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Home Loan Prepayment: क्या होम लोन प्री-पेमेंट का यही है सही समय? समझिए पैसे बचाने के लिए क्या हो आपकी स्ट्रेटजी

Home Loan Prepayment: अगर आपको किसी अन्य स्रोत से एकमुश्त रकम मिल गई है तो आप प्री-पेमेंट करके अपनी EMI को कम करवा सकते हैं.

Home Loan Prepayment: अगर आपको किसी अन्य स्रोत से एकमुश्त रकम मिल गई है तो आप प्री-पेमेंट करके अपनी EMI को कम करवा सकते हैं.

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FE Online
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Home Loan Prepayment

लोन और इसके ब्याज से छुटकारा पाने के लिए प्री-पेमेंट एक बेहतर विकल्प है.

Home Loan Prepayment: लोन और इसके ब्याज से छुटकारा पाने के लिए प्री-पेमेंट एक बेहतर विकल्प है. हम सभी अपने कर्ज का भुगतान जल्द से जल्द करना चाहते हैं और लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल कमिटमेंट से छुटकारा पाना चाहते हैं. अगर आपको किसी अन्य स्रोत से एकमुश्त रकम मिल गई है तो आप प्री-पेमेंट करके EMI को कम करवा सकते हैं. प्री-पेमेंट की गई राशि से मूलधन यानी कि जो राशि कर्ज में ली गई है, उसे एडजस्ट किया जाता है और यह राशि कम हुई तो इसका असर EMI पर दिखेगा.

आरबीआई ने हाल ही में रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइंट्स की वृद्धि की थी, जिसके बाद कई बैंकों ने लेंडिंग रेट में इजाफा किया है. इसके चलते लोन लेना अब महंगा हो गया है. ज्यादातर फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट लोन रेपो रेट से लिंक्ड होते हैं. जिसके चलते बॉरोअर्स की EMI बढ़ रही है. आइए जानते हैं कि आपको होम लोन के प्री-पेमेंट को कैसे मैनेज करना चाहिए और लॉन्ग टर्म में इसका क्या फायदा होता है.

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ब्याज में बढ़ोतरी लोन री-पेमेंट को कैसे प्रभावित करती है?

जब आपके मौजूदा लोन पर इंटरेस्ट रेट बढ़ता है, तो आपको लेंडर से दो विकल्प मिलते हैं- या तो आपकी EMI बढ़ती है (नीचे उदाहरण में विकल्प I) या आपका टेन्योर बढ़ता है. (नीचे उदाहरण में विकल्प II). नीचे दिए गए टेबल में उदाहरण की मदद से आइए जानते हैं कि दोनों मामलों में आपके लोन पर क्या असर होता है.

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दोनों ही मामलों में बॉरोअर्स को अधिक ब्याज का भुगतान करना होगा, हालांकि, अगर आप EMI में बदलाव नहीं करते और टेन्योर बढ़ाते हैं तो अधिक ब्याज देना होगा. आपके लोन पर इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी के प्रभाव को कम करने के लिए लोन प्री-पेमेंट एक बेहतर तरीका हो सकता है.

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लोन प्री-पेमेंट कैसे होता है?

बैंकबाजार के अनुसार, जब इंटरेस्ट रेट बढ़ता है, और आप लोन टर्म के दौरान अतिरिक्त ब्याज से बचने के लिए प्री-पेमेंट करना चाहते हैं, तो बैंक आपको अपनी लोन लायबिलिटी को फिर से एडजस्ट करने के लिए अलग-अलग विकल्प देता है. पहला विकल्प ये है कि (नीचे दिए गए उदाहरण में केस-I), EMI में कोई बदलाव नहीं होता है, वहीं री-पेमेंट टेन्योर बदल जाती है. नतीजतन EMI की संख्या में कमी आती है. दूसरा विकल्प यह है कि (उदाहरण में केस- II), EMI का आकार बदल जाता है, जबकि टेन्योर वही रहता है. लेकिन इसके लिए बड़े प्री-पेमेंट की जरूरत होती है और आपको EMI आकार में कमी का फायदा मिलता है.

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आपको सही री-पेमेंट रणनीति के साथ तैयार रहना चाहिए. आपके लेंडर के पास कई री-पेमेंट विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं जो आपको ब्याज बचाने और किसी तरह के तनाव से बचने में मदद कर सकते हैं. इसलिए, अपने लेंडर के साथ चर्चा करने में संकोच न करें और अपने लिए सही विकल्प का चुनाव करें.

(Sanjeev Sinha)

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