/financial-express-hindi/media/post_banners/RqfWYLjbpJQD5Gnc624X.jpg)
बाजार के उतार-चढ़ाव के चलते कई निवेशक सीधे स्टॉक मार्केट में निवेश से घबराते हैं. ऐसे लोगों के लिए सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) बेहतर म्यूचुअल फंड प्लान है.
Tax Calculation on SIP Mutual Fund: बाजार के उतार-चढ़ाव के चलते कई निवेशक सीधे स्टॉक मार्केट में निवेश से घबराते हैं. ऐसे लोगों के लिए सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) बेहतर म्यूचुअल फंड प्लान है. यह म्यूचुअल फंड का नियमित तौर पर निवेश की सुविधा देता है जिससे निवेशकों के ऊपर वित्तीय भार कम पड़ता है और वे लंबे समय में बेहतर रिटर्न पा सकते हैं. हालांकि इसमें निवेश शुरू करने से पहले टैक्सेबिलिटी का आकलन जरूर कर लेना चाहिए ताकि अपने रिटर्न को अधिक से अधिक किया जा सके. एसआईपी में निवेश पर कितना टैक्स चुकाना होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि पूंजी किसमें निवेश की गई है, इक्विटी फंड्स में या डेट फंड्स में या दोनों में. म्यूचुअल फंज जो डिविडेंड देता है, उसे कुल आय में जोड़कर इनकम टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स कैलकुलेट किया जाता है.
इक्विटी फंड्स पर इस तरह बनती है टैक्स देनदारी
अगर आप एसआईपी के तहत इक्विटी फंड यूनिट्स में निवेश करते हैं औक एक साल के भीतर ही इसे रिडीम करते हैं तो इस पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के आधार पर टैक्स चुकाना होगा. इस पर 15 फीसदी के फ्लैट रेट पर टैक्स चुकता करना होगा. हालांकि अगर एक साल से अधिक समय तक निवेश बनाए रखते हैं तो इस निवेश पर लांग टर्म कैपिटल गेन्स मिलेगा. अगर सालाना एक लाख रुपये तक का लांग टर्म कैपिटल गेन्स मिलता है तो इस पर टैक्स एग्जेंप्ट की सुविधा मिलेगा, हालांकि गेन्स इससे अधिक होने पर 10 फीसदी की दर से टैक्स कैलकुलेट होगा और इसमें इंडेक्सेशन का बेनेफिट भी नहीं मिलेगा.
एसआईपी के तहत जो यूनिट्स पहले खरीदी जाती है, उसकी निकासी पहले होती है और ऊपर दिए गए तरीके से गेन्स पर टैक्स कैलकुलेट किया जाता है. इसका मतलब हुआ कि आपने एसआईपी इक्विटी फंड में कोई निवेश दो साल तक रखा और इस पूरे निवेश को रिडीम करते हैं तो जो निवेश पहले साल में किया गया, उस पर लांग टर्म कैपिटल गेन के आधार पर टैक्स लगेगा और दूसरे साल के निवेश पर शॉर्ट टर्म के आधार पर टैक्स कैलकुलेट होगा.
डेट फंड्स पर टैक्स देनदारी
अगर डेट फंड्स की यूनिट्स खरीद रहे हैं तो तीन साल के भीतर इसे रिडीम कराने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स बनता है. इस गेन्स को आय में जोड़ा जाता है और फिर जिस इनकम टैक्स स्लैब के तहत आएंगे, उसके आधार पर टैक्स देनदारी बनेगी. तीन साल के बाद रिडीम कराने पर लांग टर्म कैपिटल गेन्स बनता है और इस पर इंडेक्सेशन के बेनेफिट के साथ 20 फीसदी की दर से टैक्स देनदारी बनती है.
इक्विटी फंड की तरह इसमें भी जो यूनिट्स पहले खरीदी जाती है, उसकी निकासी पहले होती है और ऊपर दिए गए तरीके से गेन्स पर टैक्स कैलकुलेट किया जाता है. इसका मतलब हुआ कि आपने एसआईपी डेट फंड में कोई निवेश चार साल तक रखा और इस पूरे निवेश को रिडीम करते हैं तो जो निवेश पहले तीन साल में किया गया, उस पर लांग टर्म कैपिटल गेन के आधार पर टैक्स लगेगा और चौथे साल के निवेश पर शॉर्ट टर्म के आधार पर टैक्स कैलकुलेट होगा.
हाइब्रिड फंड्स पर ऐसे बनेगी टैक्स देनदारी
अगर इक्विटी और डेट फंड्स के मिले-जुले यूनिट्स खरीद रहे हैं और 65 फीसदी से अधिक निवेश इक्विटी फंड में निवेश की जा रही है तो इस पर इक्विटी फंड मानकर टैक्स कैलकुलेट किया जाएगा. 65 फीसदी से कम निवेश इक्विटी फंड में होने पर इसे डेट फंड मानकर टैक्स कैलकुलेट किया जाएगा.
(सोर्स: क्लियरटैक्सडॉटइन)