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Gold Investment: जियो-पॉलिटिकल टेंशन और सेंट्रल बैंक की पॉलिसी ने सोने और चांदी की कीमतों पर ज्यादा असर डाला है. (Reuters)
Gold Investment Strategy: कुछ बड़े आधारभूत बदलावों मसलन सेंट्रल बैंकों की पॉलिसी, जियो-पॉलिटिकल अनिश्चितताओं, हार्ड और सॉफ्ट लैन्डिंग के बीच विवाद, रिस्की एसेट्स में खरीदारों का बढ़ता इंटरेस्ट और डॉलर इंडेक्स व यील्ड में अस्थिरता के चलते सोने और चांदी की कीमतों में तेज उतार चढ़ाव दर्ज किया गया है. जियो-पॉलिटिकल टेंशन और सेंट्रल बैंक की पॉलिसी ने सोने और चांदी की कीमतों पर ज्यादा असर डाला है. फिलहाल मौजूदा समय में सोने और चांदी में अब तक की सबसे बड़ी अस्थिरता मानी जा रही है, क्योंकि एक ओर जहां साल की शुरुआत में सोने के भाव 2070 डॉलर थे और फिर 1800 डॉलर तक गिर गए, वहीं अब यह फिर से 2000 डॉलर तक पहुंच गए हैं. ब्रोकरेज हाउस मोतीलाल ओसवाल ने अपनी रिपोर्ट में मिड टर्म में सोने का भाव 63000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक जाने का अनुमान लगाया है.
फेस्टिव सीजन में बुलियन की डिमांड
ब्रोकरेज हाउस मोतीलाल ओसवाल के अनुसार देखा जाए तो फेस्टिव सीजन में बुलियन की डिमांड बढ़ जाती है, किन्तु हाल ही में डिमांड के ट्रेंड में भारी बदलाव देखा गया है. जहां भागीदार किसी विशेष कारण का इंतजार न करते हुए, जब भी सौदे के अवसर होते हैं, बुलियन में निवेश कर देते हैं. बाजार में सोने के भाव में तेजी के बारे में बहुत से फैक्ट चलते रहते हैं और समय-समय पर इसकी वजह भी बदलती रहती है. लेकिन एक बात तय है कि अगर आपने 2019 में सोने में निवेश किया है तो इस दीवाली आप अपने सोने के निवेश पर 60 फीसदी के रिटर्न पर हैं.
गोल्ड: 5 साल में 30 फीसदी रिटर्न
एसपीडीआर गोल्ड शेयरों ने 5 और 1 साल के समय में 30% तथा 10% का औसत रिटर्न दर्ज किया है और इसी समय में घरेलू गोल्ड ईटीएफ पर औसत रिटर्न 55% और 15% रहा है. दुनिया के बड़े सेंट्रल बैंक एक स्टेबल रेट पर अपने गोल्ड रिजर्व बढ़ा रहे हैं, जिसके कारण सोने के प्रति रुख में भी उछाल है. इस साल सिर्फ 2 महीनों में सेंट्रल बैंकों को नेट सेलर के तौर पर देखा है. लेकिन इस साल सोने की खरीद की गति यह बताती है कि सेंट्रल बैंक इस साल फिर से अपने रिजर्व में मजबूती के रास्ते पर हैं. चीन, पोलैंड, तुर्की, कजाखस्तान और दूसरे कुछ देशों द्वारा सोने की मजबूत खरीद का परिणाम है कि इस साल कुल मिलाकर 800t का प्रोडक्शन हुआ है.
