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Mutual Fund: इक्विटी या डेट म्यूचुअल फंड में क्या है अंतर? आपके लिए क्या है बेहतर?

ज्यादा जोखिम न लेने वाले निवेशक डेट म्यूचुअल फंड्स को चुन सकते हैं. हालांकि डेट के मुकाबले इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में आमतौर पर बेहतर रिटर्न की उम्मीद रहती है.

ज्यादा जोखिम न लेने वाले निवेशक डेट म्यूचुअल फंड्स को चुन सकते हैं. हालांकि डेट के मुकाबले इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में आमतौर पर बेहतर रिटर्न की उम्मीद रहती है.

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FE Hindi Desk
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अगर आप अपने  लाइफ के टार्गेट को लेकर स्पष्ट है तो आपके लिए निवेश स्कीम चुनना काफी आसान है.

म्यूचुअल फंड्स एक तरह का फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है. इसके जरिए स्टॉक, गवर्नमेंट और कार्पोरेट बॉन्ड, डेट इंस्ट्रूमेंट्स और गोल्ड स्कीम में निवेश किया जाता है. पूरी तैयारी के साथ म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश किया जाए तो बेहतर रिजल्ट देखने को मिलते हैं. हालांकि ये जरूरी नहीं कि सभी प्रकार के म्यूचुअल फंड सभी निवेशकों के लिए बेहतर हों. ऐसे में म्यूचुअल फंड में इनवेस्टमेंट से पहले निवेशकों को उसके बारे में जरूरी जानकारी जुटा लेनी चाहिए. साथ ही निवेशकों को अपनी रिस्क लेने की क्षमता, जरूरतों, टार्गेट और स्कीम की टेन्योर समेत तमाम पहलुओं को समझ लेना जरूरी है.

बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी (Adhil Shetty) कहते हैं कि म्यूचुअल फंड सभी उम्र के निवेशकों के बीच पॉपुलर है. वह बताते हैं कि जब फाइनेंशियल टार्गेट स्पष्ट होते हैं तो सही इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट चुनने में आसानी होती है. म्यूचुअल फंड और डेट फंड का फैसला हो जाने के बाद इनवेस्टमेंट टेन्योर तय होता है. शॉर्ट-टर्म इनवेस्टमेंट के लिए (short-term investment) डेट फंड स्कीम को चुना जा सकता है. इसमें जोखिम भी कम होता है. कम सेविंग वाले निवेशकों को पैसों की कभी भी जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उन्हें ज्यादा जोखिम लेने से बचना चाहिए. अगर निवेशक लंबी अवधि के लिए म्यूचुअल फंड्स में निवेश करे तो उसे थोड़ा बहुत जोखिम भी उठाना पड़ सकता है. ज्यादा रिटर्न के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर सकते हैं. निवेशक को अपने टार्गेट के आधार पर म्यूचुअल फंड्स के विकल्पों को चुनना चाहिए. म्यूचुअल फंड्स की दो कैटेगरी है- इक्विटी स्कीम्स और डेट स्कीम

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इक्विटी म्यूचुअल फंड्स

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स या ग्रोथ ओरिएंटेड फंड्स एक बेहद खास स्कीम है. इस स्कीम के तहत स्टॉक एक्सचेंज मार्केट में लिस्टेड विभिन्न कंपनियों के शेयर में निवेशक के एसेट्स को इनवेस्ट किया जाता है. ये स्कीम निवेशकों को उनके पैसे अलग-अलग सेक्टर की कई कंपनियों के शेयर में निवेश का मौका देता है. यही स्ट्रेटेजी निवेशक को जोखिम से बचाता है और उसके कारोबार में बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी करने में मददगार होता है.

