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LTCG: एक्सपर्ट और निवेशकों में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स को लेकर चर्चा तेज है.
LTCG Rules on Equity Income: शेयर बाजार में निवेश के सही विकल्प मिल जाएं तो दूसरे विकल्पों के मुकाबले रिटर्न बहुत ज्यादा मिल सकता है. आप भी अक्सर सुनते होंगे इस शेयर ने निवेशकों को 4 साल या 5 साल में 35 से 40 फीसदी या इससे भी ज्यादा रिटर्न दिया है. लेकिन क्या आपको पता है कि लंबी अवधि में शेयर ने जो एक्चुअल रिटर्न जेनरेट किया है, आपको वह पूरा नहीं मिलता है. असल में किसी भी शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड यूनिट को 12 महीने से ज्यादा होल्ड करने पर उससे होने वाली आय लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) के तहत आती है यानी टैक्सेबल. इसी वजह से इस पर बजट में राहत की उम्मीद की जा रही है.
बता दें कि 2018 के बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को फिर से शुरू किया गया था. इससे पहले इक्विटी शेयरों या इक्विटी म्यूचुअल फंड की यूनिटों की बिक्री से होने वाले मुनाफे पर टैक्स नहीं लगता था. इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10 (38) के तहत इस पर टैक्स से छूट मिली हुई थी. कैपिटल गेन्स टैक्स दो तरह के होते हैं- शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म. यह वर्गीकरण शेयरों की होल्डिंग पीरियड के अनुसार किया जाता है.
एक बार फिर LTCG को लेकर चर्चा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को आम बजट पेश करने जा रही हैं. ऐसे में एक बार फिर एक्सपर्ट और निवेशकों में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स को लेकर चर्चा तेज हो गई है. जानकार सरकार से LTCG की टाइम लिमिट बढ़ाकर और हर प्रोडक्ट पर इसके एक जैसे नियम बनाकर राहत देने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे निवेशकों में लंबी अवधि के लिए बाजार में निवेश करने को लेकर प्रोत्साहन मिलेगा. वहीं प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को भी बढ़ावा मिलेगा. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर इक्विटी से होने वाली कमाई पर LTCG कैसे लगता है. इस पर राहत मिलने से किस तरह से फायदा होगा.
इक्विटी पर कैसे लगता है LTCG
अगर शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को या म्यूचुअल फंड्स यूनिट खरीदने से 12 महीने के बाद बेचने पर मुनाफा होता है तो इस पर LTCG के तहत टैक्स देना पड़ता है. अगर एक साल के बाद बेचे गए शेयरों और इक्विटी म्यूचुअल फंड की यूनिटों की बिक्री पर एक लाख रुपये से ज्यादा का कैपिटेल गेन हुआ है तो इस पर 10 फीसदी टैक्स लगेगा. यानी 1 लाख तक आय टैक्स फ्री है.
डेट फंड्स पर कैसे लगता है LTCG
अगर 3 साल के बाद डेट फंड्स के यूनिट्स की बिक्री की जाती है तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स देना होता है. इस पर इंडेक्सेशन के बाद 20 फीसदी की दर से टैक्स देना होता है. इसके अलावा इस पर सेस व सरचार्ज भी लगाया जाता है. बता दें कि जिस म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो में 65 फीसदी से अधिक डेट इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं वे इस कैटेगिरी में आते हैं.
LTCG को लेकर क्या है डिमांड
अलग अलग ब्रोकरेज हाउस, बाजार के जानकार यर एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया की यह डिमांड है कि LTCG के लिए अभी होल्डिंग 12 महीने से अधिक है. इसमें शेयर बाजार से होने वाली 1 लाख रुपये से कमाई पर टैक्स लगता है. यानी 1 लाख रुपय तक की इनकम टैक्स फ्री है. इस लिमिट को बढ़ाकर 2 से 2.5 लाख रुपये किया जाना चाहिए. इससे लंबी अवधि के निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा.
दूसरी ओर अनलिस्टेड शेयरों में इसके लिए होल्डिंग की लिमिट 24 महीने है. गोल्ड और सिल्वर में भी LTCG की लिमिट 3 साल से ज्यादा है. यह लिस्टेड शेयरों की तुलना में दो गुना और 3 गुना है. इसलिए सभी पर होल्डिंग के निसम भी एक होने चाहिए, जैसा कि दुनिया के कई देशों में है.
ULIP जैसे प्रोडक्ट पर LTCG के नियम अलग हैं. ULIP की बात करें तो सम एश्योर्ड चुकाए गए प्रीमियम से 10 गुना होने, 5 साल के लॉक इन के बाद पैसे निकालने और प्रीमियम 2.5 लाख से कम होने पर LTCG नहीं देना पड़ता है.
LTCG में बदलाव से किस तरह से फायदा
अगर इक्विटी पर LTCG के लिए होल्डिंग की समय सीमा बढ़ाई जाती है तो इससे लोगों में लंबी अवधि के लिए निवेश करने को लेकर बढ़ावा मिलेगा. वहीं अलग अलग प्रोडक्ट पर LTCG को लेकर ऐ जैसे नियम से प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को भी बढ़ावा मिलेगा. बता दें कि दुनिया के तमाम देशों में LTCG को लेकर एक ही नियम हैं.