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अपने बच्चे को विदेश में पढ़ाने में US मार्केट पोर्टफोलियो का फायदा उठा सकते हैं.
पहले के समय में विदेशों में पढ़ना (Study Abroad) भारतीय छात्रों के लिए एक सपने जैसा होता था. बहुत कम लोगों का ही यह सपना पूरा हो पाता था. लेकिन आज कई भारतीयों के लिए यह बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है. भारत के कई छात्र अमेरिका जैसे देशों में ना सिर्फ पढ़ाई कर रहे हैं बल्कि बढ़िया नौकरी भी कर रहे हैं. आज लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) जैसे प्लान मौजूद हैं, जिनके ज़रिए शिक्षा संबंधी जरूरतों के लिए बड़ा अमाउंट विदेश भेजना काफी आसान हो गया है. भारत में आमतौर पर बच्चे की शिक्षा के लिए धन जमा किया जाता है और फिर उसे विदेश में पढ़ रहे बच्चे के ट्यूशन और रहने के खर्च के भुगतान के लिए भेजा जाता है.
हालांकि, डॉलर डिनोमिनेटेड एसेट्स (ऐसे एसेट जिनकी कीमत डॉलर में लिखी या बताई जाती है) के तौर पर निवेश के कई फायदे होते हैं:
- हमें एक बड़े, विकसित और मजबूत बाजार में निवेश का फायदा मिलता है.
- US में निवेश करने से डायवर्सिफिकेशन का फायदा होता है, क्योंकि आप अपने पैसे अलग-अलग जगहों में निवेश कर पाते हैं. इनका घरेलू बाजार से ज्यादा लेना-देना भी नहीं होता है.
- डॉलर में पैसा रखने से एक्सचेंज रेट और डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू में गिरावट जैसे जोखिम खत्म हो जाते हैं.
आइए हम इसे एक उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए, कोई परिवार A आठ साल बाद अपने बच्चे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहता है. इसे ध्यान में रखते हुए परिवार यह प्लान बना रहा है कि टारगेट अमाउंट को पाने के लिए बचत और निवेश का तरीका क्या हो और फिर इसे विदेश में पढ़ रहे अपने बच्चे को कैसे ट्रांसफर किया जाए. इस मकसद के लिए अमेरिकी बाजार में आंशिक या सभी बचत को निवेश करना ना सिर्फ डायवर्सिफिकेशन बेनिफिट प्रदान करेगा बल्कि एक्सचेंज रेट के जोखिम को भी कम करेगा.
अमेरिकी बाजार में कम होता है उतार-चढ़ाव
भारत जैसे उभरते बाजारों की तुलना में अमेरिकी बाजार में ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव औसतन कम रहा है. इसके अलावा, पिछले दशक में रिटर्न भी बेहतर रहा है. हम जानते हैं, एक व्यक्ति द्वारा फाइनल अमाउंट विदेश भेज सकना, फंड ट्रांसफर के समय प्रचलित एक्सचेंज रेट्स पर निर्भर करता है. इसलिए, एक्सचेंज रेट में उतार-चढ़ाव लंबी अवधि में जमा किए गए धन को ट्रांसफर करते समय महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है. दूसरी ओर, US में संचित पूंजी में एक्सचेंज रेट रिस्क का कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि डॉलर-आधारित खर्चों के लिए फंड डॉलर में जमा किए जाते हैं. इससे न सिर्फ लंबी अवधि के इंवेस्टमेंट गोल्स में फायदा होता है, बल्कि शॉर्ट-टर्म टारगेट्स के लिए भी अमेरिका में निवेश करना उतना ही फायदेमंद है.
आइए इसे एक और उदाहरण से समझते हैं.
मिस्टर B का एक बच्चा है जिसका एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी में एडमिशन हो गया है. उसे अगले तीन वर्षों तक अपना खर्च वहन करना होगा. इस मामले में, मान लीजिए कि भारत में एक फंड पहले ही जमा करके रखा गया है. यह फंड घरेलु बाजार में ना सिर्फ शॉर्ट-टर्म ब्याज दरों से प्रभावित होगा, बल्कि शॉर्ट-टर्म मार्केट रिस्क से भी प्रभावित होगा. इसके अलावा इसमें एक्सचेंज रेट का जोखिम भी होगा. इसके उलट, अमेरिका में सुरक्षित प्रतिभूतियों में निवेश किया जाने वाला धन, आपकी पूंजी को सुरक्षित रखता है और शॉर्ट-टर्म एक्सचेंज रेट में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचाता है. इस तरह, US मार्केट में निवेश करने वाला एक शख्स हायर एजुकेशन समेत कई मामलों में अपने निवेश का फायदा उठा सकता है.
(Article : Mr. Viraj Nanda, CEO, Globalise)