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Investment Diversification: डायवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो कैसे बनाएं, जानिए इसके क्या हैं फायदे

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ओवर-डायवर्सिफिकेशन से पोर्टफोलियो की रिटर्न जनरेट करने की क्षमता भी कम हो जाती है, इसलिए इससे भी बचा जाना चाहिए.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ओवर-डायवर्सिफिकेशन से पोर्टफोलियो की रिटर्न जनरेट करने की क्षमता भी कम हो जाती है, इसलिए इससे भी बचा जाना चाहिए.

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FE Online
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How to build a diversified mutual fund portfolio

डाइवर्सिफिकेशन का फायदा यह है कि यह मोटे तौर पर आपके इनवेस्टमेंट में रिस्क को कम करता है.

Investment Diversification: म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करते समय पोर्टफोलियो रिस्क को मैनेज करने के लिए डायवर्सिफिकेशन का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. हालांकि, डायवर्सिफिकेशन का मतलब यह नहीं है कि बिना सोचे-समझे कई इंस्ट्रूमेंट में निवेश कर दिया जाए. बहुत सारे प्रोडक्ट और स्कीम में निवेश करने से ओवर-डायवर्सिफिकेशन हो सकता है. इसकी वजह से निवेशक के लिए सभी निवेशों को मैनेज करना कठिन हो सकता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ओवर-डायवर्सिफिकेशन से पोर्टफोलियो की रिटर्न जनरेट करने की क्षमता भी कम हो जाती है.

आज के समय में अगर आप निवेश के ज़रिए अच्छा रिटर्न चाहते हैं तो एक बेहतर पोर्टफोलियो का होना काफी अहम है. डाइवर्सिफिकेशन का फायदा यह है कि यह मोटे तौर पर आपके इनवेस्टमेंट में रिस्क को कम करता है. इसके अलावा, यह लंबी अवधि में आपके रिटर्न को भी बढ़ाता है. आपके पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन का तरीका क्या हो यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी जोखिम उठाने की क्षमता कितनी है या आपकी उम्र क्या है. इसके साथ ही आप कितने रिटर्न की उम्मीद कर रहे हैं. इन बातों को ध्यान में रखते हुए पोर्टफोलियो बनाया जाना चाहिए. इसलिए यह कहा जा सकता है कि अलग-अलग निवेशकों की जरूरत और सोच के आधार पर उनके पोर्टफोलियो में भी अंतर हो सकता है. यहां हमने बताया है कि बेहतर डायवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो कैसे बनाया जा सकता है.

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फंड एलोकेट करते समय अलग-अलग स्कीम्स के बीच बैलेंस बनाना जरूरी

इसलिए एक निवेशक का पोर्टफोलियो कैसा होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी उम्र क्या है और उसकी जोखिम उठाने की क्षमता कितनी है. उदाहरण के लिए, निवेशक की उम्र के आधार पर किसी एसेट क्लास में निवेश ज्यादा या कम हो सकता है, लेकिन उस एसेट क्लास के भीतर भी, फंड को अलग-अलग स्कीम में पर्याप्त रूप से एलोकेट किया जाना चाहिए. मान लीजिए कि किसी युवा निवेशक ने अपने पोर्टफोलियो का 80 प्रतिशत इक्विटी स्कीम्स में और 20 प्रतिशत डेट में निवेश किया है. इक्विटी स्कीम के 80 प्रतिशत फंड को एक ही फंड में एलोकेट करने के बजाए स्मॉल, मिड और लार्जकैप फंड में आवंटित किया जाना चाहिए. कितना फंड एलोकेट करना है, इसका फैसला रिटर्न की उम्मीद के हिसाब तय करना चाहिए. हालांकि, निवेशक की उम्र और जोखिम उठाने की क्षमता में बदलाव के साथ फंड एलोकेशन के अनुपात में भी धीरे-धीरे बदलाव किया जाना चाहिए.

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अलग-अलग टाइम हॉरिजोन में डायवर्सिफेकिशन

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि अलग-अलग स्कीम्स में डायवर्सिफेकशन के साथ, एक निवेशक को बेहतर डायवर्सिफेकिशन के लिए अलग-अलग टाइम हॉरिजोन पर भी विचार करना चाहिए. इसका कारण यह है कि जोखिम का स्तर आमतौर पर छोटी और लंबी अवधि में बदल जाता है, इसलिए, जब अलग-अलग टाइम हॉरिजोन में दो स्कीम में निवेश किया जाता है, तो इस तरह जोखिम को बेहतर तरीके से कम किया जा सकता है.

स्टॉक होल्डिंग्स में वेरिएशन

अपने पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन लाते हुए म्यूचुअल फंड स्कीम्स की स्टॉक होल्डिंग देखें. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा करते समय आप अपने स्टॉक होल्डिंग पैटर्न में दो समान स्कीम का पता लगा सकते हैं और उनसे बच सकते हैं. इस बात पर ध्यान दें कि कई स्कीम में एक ही स्टॉक होल्डिंग आपका डायवर्सिफिकेशन प्लान खराब कर सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब भी बाजार में उतार-चढ़ाव होगा तो ये स्कीम उसी तरह प्रदर्शन करेंगी.

(Article: Priyadarshini Maji)

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