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हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते समय इन गलतियों से बचें, सही पॉलिसी चुनने में मिलेगी मदद

आइए ऐसी कुछ चीजों के बारे में जानते हैं जिनसे हेल्थ प्लान को खरीदते समय बचना चाहिए.

आइए ऐसी कुछ चीजों के बारे में जानते हैं जिनसे हेल्थ प्लान को खरीदते समय बचना चाहिए.

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beware of these mistakes while buying health insurance plan keep these things in mind to buy correct policy

आइए ऐसी कुछ चीजों के बारे में जानते हैं जिनसे हेल्थ प्लान को खरीदते समय बचना चाहिए.

Health insurance: हेल्थ इंश्योरेंस समय के साथ तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और लोगों के बीच इसकी मांग बढ़ रही है. हेल्थ पॉलिसी की बिक्री केवल मेट्रो शेहरों में ही नहीं बढ़ रही है जहां जागरूकता का स्तर मुकाबले में ज्यादा है, बल्कि यह छोटे शहरों और कस्बों में भी तेजी से बढ़ रही है. भारत में लोगों को इस बात का पता चला है कि हेल्थ केयर की बढ़ती कीमत से लड़ने और खुद को किसी गंभीर बीमारी से सुरक्षित करने का एकमात्र तरीका एक कॉम्प्रिहैन्सिव हेल्थ इंश्योरेंस प्लान खरीदना है.

अधिकतर लोगों को इस बारे में नहीं पता होता कि अपने या परिवार के लिए हेल्थ इंश्योरेंस प्लान कैसे चुनें. आइए ऐसी कुछ चीजों के बारे में जानते हैं जिनसे हेल्थ प्लान को खरीदते समय बचना चाहिए.

अपनी मेडिकल हिस्ट्री को लेकर बातें छुपाना

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हेल्थ पॉलिसी को पाने की अपनी उत्सुकता में, बहुत से लोग पॉलिसी के ऐप्लीकेशन फॉर्म में अपनी मेडिकल हिस्ट्री का खुलासा नहीं करते हैं. कुछ लोग ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें इस बात का पता होता है कि इन स्थिति जैसे डायबिटीज, ज्यादा ब्लड प्रेशर आदि के बारे में बताने से उनकी ऐप्लीकेशन रिजेक्ट हो सकती है और दूसरे ज्यादा आसल की वजह से इसे छोड़ देते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि किसी तथ्य के बारे में नहीं बताना बीमा कंपनियों द्वारा गलत समझा जाता है और वे आपके क्लेम को रिजेक्ट कर सकती हैं.

नियोक्ता के हेल्थ प्लान पर निर्भर रहना

कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों को हेल्थ प्लान ऑफर करती हैं. इसकी वजह से बहुत से लोगों को लगता है कि अलग से हेल्थ इंश्योरेंस प्लान को लेने की कोई जरूरत नहीं है. यह समझें कि नियोक्ता द्वारा दिया गया ग्रुप कवर आपके नौकरी छोड़ने पर खत्म हो जाता है.

को-पे को चुनना

प्रीमियम को कम करने के लिए कई बार लोग को-पे की सुविधा को चुनते हैं. को-पे का मतलब होता है कि क्लेम की स्थिति में पॉलिसी धारक को खर्चों का कुछ प्रतिशत (उदाहरण के लिए 10 फीसदी) खुद भुगतान करना होगा. हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का मकसद तआपके पैसे को जितना संभव हो, उतना सुरक्षित करना रहता है. को-पे को चुनने से प्रीमियम में मिलने वाला डिस्काउंट बहुत ज्यादा नहीं होता.

सभी हेल्थ प्लान को एक समान मान लेना

आज बाजार में कई तरह की हेल्थ पॉलिसी मौजूद हैं जैसे स्टेपल हेल्थ प्लान, एक्सीडेंट पॉलिसी, गंभीर बीमारी के लिए स्पेशल कवर आदि. हर तरह की पॉलिसी में मिलने वाले बेनेफिट्स अलग हैं इसलिए किसी प्लान को उसके बेनेफिट्स डिटेल में पढ़े बिना मत चुनें.

अपने पैसे को वापस पाने की उम्मीद करना

बहुत से लोगों के लिए इंश्योरेंस अभी भी फिक्स्ड डिपॉजिट और म्यूचुअल फंड का एक विकल्प है. लोग उन हेल्थ प्लान को खोजते हैं, जो उन्हें मेच्योरिटी पर प्रमियम का कुछ भाग वापस देता है. हमें हेल्थ प्लान में ऐसे कुछ फीचर्स की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. इसका मकसद प्रीमियम में कुछ हजार रुपये बचाने की जगह लाख रुपये का खर्च बचाना है.

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जरूरत से ज्यादा पॉलिसी खरीदना

जहां देश के ज्यादातर हिससों में हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर कम जागरूकता है , वहीं आबादी का छोटा हिस्सा है जो कई हेल्थ पॉलिसी को खरीदते हैं. वे ज्यादा कवरेज की राशि के साथ अतिरिक्त राइडर लेते हैं जिससे उनकी आय का एक अच्छा भाग हेल्थ इंश्योरेंस पर खर्च हो जाता है. इंश्योरेंस प्लान को जरूरत से ज्यादा खरीदने से बचें.

छोटे खर्चों के लिए क्लेम करना

कुछ लोग हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को एटीएम मशीन की तरह समझते हैं जो उनके रोजाना के मेडिकल और इलाज के खर्चों का भुगतान करेगी. यह भी एक गलत धारणा है. अगर पॉलिसी धारक बार-बार क्लेम करता है, तो वह रिन्युअल पर नो क्लेम बोनस (NCB) को खो देता है. यह बोनस प्रतिशत हर क्लेम मुक्त साल में जुड़ता जाता है और डिस्काउंट प्रीमियम के 50 फीसदी जितना ज्यादा हो जाता है.

पॉलिसी रिन्युअल को टालना

ज्यादातर भारतीय इंश्योरेंस पॉलिसी के रिन्युअल को अक्सर हल्के में लेते हैं. हर साल बड़ी संख्या में पॉलिसी धारक अपनी पॉलिसी को रिन्यू करने में असफल रहते हैं. अपनी पॉलिसी को यूटिलिटी बिल के समान समय पर रिन्यू करें.

(By- Deepak Yohannan, CEO, MyInsuranceClub)

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