गोल्ड के लिए हाई इंटरेस्ट रेट है एक बाधा
ब्रोकरेज हाउस मोतीलाल ओसवाल के अनुसार प्रमुख सेंट्रल बैंकों की मॉनेटरी पॉलिसी काफी एग्रेसिव रही. फेड ने पिछले साल से अब तक दरों में 525bps बढ़ोतरी की है. जिससे महंगाई में कमी आई है. हालांकि, प्रमुख सेंट्रल बैंकों के लिए सैलरी, एनर्जी और फूड की बढ़ रही लागतें चिंता का विषय है, जिससे लगातार एग्रेसिव रुख पर प्रभाव पड़ रहा है. जीडीपी, रिटेल बिक्री, नौकरी आदि पर आधारित आर्थिक डाटा उम्मीद से बेहतर है जो कि अर्थव्यवस्था का लचीलापन बताता है. सोने जैसी गैर-यील्ड एसेट्स के लिए उच्च ब्याज दर एक बाधा है, इसलिए सोने की कीमतों में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति बनाए रखने के लिए मौजूदा रुख पर ध्यान देना जरूरी है. हाल ही की फेड मीटिंग में यूएस फेड ने अपनी दरों को नहीं बदला, वहीं गवर्नर पॉवेल ने मिश्रित राय दी. एक ओर जहां उन्होंने कहा कि 2 फीसदी की दर को प्राप्त करने के लिए वे अपनी नीतियां जारी रखेंगे वहीं अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को लेकर उन्होंने चिंता व्यक्त की है. पिछली कुछ बैठकों में इस वर्ष की दरों में बढ़ोतरी और अगले वर्ष की दरों में कटौती की संभावनाओं में बदलाव ने सुरक्षित संपत्तियों में काफी अस्थिरता पैदा की है।
जियो-पॉलिटिकल स्थितियों पर नजर रखना अब और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सोने को अब संकट से बचाव का साधन भी माना जाने लगा है. बाजार में किसी भी प्रकार की अस्थिरता ने बुलियन बाजार को हमेशा लाभ दिया है. पिछले साल रूस-यूक्रेन की लड़ाई और इस साल इजराइल– हमास की जंग ने दरों के बढ़ने पर भी सोने के प्रति आकर्षण बढ़ाया है.
रूरल इनकम में कमी
अनियमित मॉनसून के मौसम के बाद राष्ट्रीय ग्रामीण नौकरियों के अंतर्गत मांग बढ़ गई, वहीं फसलों के नुकसान और निर्यात प्रतिबंधों के कारण एग्री रेवेन्यू में कमी आई है. ते आर्थिक विकास के लिए मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जरूरत होती है क्योंकि यह खपत बढ़ाती है, जो कि विकास के लिए एक महत्वपूर्ण इंजन का काम करती है. दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून, जो कि भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है, में इस साल पिछले 50 सालों की तुलना में 6 फीसदी की कमी दर्ज की गई. कई राज्यों में सूखे के हालात हैं जबकि कई दूसरे राज्यों ने भारी बारिश और बाढ़ को झेला. हालांकि, फसल के नुकसान की कुछ हद तक भरपाई खरीफ फसलों से की जा सकती है. सोने की मांग का एक बढ़ा भाग ग्रामीण भारत से आता है, और ऊपर दिए कारणों और उच्च कीमतें आने वाली टर्म में सोने की मांग को प्रभावित कर सकती हैं.
63,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक जाएगा सोना
ब्रोकरेज हाउस मोतीलाल ओसवाल के अनुसार इस साल सोने की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया जिससे कि तेजी और मंदी दोनों ही के भागीदारों को अवसर मिले. जिन्होंने लंबे समय के निवेशों के लिए भी सौदे के अवसर प्रदान किए. प्रमुख केन्द्रीय बैंकों द्वारा दरों में आक्रामक बढ़ोतरी ने बुलियन बाजारों से कुछ समय के लिए चमक जरूर छीनी, लेकिन जियो पॉलिटिकल टेंशन और मौजूद मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव की उम्मीदों ने सोने की कीमतों को एक मजबूत आधार प्रदान किया है. इस मेटल के लिए कुछ बाधाएं जरूर हैं, जैसे- सॉफ्ट लेंडिंग की उम्मीद, कीमतों में बढ़ोतरी, जियो-पॉलिटिकल तनावों का खत्म होना और वास्तविक दरों में बढ़ोतरी. लेकिन फिर भी महामारी से लेकर रूस-यूक्रेन जंग और इजराइल-हमास जंग तक रिस्क प्रीमियम की कीमत सोने में ही लगाई जा रही है. मध्य-पूर्वी क्षेत्र के विवाद का खत्म होना और / या फेड के आक्रामक रुख का निरंतर बने रहना दोनों ही कारणों से सोने की कीमतों पर प्रभाव पड़ सकता है. मिड टर्म में सोना 63,000 रुपये प्रति 10 ग्राम का लेवल छू सकता है.