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इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स को इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 80सी के तहत कई तरह के खर्चों और निवेश पर छूट मिलती है.
Budget 2022: इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स को इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 80सी के तहत कई तरह के खर्चों और निवेश पर छूट मिलती है. आयकर अधिनियम के तहत 1.5 लाख रुपये तक के खर्च व निवेश पर टैक्स छूट का फायदा लिया जा सकता है. सेक्शन 80सी के तहत पीपीएफ, ईपीएफ, एलआईसी प्रीमियम, ईएलएसएस, बच्चों की फीस, होम लोन के प्रिंसिपल अमाउंट पेमेंट, संपत्ति की खरीदारी में स्टांप ड्यूटी व रजिस्ट्रेशन चार्जेज इत्यादि में डिडक्शन का फायदा मिलता है. हालांकि, टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि अलग-अलग टैक्स-सेविंग निवेश और खर्च में सेक्शन 80सी की लिमिट बढ़ाई जानी चाहिए. टैक्सपेयर्स भी काफी समय से सेक्शन 80सी की लिमिट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. अभी के आर्थिक हालात को ध्यान में रखते हुए डिमांड को प्रोत्साहित करना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है और ऐसा आगामी बजट में 80C की लिमिट बढ़ाकर किया जा सकता है.
80C लिमिट में बढ़ोतरी से करदाताओं को कैसे होगा फायदा?
- वर्तमान में आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत 25 अलग-अलग निवेश और खर्च में छूट मिलती है, जिनमें प्रोविडेंट फंड, पीपीएफ, एनएससी, बच्चों की ट्यूशन फीस, हाउसिंग लोन प्रिंसिपल रि-पेमेंट, टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड, 5 साल की टर्म डिपॉजिट, लाइफ इंश्योरेंस पेमेंट शामिल हैं. एक टैक्सपेयर जो 1,50,000 रुपये के पीपीएफ में निवेश करने का विकल्प चुनता है, वह बच्चों की ट्यूशन फीस, हाउसिंग लोन प्रिंसिपल रि-पेमेंट या टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड, एनएससी, आदि में किए गए अतिरिक्त निवेश के लिए क्लेम करने के लिए पात्र नहीं है. धारा 80सी की लिमिट में किसी भी बढ़ोतरी या कमी का कर योग्य आय पर और किसी व्यक्ति की कर देयता पर सीधा असर पड़ता है.
- डेलॉइट इंडिया के पार्टनर सुधाकर सेथुरमन कहते हैं, “रियल एस्टेट मार्केट में हाउसिंग लोन की दरें अब तक के सबसे निचले स्तर पर होने के कारण निवेश में उछाल देखा जा रहा है. वर्तमान में, हाउसिंग लोन प्रिंसिपल रि-पेमेंट भी 150,000 रुपये की लिमिट में शामिल है. चूंकि हाउसिंग किसी व्यक्ति के जीवन का एक जरूरी हिस्सा है, इसलिए हाउसिंग लोन प्रिंसिपल रि-पेमेंट के लिए एक अलग डिडक्शन की जरूरत है. इससे करदाताओं को हाउसिंग लोन के रि-पेमेंट में हायर डिडक्शन का फायदा मिलेगा. इसके साथ ही, अन्य इन्वेस्टमेंट कैटेगरी के ज़रिए अतिरिक्त बचत की अनुमति मिलेगी.
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- सैलरीड टैक्सपेयर प्रोविडेंट फंड या नेशनल पेंशन स्कीम में निवेश करते हैं और इससे 80सी के तहत 1.5 लाख की लिमिट आंशिक रूप से या पूरी तरह से समाप्त हो जाती है. इसलिए, लिमिट में बढ़ोतरी से सैलरीड टैक्सपेयर्स को स्मॉल सेविंग स्कीम व अन्य तरीकों में निवेश में मदद मिलेगी.
- महामारी की वजह से लोगों के खर्च में बढ़ोतरी हुई है. सेथुरमन बताते हैं, "यह सही समय है कि सरकार 80C डिडक्शन की लिमिट बढ़ाए. इससे आम करदाताओं को करों को कम करने और अतिरिक्त खर्चों की बचत करने में मदद मिलेगी."
- पिछली बार 2014-15 के केंद्रीय बजट में धारा 80सी के तहत सीमा को 1,00,000 रुपये से बढ़ाकर 1,50,000 रुपये किया गया था. तब से, इन्फ्लेशन की दर में बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा, सेविंग बैंक अकाउंट या फिक्स्ड टर्म डिपॉजिट पर ब्याज दरें भी निचले स्तर पर हैं. इसलिए, 80सी लिमिट में बढ़ोतरी जरूरी है, ताकि टैक्सपेयर्स कई स्कीम्स में निवेश करके अधिक बचत कर सके.
- हालांकि, इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि एक टैक्सपेयर जो नई कर व्यवस्था का विकल्प चुनता है, वह धारा 80 सी के तहत कटौती का दावा करने के लिए पात्र नहीं है.
(Article: Sanjeev Sinha)