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ईएसओपी कंपनी और कर्मियों दोनों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है. (Image- Pixabay)
Employee Benefit Scheme: कंपनी अपने कर्मियों को सैलरी के अलावा भी कई बेनेफिट्स देती है. इसमें एंप्लाई स्टॉक ऑप्शन प्लान या एंप्लाई स्टॉक ओनरशिप प्लान (Employee Stock Ownership Plan- ESOP) भी शामिल है. इसके जरिए कर्मचारियों को अपनी ही कंपनी में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. यह कंपनी और कर्मचारियों दोनों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है क्योंकि कंपनी इस योजना के तहत उन्हें सस्ते भाव पर अपने शेयर देती है. माना जाता है कि कंपनी के शेयरों में निवेश के बाद कर्मचारी उसके प्रदर्शन पर पहले से ज्यादा फोकस करेंगे.
कैसे काम करता है ESOP
कंपनी अपने कर्मचारियों को इस योजना के तहत एक तय मूल्य पर निश्चित संख्या में शेयर खरीदने का विकल्प देती है जो आमतौर पर मार्केट मूल्य से कम होता है. इसे डायरेक्ट स्टॉक, प्रॉफिट-शेयरिंग स्टॉक या बोनस के तौर पर जारी किया जाता है और इसकी शर्तें पूरी तरह कंपनी के हिसाब से तय होती है कि किसे यह सुविधा मिलेगी. इसके तहत कंपनी जारी किए जाने वाले शेयरों की संख्या, उसकी कीमत और लाभार्थियों का फैसला करती है. इसके बाद एक निश्चित तारीख पर इसे कर्मचारियों के नाम अलॉट किया जाता है. ये शेयर एक निश्चित अवधि तक ट्रस्ट फंड के पास रहते हैं जिसे वेस्टिंग पीरियड कहते हैं.
योजना के तहत शेयरों की होल्डिंग हासिल करने के लिए कर्मियों को इस पीरियड तक कंपनी से जुड़े रहना जरूरी होता है. वेस्टिंग पीरियड के बाद एंप्लाई अपने ESOP का इस्तेमाल कर सकते हैं. कंपनी के कर्मचारी शेयरों को पूर्व निर्धारित भाव पर खरीद सकते हैं जो मार्केट वैल्यू से आमतौर पर कम होता है. वे चाहें तो इसकी बिक्री भी कर मुनाफा भी कमा सकते हैं.
ESOP से जुड़े रिस्क
- लिक्विडिटी का रिस्क है क्योंकि इसमें तय डेट से पहले शेयर कर्मचारी के नाम ट्रांसफर नहीं होते हैं.
- ESOP के लिए टैक्स देनदारी का कैलकुलेशन पहले ही कर लेना चाहिए ताकि नेट प्रॉफिट पॉजिटिव हो.
- अगर कंपनी का प्रदर्शन कमजोर हुआ तो शेयरों पर निगेटिव इंपैक्ट पड़ सकता है.
- कंपनी दिवालिया हुई या किसी फर्जीवाड़े में शामिल पाई गई तो उसका भी निगेटिव असर पड़ता है.
टैक्स देनदारी
ईएसओपी पर दो तरीकों से टैक्स देनदारी बनती है- पहला एक्सरसाइज के समय और दूसरा बेचने के समय. जब इस योजना के तहत कर्मचारी शेयरों को खरीदते हैं, तो इस पर टीडीएस (Tax Deducted At Source) काटा जाता है. इसके बाद शेयरों की बिक्री के समय भी कर्मचारियों को मुनाफे पर टैक्स चुकाना होता है. शेयरों की बिक्री से हुए मुनाफे पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) टैक्स चुकाना होगा या लांग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स भरना होगा यह इस बात से तय होता है कर्मचारी ने शेयर को कितने समय तक अपने पास रखा है.
(इनपुट: पॉलिसीबाजार)