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EPF Vs NPS: बजट में बदलाव से है उलझन! समझिए ईपीएफ और एनपीएस में कौन-सा रिटायरमेंट प्लान बेहतर

EPF vs NPS: आज जब निवेश के ढेर सारे विकल्प मौजूद हैं तो अधिकतर निवेशकों को यह उलझन रहती है कि किस विकल्प में निवेश किया जाए.

EPF vs NPS: आज जब निवेश के ढेर सारे विकल्प मौजूद हैं तो अधिकतर निवेशकों को यह उलझन रहती है कि किस विकल्प में निवेश किया जाए.

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EPF Vs NPS Which is a better retirement saving option for you post proposed changes in EPF rules in Budget 2021

दोनों विकल्पों ईपीएस और एनपीएस में निवेश से दोहरा फायदा मिलता है, टैक्स बचत के साथ इनसे निवेशकों को अच्छा रिटर्न भी प्राप्त होता है

EPF vs NPS: आज जब निवेश के ढेर सारे विकल्प मौजूद हैं तो अधिकतर निवेशकों को यह उलझन रहती है कि किस विकल्प में निवेश किया जाए. अधिकतर कर्मियों के लिए नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) और एंप्लाइज प्रोविडेंट फंड (EPF) सबसे अधिक प्रचलित निवेश विकल्प हैं. इन दोनों विकल्पों में निवेश से दोहरा फायदा मिलता है, टैक्स बचत के साथ इनसे निवेशकों को अच्छा रिटर्न भी प्राप्त होता है. हालांकि, दोनों में कौन सा विकल्प बेहतर है, यह एंप्लाई की रिस्क लेने की क्षमता, सिक्योरिटी लॉक इन, लिक्विडिटी और मेच्योरिटी इत्यादि फैक्टर्स पर भी निर्भर करती है. एनपीएस और ईपीएफ में बेहतर विकल्प चुनने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु नीचे दिए जा रहे हैं, जिनके आधार पर आप फैसला कर सकते हैं कि किसमें निवेश बेहतर होगा.

EPF में योगदान

प्रोविडेंट फंड से जुड़ा कानून कई दशकों से है और 20 से अधिक कर्मियों वाले कंपनियों को इसे 15 हजार से कम की बेसिक सैलरी मासिक वाले अपने एंप्लाई को ऑफर करना अनिवार्य है. हालांकि इससे अधिक की बेसिक सैलरी वाले कर्मी भी इसमें कांट्रिब्यूट कर सकते हैं.

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ईपीएफ में मिनिमम कांट्रिब्यूशन पीएफ सैलरी का 12 फीसदी होता है जो बेसिक सैलरी, डीए (महंगाई भत्ता), फूड कंसेशन का कैश वैल्यू और रिटेनिंग अलाउंस का एग्रीगेट होता है. कर्मियों की इच्छा के मुताबिक अधिकतम कांट्रिब्यूशन 15 हजार रुपये का 12 फीसदी यानी 1800 रुपये प्रति महीने तक सीमित किया सकता है. हालांकि कर्मी चाहें तो अपनी 100 फीसदी बेसिक सैलरी को ईपीएफ में वालंटरी कांट्रिब्यूशन कर सकते हैं.

NPS में योगदान

ईपीएस के विपरीत एनपीएस पिछले दशक में शुरू किया गया था और भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया पेंशन-कम-इंवेस्टमेंट है. भारतीय नागरिक और ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्डहोल्डर्स इसमें निवेश कर सकते हैं. एनपीएस एक वालंटरी कांट्रिब्यूशन स्कीम है जिसमें Tier 1 में 500 रुपये और Tier 2 खाते में में न्यूनतम 1 हजार रुपये का मिनिमम कांट्रिब्यूशन किया जा सकता है. कोई भी इंडिविजुअल अपने एंप्लायर के जरिए या स्वतंत्र रूप से एनपीएस से जुड़ सकता है. इसमें पैसे को निवेशक अपनी रिस्क लेने की क्षमता के मुताबिक इक्विटी, कॉरपोरेट डेट और गवर्नमेंट बांड्स में निवेश के लिए विकल्प का चयन कर सकते हैं.

