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Bond Market: इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी होती है तो बॉन्ड की कीमत घटने लगती है.
Bank FD vs Debt Mutual Funds: पिछले साल देश के सेंट्रल बैंक आरबीआई द्वारा लगातार ब्याज दरें बढ़ाए जाने के चलते प्रमुख बैंकों ने जमा दरों में भी इजाफा किया है. दूसरी ओर लगातार रेट हाइक के चलते बॉन्ड मार्केट पर निगेटिव असर हुआ है. यानी एक ओर एफडी जैसी स्माल सेविंग्स स्कीम पहले से ज्यादा अट्रैक्टिव दिखने लगी तो वहीं डेट फंडों का रिटर्न कमजोर हुआ. आगे भी यूएस फेड और आरबीआई सहित तमाम सेंट्रल बैंक दरें बढ़ाने की बात कह रहे हैं. ऐसे में निवेशकों को अपना पैसा कहां लगाना चाहिए. डेट फंड में या बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट में.
बता दें कि जब इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी होती है तो बॉन्ड की कीमत घटने लगती है. जिसके चलते डेट फंड का NAV यानी नेट असेट वैल्यु भी घट जाती है. इसका नुकसान निवेशकों को होता है. इसका असर पिछले साल डेट मार्केट के रिटर्न पर दिखा भी, जब ज्यादातर फंडज्ञें का प्रदर्शन कमजोर हुआ और उनमें 1 साल का रिटर्न एफडी से भी नीचे आ गया. हालांकि एक्सपर्ट मौजूदा दौर में डेट फंड को ही तरजीह दे रहे हैं और इसके पीछे वजह भी बताई है.
एक्सपर्ट क्यों डेट फंड को दे रहे हैं तरजीह
बीएनपी फिनकैप के डायरेक्ट एके निगम का कहना है कि अगर ओवरआल सिनैरियों देखें तो फिलहाल निवेशकों को डेट फंड में पैसा लगाना चाहिए. यह एफडी की तरह भले ही 100 फीसदी सेफ न हो लेकिन आगे इनमें रिटर्न बेहतर मिलने की उम्मीद है. वहीं लिक्विडिटी और टैक्सेशन का भी फायदा मिलेगा.
उनका कहना है कि आगे ब्याज दरें बढ़ने की उम्मीद है. हो सकता है कि बैंक अपनी एफडी की दरों में इजाफा करें. ऐसे में अगर आपने अभी एफडी में पैसा लॉक कर दिया तो आगे बढ़े रेट ऑफ इंटरेस्ट का फायदा नहीं मिलेगा. अगर आप एफडी तोड़ना चाहेंगे तो उसमें पेनल्टी का नुकसान होगा. बेहतर है कि आप अभी अपने पैसे शॉर्ट टर्म वाले डेट में लगाएं, जहां न तो लिक्विडिटी का झंझट है और न ही एग्जिट लोड है. इसका फायदा यह होगा कि आगे जहां ब्याज ज्यादा मिल रहा हो , वहां स्विच कर जाएं. इसके लिए लिक्विड फंड, अल्ट्रा शार्ट ड्यूरेशन फंड, शार्ट ड्यूरेशन फंड बेहतर विकल्प हैं.
उनका यह भी कहना है कि डेट फंड अभी आकर्षक हैं. आगे ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला बंद होगा, इनमें अच्छी तेजी आने की उम्मीद है. ऐसे में लंबी अवधि में भी यह एफडी से फायदेमंद हो सकता है. लेकिन इसके लिए लंबी अवधि वाले फंडों में मैच्योरिटी तक बने रहना होगा.
टैक्स के मामले में डेट फंड बेहतर
आपकी सालाना आय में एफडी का रिटर्न जोड़ा जाता है और उस पर आपके टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लगाया जाता है. डेट फंड के मामले में, होने वाली आय पर शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म कैपिटल गैन के आधार पर टैक्स लगाया जाता है. 3 साल के निवेश के बाद डेट फंड से कमाए गए रिटर्न पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स लागू होता है. इंडेक्सेशन बेनिफिट्स के साथ उस पर 20 फीसदी टैक्स लगता है. 3 साल के भीतर डेट फंड से पैसे निकालने पर कमाए गए रिटर्न पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स लगता है.
डेट फंड जोखिम के अधीन
बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा 5 लाख रुपये पर DICGC द्वारा इंश्योरेंस प्रोग्राम के तहत सुरक्षा की गारंटी मिलती है. यह कवर जमा मूल राशि और उस पर लगने वाला ब्याज, दोनों के लिए होता है. दूसरी ओर, डेट फंड में निवेश पर सुरक्षा की गारंटी नहीं होती. उनकी सिक्योरिटीज़ को डेट मार्केट में खरीदा-बेचा जाता है. क्रेडिट म्यूचुअल फंड में निवेश करने पर क्रेडिट जोखिम और इंटरेस्ट रेट जोखिम भी शामिल हैं.