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Budget 2024 at a Glance: कहानी करदाता की! जिन्हें नहीं मिली कोई राहत, वही सबसे ज्यादा भरेंगे सरकारी खजाना

Budget 2024 at a Glance: वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में सरकार की कमाई का सबसे बड़ा जरिया इनकम टैक्स बताया गया है, कम से कम पिछले 10 साल में ऐसा नहीं हुआ था.

Budget 2024 at a Glance: वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में सरकार की कमाई का सबसे बड़ा जरिया इनकम टैक्स बताया गया है, कम से कम पिछले 10 साल में ऐसा नहीं हुआ था.

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Viplav Rahi
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Budget 2024: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में पर्सनल इनकम टैक्स भरने वालों के लिए स्लैब, स्टैंडर्ड डिडक्शन या टैक्स छूट में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है. (Image : Pixabay)

Budget 2024: Where rupee comes from and where it goes: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में पर्सनल इनकम टैक्स भरने वालों के लिए स्लैब या दूसरे नियमों में किसी तरह के बदलाव एलान नहीं किया है. यानी सरकार ने इस बार उन्हें कोई राहत नहीं दी है. इसके लिए वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट में एलान नहीं किए जाने की परंपरा का वास्ता दिया है. लेकिन यह परंपरा तो 2019 के अंतरिम बजट के वक्त भी थी, जब मोदी सरकार ने किसानों के साथ-साथ करदाताओं के लिए भी बड़े एलान किए थे. और इस बजट में भी कई तबकों के लिए बड़ी घोषणाएं की गई हैं. फिर भला इनकम टैक्स भरने वालों को ही क्यों छोड़ दिया गया? दिलचस्प बात ये है कि जिस टैक्सपेयर को राहत देने लायक नहीं समझा गया, वही सरकार की कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन गया है. यह बात हम नहीं कह रहे, खुद सरकार के बजट दस्तावेज बता रहे हैं. वित्त वर्ष 2024-25 के बजट अनुमानों को पिछले 10 केंद्रीय बजट के आंकड़ों की रौशनी में देखें, तो ऐसा पहली बार हुआ है, जब पर्सनल इनकम टैक्स सरकार की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया बन गया है. आंकड़ों से साफ है कि वित्त वर्ष 2013-14 के बजट से 2024-25 के बजट तक सरकारी खजाने में इनकम टैक्स का योगदान जबरदस्त तरीके से बढ़ा है.वहीं कॉरपोरेट टैक्स के योगदान में भारी गिरावट आई है.

पर्सनल इनकम टैक्स से होगी सबसे ज्यादा कमाई

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पेश अंतरिम बजट के अनुमानों के मुताबिक सरकारी खजाने में आने वाले हर एक रुपये में 19 पैसे इनकम टैक्स से मिलते हैं. इसके मुकाबले कंपनियों से वसूले जाने वाले कॉरपोरेट टैक्स का योगदान 17 पैसे और जीएसटी का कंट्रीब्यूशन 18 पैसे का है. हालांकि सरकारी खजाने में आने वाले हर एक रुपये में 28 पैसे का सबसे बड़ा योगदान कर्ज का है, लेकिन यह कोई आय नहीं, बल्कि आमदनी और खर्च के बीच का गैप भरने का तरीका है. वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान सरकार को केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Union Excise Duty) से 5 पैसे और कस्टम ड्यूटी से 4 पैसे मिलने का अनुमान है. 

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रुपया कहां से आता है (Budget 2024-25)

मौजूदा वित्त वर्ष में कॉरपोरेट टैक्स का कंट्रीब्यूशन अधिक

इसकी तुलना मौजूदा वित्त वर्ष से आंकड़ों से करें तो 2023-24 के दौरान सरकारी खजाने में आने वाले हर एक रुपये में इनकम टैक्स का कंट्रीब्यूशन 16 पैसे और कॉरपोरेट टैक्स का योगदान 17 पैसे रहा है. वहीं, हर एक रुपये में 16 पैसे की कमाई जीएसटी से और 6 पैसे की आय एक्साइज ड्यूटी से हो रही है. यानी मौजूदा साल में भी कॉरपोरेट टैक्स का योगदान इनकम टैक्स से ज्यादा रहा है. हालांकि इससे पहले 2021-22 के बजट में पेश आंकड़ों के मुताबिक सरकार के पास आने वाले हर एक रुपये में इनकम टैक्स का योगदान 14 पैसे था, जो कॉरपोरेट टैक्स के 13 पैसों के कंट्रीब्यूशन से अधिक था. लेकिन तब भी सरकारी आय में इनकम टैक्स का योगदान सबसे ज्यादा नहीं था. उस साल यह जगह जीएसटी को मिली थी, जिसने हर एक रुपये में 15 पैसे डाले थे.

12 पैसे बनाम 19 पैसे!  

अगर हम हर साल केंद्रीय बजट में "रुपया कहां से आता है (Where Rupee Comes From)" की हेडिंग के साथ पेश किए जाने वाले पुराने आंकड़ों पर नजर डालें, तो और भी दिलचस्प रुझान देखने को मिलता है. 2013-14 के बजट में पेश आंकड़ों के मुताबिक हर एक रुपये की कमाई में 21 पैसे कॉरपोरेट टैक्स से आ रहे थे, जो तब सरकार की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया था. इसकी तुलना में इनकम टैक्स का योगदान महज 12 पैसे का था. (उस साल 11 पैसे केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी से और 9 पैसे सर्विस टैक्स से आए थे). यानी जो आंकड़ा तब 12 पैसों का था, वो अब 19 पैसे तक पहुंच चुका है. वहीं कॉरपोरेट टैक्स का योगदान 21 पैसे से घटकर 17 पैसे पर आ गया है. 

पर्सनल इनकम टैक्स में कब मिलेगी राहत?

हम आपको याद दिला दें कि सरकार ने ज्यादातर भारतीय कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दर 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दी है, जबकि कुछ नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए तो यह रेट महज 15 फीसदी है. लेकिन पर्सनल इनकम टैक्स की अधिकतम दर अब भी 30 फीसदी पर बनी हुई है. नई टैक्स रिजीम में 7 लाख रुपये तक की आय को टैक्स-फ्री जरूर किया गया है, लेकिन ज्यादातर डिडक्शन्स/एग्जम्पशन नहीं दिए जाने की वजह से उसका फायदा बहुत सारे टैक्स पेयर्स को नहीं मिल रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि सरकारी खजाना भरने में सबसे आगे रहने वाले मिडिल क्लास टैक्सपेयर पर सरकार कब मेहरबानी करेगी?

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