NPS (Tier 1) पर टैक्स देनदारी/डिडक्शन

  • रेगुलर टैक्स सिस्टम के तहत एंप्लॉयर के जरिए 1.5 लाख रुपये तक का एनपीएस (Tier 1) में एंप्लाई कांट्रिब्यूशन कुल आय से डिडक्ट हो सकता है.
  • रेगुलर टैक्स सिस्टम के तहत एंप्लाई का 50 हजार रुपये का अपना कांट्रिब्यूशन कुल आय में डिडक्ट हो सकता है.
  • रेगुलर टैक्स सिस्टम के तहत एंप्लॉयर का बेसिक सैलरी का 10 फीसदी तक कांट्रिब्यूशन कुल आय से डिडक्ट हो सकता है.
  • सरल टैक्स सिस्टम की बात करें तो सिर्फ एंप्लॉयर द्वारा बेसिक सैलरी के 10 फीसदी तक कांट्रिब्यूशन ही डिडक्ट होता है.
  • एनपीएस सब्सक्राइबर्स के 60 वर्ष की उम्र का होने पर उन्हें कॉर्पस से 60 फीसदी रकम निकालने की मंजूरी मिलती है. शेष 40 फीसदी रकम को एन्यूटी के रूप में इंडिविजुअल को पे किया जाता है. इसके अलावा योजना का हिस्सा बनने के 10 साल बाद कॉर्पस से 25 फीसदी तक रकम निकालने की मंजूरी मिलती है.

EPF पर टैक्स देनदारी/डिडक्शन

  • ईपीएफ में रेगुलर टैक्स सिस्टम के तहत कुल आय से 1.5 लाख रुपये तक का एंप्लाई कांट्रिब्यूशन डिडक्ट हो सकता है. इसके अलावा बेसिक सैलरी के 12 फीसदी तक के एंप्लाई कांट्रिब्यूशन को अनुमति है.
  • सिंप्लीफाइड टैक्स सिस्टम के तहत ईपीएफ में कोई डिडक्शंस नहीं मिलता है.
  • पोस्ट सेशन ऑफ एंप्लॉयमेंट पर मिला ब्याज टैक्सेबल है.
  • एंप्लॉयर के यहां पांच साल से कम की लगातार जॉब ने होने की स्थिति में अगर ईपीएफ से कोई राशि निकाली जाती है तो उस पर टैक्स देना होता है. हालांकि अगर बीमारी, एंप्लॉयर की कमजोर कारोबारी स्थिति या अन्य किसी ऐसी परिस्थिति में एंप्लाई ने लगातार जॉब नहीं की है, जो उसके नियंत्रण से बाहर था, तो उसे टैक्स नहीं देना होगा.

    (यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि अगर ईपीएफ, एनपीएस और सुपरएन्युएशन फंड में 7.5 लाख रुपये से अधिक का कांट्रिब्यूशन होता है तो एंप्लाई को टैक्स चुकाना होगा.)

बजट में प्रस्तावित बदलाव

फाइनेंस बिल 2021 में प्रस्तावित किया गया है कि प्रोविडेंट फंड में एंप्लाई का कांट्रिब्यूशन अगर 2.5 लाख रुपये से अधिक होता है तो उसे रिटर्न पर टैक्स चुकाना पड़ सकता है. इसका प्रभाव ऐसे लोगों पर पड़ेगा जिनकी आय अधिक है और अधिक बेसिक सैलरी के आधार पर कांट्रिब्यूशन करते हैं या वालंटरी कांट्रिब्यूशन अधिक करते हैं. हालांकि आम लोगों पर इसका प्रभाव अधिक नहीं पड़ेगा और ऐसे में ईपीएफ अभी भी आकर्षक विकल्प बना हुआ है.

EPF पर फिक्स्ड दर पर रिटर्न

पीएफ के तहत मिलने वाला रिटर्न सरकार तय करती है. केंद्र सरकार हर साल पीएफ के ब्याज दर का एलान करती है. इसके विपरीत एनपीएस पर मिलने वाला रिटर्न आपके चुने गए विकल्पों के एनएवी पर निर्भर करती है जो कम भी हो सकती है और बढ़ भी सकती है. इस प्रकार पीएफ में निवेश लगभग सुरक्षित रहता है और निश्चित रिटर्न मिलता है जबकि एनपीएस में रिस्क अधिक है और रिटर्न भी अधिक मिलता है. इस प्रकार आम लोगों के लिए दोनों विकल्पों के अपने टैक्स एडवांटेज हैं और बेहतर रिटर्न हैं.

(Article: Aarti Raote, Partner, Deloitte India with Anandan N, Manager, and Vrrithi Aggarwal, Assistant Manager, Deloitte Haskins & Sells LLP)

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