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Budget 2020: सरकार के सामने सबसे अहम चुनौती विकास दर को रफ्तार देने की है. इसलिए निवेश और खपत को बढ़ाना देना जरूरी है.
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Budget 2020: मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को पेश करेंगी. इस बजट से आम आदमी, वेतनभोगी करदाता, किसान, युवा से लेकर स्माल इंडस्ट्री और कॉरपोरेट्स तक को काफी उम्मीद हैं. मोदी सरकार की तरफ से कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि अब आम करदाताओं को भी टैक्स के मोर्चे पर राहत मिलेगी. सरकार के सामने सबसे अहम चुनौती विकास दर को रफ्तार देने की है. इसलिए निवेश और खपत को बढ़ाना देना जरूरी है.
क्लियरटैक्स के सीईओ एवं फाउंडर अर्चित गुप्ता का कहना है, GDP में 11 साल की सबसे कम 5 फीसदी की ग्रोथ हासिल हुई है. ऐसी आर्थिक सुस्ती के बीच, उम्मीद है कि सरकार को घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए कुछ उपायों का एलान कर सकती है. वित्त मंत्रालय वित्त वर्ष 2019-20 के लिए अपने डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से पीछे है.
ऐसे में सरकार बड़े स्तर टैक्स कटौती की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं है. हालांकि, पर्सनल इनकम टैक्स के मोर्चे पर सरकार करदाताओं, विशेष रूप से मध्यम वर्ग के करदाताओं के लिए लाभ का एलान कर सकती है. वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वे आगामी बजट के लिए सुझावों पर विचार कर रहे हैं, और व्यक्तिगत आयकर दरों में ढील देना उनमें से एक है.
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15 लाख तक आय पर 15% टैक्स
अर्चित गुप्ता का कहना है कि वेतनभोगियों और छोटे उद्यमियों का प्रतिनिधित्व करने वाले मध्यम वर्ग की आय 5 से 15 लाख रुपये तक की है. वर्तमान में, 5 लाख से ऊपर की कर योग्य आय पर 20 फीसदी टैक्स लिया जाता है और 10 लाख रुपये से अधिक टैक्सेबल इनकम पर 30 फीसदी की दर से टैक्स देना होता है. इस वजह से 10 लाख रुपये तक की कमाई पर टैक्स काफी अधिक है. 10 लाख रुपये तक की आय के लिए टैक्स रेट 10% तक की कटौती या 5 से 15 लाख रुपये की लिमिट में करदाताओं को 15% की दर से टैक्स लगाने पर करदाताओं के हाथों में अधिक पैसा बचेगा. इससे आम आदमी की खरीद और निवेश क्षमता बढ़ेगी.
अमीरों पर बढ़ेगा टैक्स बोझ
अर्चित गुप्ता के अनुसार, डायरेक्ट टैक्स कोड पर टास्कफोर्स की सिफारिशों के अनुरूप हाई नेटवर्थ कैटेगरी के संबंध में, 20 लाख रुपये से 2 करोड़ रुपये तक की आय पर 30 फीसदी की उच्च दर लगाई जा सकती है और 2 करोड़ रुपये से ऊपर की आय पर 35 फीसदी की दर से टैक्स देना पड़ सकता है. हालांकि, वित्त वर्ष 2019-20 के लिए टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से कम होने के कारण यह एक चुनौती होगी. सरकार सभी टैक्स स्लैब में कटौती करने की की स्थिति में नहीं है.
80C की लिमिट बढ़ेगी
क्लियर टैक्स फाउंडर गुप्ता का कहना है कि सार्वजनिक बचत के नजरिए से सरकारी सिक्युरिटीज में निवेश की सीमा, LIC, म्यूचुअल फंड ELSS के साथ-साथ बच्चों की ट्यूशन फीस और हाउसिंग लोन पर प्रिंसिपल अमाउंट के भुगतान के लिए 1.5 लाख रुपये की समग्र सीमा के साथ धारा 80C के तहत लाया जा सकता है.
धारा 80-C के तहत सीमा को अंतिम बार 2014 के बजट में बढ़ाया गया था. आवास और शिक्षा की लागत में वृद्धि के साथ, सेक्शन बचत के लिए बहुत कम जगह छोड़ता है.ए इस वजह से सरकार धारा 80-C के तहत कटौती की सीमा बढ़ाने पर विचार कर सकती है.