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Debt Schemes: डेट फंड निवेशकों को रिस्क-रिटर्न प्रोफाइल के आधार पर डेट मार्केट स्पेक्ट्रम में निवेश करने का अवसर देते हैं.
Debt Mutual Funds vs 1 Year FD: नए फाइनेंशियल ईयर यानी 1 अप्रैल से डेट फंड्स पर इंडेक्सेशन का लॉन्ग टर्म टैक्स बेनेफिट (LTCG) हटा लिया गया है. ऐसा सरकार ने वित्त वर्ष 2024 के लिए बजट में अहम संसोधन के तहत किया है. अब इस पर सिर्फ शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस (STCG) देना पड़ रहा है. सरकार ने यह कदम डेट एसेट क्लास में समानता लाने के उद्देश्य से उठाया है, हालांकि यह नियम ऐसे समय लाया गया, जब रिटेल निवेशकों की भागीदारी डेट एसेट क्लास की ओर बढ़ रही थी. सवाल उठता है कि 1 अप्रैल से लॉन्ग टर्म टैक्स बेनेफिट खत्म होने के बाद निवेशकों ने इस सेग्मेंट को लेकर कैसा रिस्पांस दिया है. क्या डेट फंड में निवेश करना समझदारी होगा. रेटिंग एजेंसी CRISIL के सीनियर डायरेक्टर जे. विद्याधरन ने इस बारे में एक रिपोर्ट के जरिए जानकारी दी है.
एक्सपर्ट का कहना था कि यह नियम लागू होने पर डेट फंड, एफडी या एनएससी जैसे फिक्स्ड इनकम विकल्प और हाइब्रिड फंड, सभी एक जैसे हो गए हैं. हालांकि क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार हाउसहोल्ड फाइनेंशियल सेविंग्स का 50 फीसदी अभी भी बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट योजनाओं में जमा है. बता दें कि पिछले साल तक डेट म्यूचुअल फंड में निवेश पर बिना इंडेक्सेशन के 10 फीसदी और इंडेक्सेशन के साथ 20 फीसदी टैक्स लगता था, जिससे कुल टैक्स देनदारी कम हो जाती थी.
इस बदलाव का क्या हुआ असर
बदलाव से पहले, मार्च के अंत में इनडिवजुअल निवेशकों की ओर से डेट फंडों में ठीक ठाक पैसा लगाया गया. असल में 1 अप्रैल से पहले इन योजनाओं में निवेश करने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस का फायदा शामिल था. ऐसे में मिड और लॉन्ग टर्म मैच्योरिटी वाले डेट फंड के निवेशकों ने ग्रैंडफादरिंग विकल्प के साथ-साथ बढ़ी हुई यील्ड का लाभ उठाने के लिए इन कैटेगिरीज में जमकर पैसा लगाया.
कॉरपोरेट बॉन्ड फंड कैटेगिरी को इस निवेश की होड़ का सबसे ज्यादा फायदा मिला. जिसने मार्च में 15,626 करोड़ रुपये का फ्लो हासिल किया. यह अप्रैल 2019 में SEBI द्वारा नया क्लासिफिकेशन घोषित करने के बाद एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) की ओर से फ्लो डाटा घोषित करने की शुरूआत के बाद से इस कैटेगिरी के लिए सबसे अधिक सिंगल मंथ का नेट फ्लो था.
इन रिकॉर्ड फ्लो से फायदा पाने वाली अन्य कैटेगिरीज में लॉन्ग टर्म फंड, डायनमिक बॉन्ड फंड, गिल्ट फंड और 10 साल की निरंतर अवधि वाले गिल्ट फंड थे. बैंकिंग और पीएसयू डेट फंड में भी 6,500 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड के साथ दूसरा सबसे बड़ा मंथली फ्लो देखा गया.
दूसरी ओर, इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स, जो आम तौर पर अपने फंड का एक बड़ा हिस्सा मनी मार्केट म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, ने एडवांस टैक्स और लिक्विडिटी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मार्च में तिमाही के अंत में आउटफ्लो जारी रखा, और अप्रैल में इसका अधिकांश हिस्सा शॉर्ट टर्म पार्किंग अरेंजमेंट के तहत वापस निवेश कर दिया.
किस कैटेगिरी में कितना आया फ्लो
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टारगेट मैच्योरिटी फंड्स
इस बीच, टारगेट मैच्योरिटी फंड्स (TMFs), का रुझान लगातार बढ़ रहा है. जबकि कैटेगिरी के लिए फ्लो डाटा उपलब्ध नहीं है, TMFs का कुल एसेट्स मई 2023 के अंत में लगभग 8 फीसदी बढ़कर 1.86 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो मार्च के अंत में 1.72 लाख करोड़ रुपये था.
क्यों अभी भी डेट फंड हैं आकर्षक
मार्च 2023 के लिए AMFI से उपलब्ध लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, HNIs 28 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ डेट म्यूचुअल फंड में इनडिविजुअल निवेश में लीडिंग पोजिशन पर हैं, जबकि रिटेल निवेशकों की हिस्सेदारी लगभग 3 फीसदी है. हालांकि यह चौंकने वाली बात नहीं है, क्योंकि इसमें टैक्सेशन का फायदा रिटेल निवेशकों की तुलना में HNIs के लिए अधिक फायदेमंद रही है, जो कम इनडिविजुअल इनकम टैक्स ब्रैकेट में आ सकते हैं.
फिर भी, डेट म्यूचुअल फंड टैक्सेशन के अलावा कुछ अन्य वजहों से आकर्षक बने हुए हैं. पहला ये निवेशकों को किसी के जोखिम-रिटर्न प्रोफाइल के आधार पर डेट मार्केट स्पेक्ट्रम में निवेश करने का अवसर देते हैं. दूसरा डेट म्यूचुअल फंड की लिक्विडिटी अन्य के मुकाबले बेहतर है.
तीसरा, डेट म्यूचुअल फंड निवेशकों को ब्याज दर में उतार-चढ़ाव से लाभ प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करते हैं, जिससे वे अपनी निवेश यात्रा पर स्ट्रैटेजिक निर्णय लेने में सक्षम होते हैं. चौथा, जबकि टैक्स आर्बिट्रेज को हटा दिया गया है, डेट म्यूचुअल फंड टैक्स डिफरमेंट की अनुमति देते हैं, जिसका मतलब है कि उन पर केवल तब टैक्स लगाया जाता है, जब निवेश बेचा जाता है. जबकि पारंपरिक फिक्स्ड डिपॉजिट के मामले में मिलने वाले ब्याज पर सालाना टैक्स लगाया जाता है.
1 साल की एफडी की तुलना में यील्ड टु मैच्योरिटी बेहतर
गिल्ट फंड पर यील्ड टु मैच्योरिटी 7.1 फीसदी, लॉन्ग ड्यूरेशन फंड पर 7.2 फीसदी, मिड टु लॉन्ग् ड्यूरेशन फंड पर 7.2 फीसदी, मिड ड्यूरेशन फंड पर 7.6 फीसदी, डायनमिक बॉन्ड फंड पर 7.2 फीसदी, TMFs पर 7.2 फीसदी, शॉर्ट टर्म फंड पर 7.5 फीसदी, लो ड्यूरेशन फंड पर 7.4 फीसदी, अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड पर 7.2 फीसदी, मनी मार्केट र 7.2 फीसदी, लिक्विड फंड में 6.8 फीसदी और ओवरनाइट फंड में 6.3 फीसदी है.
(source: Source: CRISIL MI&A Research)