइकिल में मार्केट लीडर बन सकते हैं. यानी उनका प्रदर्शन अलग अलग साइकिल में अलनग अलग हो सकता है. ऐसे में अगर कभी डेट में गिरावट आती है तो इक्विटी उसे बैलेंस कर सकता है. वहीं इक्विटी या डेट में गिरावट को गोल्ड या कमाेडिटी से बैलेंस किया जा सकता है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

पीजीआईएम इंडिया म्‍यूचुअल फंड के चीफ एक्‍जीक्‍यूटिव ऑफिसर अजीत मेनन का कहना है कि एसेट अलोकेशन का निर्णय महत्वपूर्ण है, लेकिन एक स्टेबल फिक्‍स्‍ड एसेट अलोकेशन स्‍ट्रैटेजी इसका जवाब नहीं है. एक एनालिटिकल एसेट अलोकेशन स्‍ट्रैटेजी की आवश्यकता है, जो बाजार के बदल रहे माहौल और समय के साथ निवेशकों की बदलती आवश्यकताओं के अनुकूल हो सके. इस तरह, लो कोरिलेटेड एसेट क्लास के बीच डाइवर्सिफिकेशन, फंड मैनेजर की पसंद, एक्टिव और पैसिव फंडों का संयोजन सभी महत्वपूर्ण विचार करने योग्य बाते हैं. इन बेनेफिट को हासिल करने के लिए बाजार में बने रहना और हर समय निवेश को बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है.

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एसेट क्लास के अंदर भी डाइवर्सिफिकेशन जरूरी

अजीत मेनन का कहना है कि रिटर्न की परिवर्तनशीलता के कारण, एसेट क्लास के अंदर भी डाइवर्सिफिकेशन जरूरी है. भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में, ग्रोथ स्टॉक बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, जबकि विकसित और मैच्‍योर अर्थव्यवस्थाओं में वैल्यू स्टॉक बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. फिलहाल निवेशकों को ग्रोथ और क्वालिटी निवेश के मिक्‍स स्ट्रैटेजी अपनानी चाहिए. पिछले दो दशकों में इस अप्रोच ने भारतीय बाजारों में अच्छा काम किया है. हालांकि इस दौरान खराब प्रदर्शन के फेज भी रहे हैं, लेकिन ग्रोथ-क्वालिटी वाले निवेश ने हमेशा कमबैक किया है. अभी वैल्यू-ओरिएंटेड शेयरों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. साइक्लिक (चक्रीय) शेयरों का प्रदर्शन बेहतर है और लिक्विडिटी के कारण स्‍मॉल कैप कंपनियां बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं. उम्मीद है कि लंबी अवधि में बाजार में फंडामेंटल के आधार पर ग्रोथ-क्वालिटी शेयरों में ग्रोथ जारी रहेगी.

अभी क्या करना चाहिए

समझदारी वाला अप्रोच यह है कि शॉर्ट टर्म उतार-चढ़ाव और सापेक्ष रूप से अंडर परफॉर्मेंस के चरणों पर रिएक्ट न करें और जल्दबाजी में किसी तरह का पोर्टफोलियो एक्‍शन न लें. पोर्टफोलियो से अक्सर खराब प्रदर्शन करने वाले विकल्पों को हटा दें और बिना समय खराब किए अपना पूरा निवेश बेहतर प्रदर्शन करने वाले विकल्पों में करें.

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