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हेल्थ इंश्योरेंंस खरीदने से पहले सेहत की सही जानकारी देनी चाहिए.
हेल्थ इंश्योरेंस का चुनाव सोच-समझ कर करना चाहिए. अपनी हेल्थ जरूरतों के हिसाब से ही हमें इंश्योरेंस पॉलिसी भी चुनना चाहिए. हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय अपने मेडिकल रिकॉर्ड के बारे में बिल्कुल सही जानकारी देनी चाहिए. कभी भी पुरानी बीमारी को छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. अगर आप पुरानी बीमारी छिपाते हैं या कोई गलत जानकारी देते हैं तो इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देने से इनकार कर सकती है. पुरानी बीमारी है तो आपको भले ही कुछ अधिक प्रीमियम चुकाना पड़े, लेकिन आप सही जानकारी देकर इंश्योरेंस लें.
डाइबिटीज या बीपी जैसी दिक्कतों को न छिपाएं
अमूमन देखा जाता है कि लोग हेल्थ पॉलिसी लेते समय डाइबिटीज या बीपी जैसी समस्याओं का जिक्र नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी पॉलिसी या तो रिजेक्ट हो सकती है या उन्हें अधिक प्रीमियम चुकाना पड़ सकता है. लिहाजा कभी भी अपने स्वास्थ्य की ऐसी समस्याओं को न छिपाएं. मार्केट में कई तरह की की हेल्थ पॉलिसी मौजूद हैं. मसलन स्टेपल हेल्थ प्लान, एक्सीडेंट पॉलिसी या कोरोना जैसी गंभीर बीमारी के लिए विशेष कोरोना कवच पॉलिसी. हर पॉलिसी की शर्तें अलग होती हैं, कवरेज अलग होता है. ऐसे में कोई भी प्लान चुनने से पहले उसके खूबियों को अच्छी तरह समझ लें.
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कंपनी के कवर के अलावा भी लें हेल्थ पॉलिसी
अगर कंपनी से हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज मिला हुआ है तो भी अलग से पॉलिसी खरीदने की जरूरत पड़ती है. कई लोगों के मानना है कि अलग से पॉलिसी खरीदने की जरूरत नहीं है. ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह कवर तभी तक मिलता है जब तक आप कंपनी के कर्मचारी हैं. कंपनी छोड़ते ही आपको पास कोई हेल्थ कवर नहीं रह जाता है. ऐसे में अलग से एक हेल्थ पॉलिसी होनी चाहिए ताकि आपके पास हमेशा हेल्थ कवर रहे.
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को रोजाना के मेडिकल और इलाज के खर्चों के लिए नहीं इस्तेमाल करना चाहिए. बार-बार क्लेम करने पर हेल्थ पॉलिसी के रिन्युअल के समय नो क्लेम बोनस नहीं मिलता. यह बोनस प्रतिशत हर साल में जुड़ता जाता है, जिस साल क्लेम नहीं लिया गया है और डिस्काउंट प्रीमियम के 50 फीसदी जितना हो जाता है.