मिसाल के तौर पर समझिए कि एक निवेशक अपना 1000 रुपये इक्विटी  म्यूचुअल फंड के माध्यम से 50 कंपनियों में निवेश किया. जिन कंपनियों के शेयर में निवेशक के एसेट्स इनवेस्ट किए गए उन सभी में उसका अनुपातिक लिहाज से मालिकाना हक हो जाता है. और सभी कंपनियां उसके पोर्टफोलियो में शामिल भी हो जाती हैं. जिन कंपनियों के शेयर में निवेशक के एसेट्स लगे हैं. अगर उनमें से कुछ स्टॉक अच्छा परफार्म नहीं कर पाए तो बाकी बचे निवेशक के पोर्टफोलियो में शामिल बेहतर परफार्मेंश वाले स्टॉक बुरे प्रभाव को कम करने या उस प्रभाव की भरपाई करके इनवेस्टमेंट वैल्यू को बेहतर बनाने का काम करते हैं.  ऐसे में निवेशक को डावर्सिफाई पोर्टफोलियो और रिस्क एडजस्टेड रिटर्न के फायदे मिलते हैं.

आदिल शेट्टी बताते हैं कि कम अवधि से लेकर मध्यम अवधि वाले इक्विटी फंड में निवेश काफी जोखिम होता है और इस पर मिलने वाले रिटर्न का अनुमान लगाना बेहद कठिन है. लेकिन लंबी अवधि में इन पर निवेशक को बेहतर रिटर्न मिलता है. इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेशकों को तीन साल से कम अवधि के लिए निवेश करने से बचना चाहिए. आंकड़े बताते है कि पिछले दो दशकों में इक्विटी फंड का कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) 18-20% से अधिक रहा है. शॉर्ट टर्म यानी एक साल से कम अवधि वाले इक्विटी म्यूचुअल फंड के रिटर्न पर 15% टैक्स देना होता है. अगर इस फंड को एक साल के बाद बेचा जाए तो 1 लाख रुपये से अधिक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 10% टैक्स लगता है.

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डेट म्यूचुअल फंड्स

इक्विटी फंड के मुकाबले डेट म्यूचुअल फंड ज्यादा सुरक्षित और स्थायी है. हालांकि लंबी अवधि के निवेश में ये इक्विटी फंड के मुकाबले कम रिटर्न देते हैं. लेकिन बैंक के सेविंग अकाउंट, फिक्स्ड डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉडिट, पोस्ट ऑफिस स्कीम पर मिलने वाले रिटर्न की तुलना में डेट म्यूचुअल फंड के रिटर्न बेहतर होते हैं. इक्विटी फंड की तरह इनमें भी निवेशक के पास डावर्सिफाइड पोर्टफोलियो होता है. इसमें निवेशक का पैसा फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी (fixed-income securities), मसलन कार्पोरेट बॉन्ड (Corporate Bonds), गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़ (Government Securities) और ट्रेजरी बिल (Treasury Bills) में निवेश किया जाता है. इस पर मिलने वाले रिटर्न का अनुमान कुछ हद तक पहले से लगाया जा सकता है.

टैक्स के लिहाज से देखा जाए तो डेट स्कीम पर तीन साल के भीतर मिलने वाले गेन को शार्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) कहते हैं. तीन साल के बाद के प्रॉफिट को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन ( LTCG) कहते हैं, अगर आप डेट फंड की यूनिट्स को खरीदने के तीन साल के भीतर बेचते हैं, तो उस पर हासिल प्रॉफिट पर निवेशक के टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स देना पड़ता है. मिसाल के तौर पर अगर एक निवेशक की टैक्स के दायरे में आने वाली इनकम 6,00,000 रुपये है और उसका STCG 1,00,000 रुपये है तो उसे 7,00,000 रुपये पर टैक्स देना होगा. डेट म्यूचुअल फंड में तीन साल या उससे अधिक समय तक निवेश किया गया हो तो उस पर होने वाले कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20% टैक्स लगता है.

ज्यादा जोखिम न लेने वाले निवेशक डेट म्यूचुअल फंड्स को निवेश के लिए चुन सकते हैं. इस स्कीम में उन निवेशकों को खास तौर पर निवेश करना चाहिए जो नौकरी के दौरान अच्छी रिटर्न दिलाने वाले स्कीम की तलाश कर रहे हैं. ऐसा करके वह रिटारमेंट के बाद भी कैश फ्लो बनाए रख सकते हैं. अगर आप अपने  लाइफ के टार्गेट को लेकर स्पष्ट है तो आपके लिए निवेश स्कीम चुनना काफी आसान है. ऐसे में आप उचित फैसला भी ले पाते हैं.

(Article : Sanjeev Sinha)

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