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तरह-तरह के म्यूचुअल फंड्स देखकर हो रहे हैं कनफ्यूज़? ऐसे करें अपनी जरूरत के मुताबिक सही प्लान का चुनाव

Types of Mutual Fund Investment: बाजार में म्यूचुअल फंड के कई विकल्प मौजूद हैं जिन्हें अपने रिस्क लेने की क्षमता के मुताबिक निवेशक चुन सकते हैं.

Types of Mutual Fund Investment: बाजार में म्यूचुअल फंड के कई विकल्प मौजूद हैं जिन्हें अपने रिस्क लेने की क्षमता के मुताबिक निवेशक चुन सकते हैं.

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Jeevan Deep Vishawakarma
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do not be confused over range of mutual funds know here about these schemes and choose best mutual fund plan

म्यूचुअल फंड इक्विटी या डेट या इन दोनों में ही पैसे निवेश करते हैं.

Types of Mutual Fund Investment: निवेश का एक मूल सिद्धांत है कि कभी भी अपनी सारी पूंजी को एक ही इंस्ट्रूमेंट्स में नहीं निवेश करना चाहिए. इसकी बजाय अपनी पूंजी को एक से अधिक इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं तो अगर एक इंस्ट्रूमेंट्स में रिटर्न कम मिलता है तो दूसरे इंस्ट्रूमेंट्स में तेजी से इसकी भरपाई हो जाती है. अधिकतर निवेशकों को म्यूचुअल फंड इस प्रकार का डाइवर्सिफाई पोर्टफोलियो बनाने का बेहतर विकल्प प्रदान करता है. इसमें निवेश पर भी रिस्क जुड़ा होता है लेकिन सीधे इक्विटी में निवेश की तुलना में इन पर रिस्क कम होता है. बाजार में म्यूचुअल फंड के कई विकल्प मौजूद हैं जिन्हें अपने रिस्क लेने की क्षमता के मुताबिक निवेशक चुन सकते हैं. म्यूचुअल फंड इक्विटी या डेट या इन दोनों में ही पैसे निवेश करते हैं.

दो प्रकार के होते हैं म्यूचुअल फंड स्कीम्स

म्यूचुअल फंड स्कीम्स को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में रखा जा सकता है- ओपन-एंडेड फंड्स और क्लोज इंडेड फंड्स. ओपन एंडेड फंड्स में निवेशक किसी भी समय निवेश कर सकता है या रिडीम कर सकता है यानी इनका कोई फिक्स्ड मेच्योरिटी पीरियड नहीं होता है. वहीं दूसरी तरफ क्लोज एंडेड फंड्स की फिक्स्ड मेच्योरिटी डेट होती है. इस प्रकार के फंड्स में निवेशक शुरुआती समय में ही निवेश कर सकता है जैसे कि न्यू फंड ऑफर और इसमें निवेश एक फिक्स्ड समय पर अपने आप रिडीम हो जाता है. क्लोज एंडेड फंड्स स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड भी होती हैं.

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निवेश के लिए मौजूद म्यूचुअल फंड स्कीम्स

इक्विटी या ग्रोथ स्कीम्स: यह निवेश के लिए सबसे पसंदीदा विकल्पों में शुमार है. इसके जरिए निवेशकों को स्टॉक मार्केट्स में निवेश का विकल्प मिलता है. इनमें रिस्क बहुत अधिक होता है क्योंकि इस स्कीम के तहत पूंजी को इक्विटी में निवेश किया जाता है लेकिन इसमें रिटर्न अधिक मिलता है. ये ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर है जिनका कैरियर अभी शुरू हुआ हो और वे लंबे समय में निवेश से अधिक रिटर्न पाना चाहते हैं क्योंकि उनके रिस्क लेने की क्षमता अधिक होती है.

इक्विटी फंड को तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है- सेक्टर स्पेशिफिक फंड्स, इंडेक्स फंड्स और टैक्स सेविंग फंड्स.

  • सेक्टर स्पेशिफिक फंड्स के पैसे को किसी खास सेक्टर जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर, बैंकिंग, माइनिंग इत्यादि या स्पेशिफिक सेग्मेंट्स जैसे कि मिड कैप, स्माल कैप या लार्ज कैप में निवेश किया जाता है. इंडेक्स फंड्स की बात करें तो यह ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर है जो इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना चाहते हैं लेकिन अपने फंड मैनेजर पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं.
  • इंडेक्स म्यूचुअल फंड उसी स्ट्रेटजी को फॉलो करता है जिस पर यह बेस्ड होता है. इंडेक्स फंड्स में निवेश मीडियम रिस्क लेने की क्षमता वाले निवेशकों के लिए बेहतर है.
  • टैक्स सेविंग फंड्स की बात करें तो यह फंड निवेशकों की पूंजी को इक्विटी में निवेश करता है और 3 साल के लॉक-इन पीरियड वाले इस फंड पर सेक्शन 80सी के तहत टैक्स डिडक्शन का लाभ मिलता है. इन्हें इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ईएलएसएस) कहते हैं.

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मनी मार्केट फंड्स या लिक्विड फंड्स: ये फंड्स शॉर्ट टर्म डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करती हैं और कम समय में निवेशकों को बेहतर रिटर्न देती हैं. ये फंड्स ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर है जिनके रिस्क लेने की क्षमता कम होती है और वे अपनी अतिरिक्त पूंजी को शॉर्ट टर्म में कहीं निवेश करना चाहते हैं. यह एक तरह से अपने पैसे को बैंक के बचत खाते में रखने का विकल्प है.

फिक्स्ड इनकम या डेट म्यूचुअल फंड्स: इस फंड्स के पैसों का अधिकतर हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों, बांड्स, डेटर्स जैसे फिक्स्ड कूपन बियरिंग इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश किया जाता है. इसमें कम रिस्क होता है लेकिन रिटर्न भी कम मिलता है. यह ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प है जिनके रिस्क लेने की क्षमता कम है और वे एक स्थाई आय का विकल्प खोज रहे हैं. हालांकि इनमें निवेश से क्रेडिट रिस्क जुड़ा हुआ है.

बैलेंड्स फंड्स: ये ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीम्स हैं जिसमें निवेशकों की पूंजी को इक्विटी और डेट में मिलाकर निवेश किया जाता है. मार्केट रिस्क के आधार पर इक्विटी और डेट में निवेश पूंजी को तय किया जाता है. ये ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हैं जो कम रिस्क के साथ मॉडेरेट रिटर्न चाहते हैं.

हाइब्रिड/मंथली इनकम प्लान्स (एमआईपी): ये बैंलेंस्ड फंड्स के समान ही होते हैं लेकिन बैलेंस्ड फंड्स की तुलना में एमआईपी में इक्विटी एसेट्स का हिस्सा कम होता है. इसलिए इसे मार्जिनल इक्विटी फंड्स भी कहते हैं. ये ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हैं जो रिटायर हो चुके हैं और अपेक्षाकृत कम रिस्क के साथ नियमित आय चाहते हैं.

गिल्ट फंड्स: ये फंड्स सिर्फ सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं. ये ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प है जिनके रिस्क लेने की क्षमता कम होती है और वे अपनी पूंजी को लेकर अधिक रिस्क नहीं उठाना चाहते हैं. इसमें निवेश पर हाई इंटेरेस्ट रेट रिस्क जुड़ा होता है.