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म्यूचुअल फंड में निवेश पर दो तरीके से रिटर्न मिलता है- डिविडेंड्स और कैपिटल गेन.
Mutual Fund Tax Implication: निवेश की बात की जाए तो म्यूचुअल फंड बेहतर विकल्प बनकर सामने आता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि यह न सिर्फ वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में मददगार साबित होता है बल्कि टैक्स-एफिशिएंट इंस्ट्रूमेंट्स भी साबित होता है. फिक्स्ड डिपॉजिट्स भी निवेश के लिए अधिकतर लोगों का पसंदीदा विकल्प है लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि अगर आप सबसे अधिक दरों वाले टैक्स ब्रेकेट में आते हैं तो एफडी पर मिलने वाला ब्याज आपकी आय में जब जुड़ती है तो सबसे अधिक दर से इस पर टैक्स चुकाना होता है.
इस मामले में म्यूचुअल फंड में निवेश बेहतर है और इस पर मिलने वाले रिटर्न पर अलग तरीके से टैक्स कैलकुलेशन होता है, बजाय टैक्सेबल आय में जोड़कर स्लैब के मुताबिक टैक्स कैलकुलेट करने के. इनके अलावा वित्त मंत्रालय 0.001 फीसदी का सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) भी किसी इक्विटी या हाइब्रिड इक्विटी-ओरिएंटेड फंड की खरीद और बिक्री पर लेती है. डेट फंड के यूनिट्स की खरीद बिक्री पर कोई एसटीटी नहीं लगता है.
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म्यूचुअल फंड में निवेश पर दो तरह से मिलता है रिटर्न
म्यूचुअल फंड में निवेश पर दो तरीके से रिटर्न मिलता है- डिविडेंड्स और कैपिटल गेन. जब कंपनी के पास सरप्लस कैश बचता है तो इसे निवेशकों के निवेश के अनुपात में डिविडेंड के रूप में दिया जाता है. इस पर टैक्स कैलकुलेट करने के लिए इसे टैक्सेबल इनकम में जोड़कर स्लैब के मुताबिक टैक्स कैलकुलेट किया जाता है. अभी एक वित्त वर्ष में 10 लाख रुपये तक का डिविडेंड टैक्स-फ्री है. वहीं दूसरी तरफ कैपिटल गेन म्यूचुअल फंड में निवेश की निकासी करने पर होने वाला प्रॉफिट है और इस पर टैक्स इस पर निर्भर करता है कि पूंजी इक्विटी, डेट या हाइब्रिड फंड में से किसमें निवेश हुई है और इसे निवेश कितने समय तक बना रहा.
कैपिटल गेन्स पर इस तरह बनती है टैक्स देनदारी
- इक्विटी फंड्स के कैपिटल गेन्स पर टैक्स देनदारी: अगर इक्विटी फंड्स का होल्डिंग पीरियड 12 महीने से कम का है तो इस पर मिलने वाला प्रॉफिट शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स होगा और इस पर फ्लैट 15 फीसदी की दर से टैक्स देना होगा. इसके अलावा इस पर सेस व सरचार्ज भी लगाया जाता है. 12 महीने से अधिक तक की होल्डिंग पर लांग टर्म कैपिटल गेन्स होगा और 1 लाख रुपये तक का गेन्स टैक्स-फ्री है. 1 लाख रुपये से अधिक का लांग टर्म कैपिटल गेन्स 10 फीसदी की दर से टैक्सेबल होता है और इस पर इंडेक्सेशन बेनेफिट भी नहीं मिलता है. इसके अलावा इस पर सेस व सरचार्ज भी लगाया जाता है.
- डेट फंड्स के कैपिटल गेन्स पर टैक्स देनदारी: जिस म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो में 65 फीसदी से अधिक डेट इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं वे डेट फंड्स के अंतर्गत आते हैं. इस फंड को तीन साल से पहले अगर रिडीम करते हैं तो इस पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन होता है और इसे टैक्सेबल इनकम में जोड़कर स्लैब रेट के मुताबिक टैक्स देनदारी बनती है. तीन साल के बाद अगर डेट फंड के यूनिट्स की बिक्री की जाती है तो प्रॉफिट लांग टर्म कैपिटल गेन होता है और इस पर इंडेक्सेशन के बाद 20 फीसदी की दर से टैक्स देयता बनती है. इसके अलावा इस पर सेस व सरचार्ज भी लगाया जाता है.
- हाईब्रिड फंड पर कैपिटल गेन्स: म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो में 65 फीसदी से अधिक इंस्ट्रूमेंट्स जिस कैटेगरी के हिसाब से हैं, उसी के मुताबिक ही टैक्स कैलकुलेशन होगा. जैसे कि अगर 65 फीसदी से अधिक एक्सपोजर इक्विटी का है यानी कि 65 फीसदी से अधिक निवेश इक्विटी में हुआ है तो इस पर टैक्स देनदारी इक्विटी फंड के आधार पर की जाएगी.
(सोर्स: क्लियरटैक्सडॉटइन)