/financial-express-hindi/media/post_banners/muvd5SJE7MCBeSTzsWBW.jpg)
सभी इंडस्ट्री की एक बिजनस साइकिल होती है और इसके बेसिक्स को समझकर स्मार्ट मूव उठाया जा सकता है.
Industry Analysis: शेयर बाजार में निवेश करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ घरेलू स्टॉक मार्केट में ही भारतीय निवेश कर रहे हैं बल्कि अब देश के बहुत से निवेशक वैश्विक मार्केट्स से भी स्टॉक को चुनकर उसमें अपनी पूंजी लगा रहे हैं. हालांकि भारतीय निवेशकों के बीच सबसे अधिक क्रेज अमेरिकी स्टॉक को लेकर है. ऐसे में सिर्फ फंड मैनेजर ही नहीं बल्कि इंडिविजुअल्स को भी इंडस्ट्री एनालिसिस करना जरूरी हो गया है ताकि अपनी पूंजी को न सिर्फ डूबने से बचाया जा सके बल्कि उस पर बेहतर मुनाफा भी कमाया जा सके. एनालिसिस के जरिए इसे लेकर बेहतर फैसला लिया जा सकता है कि निवेश का अच्छा समय कब है.
Home Loan: आपके होम लोन का आवेदन नहीं होगा रिजेक्ट, इन 5 बातों का रखें ध्यान
दो तरीकों से कर सकते हैं इंडस्ट्री एनालिसिस
इंडस्ट्रियल एनालिसिस करने से पहले यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि उस इंडस्ट्री की मैक्रो-इकोनॉमिक रियल्टी क्या है. सभी इंडस्ट्री की एक बिजनस साइकिल होती है और इसके बेसिक्स को समझकर स्मार्ट मूव उठाया जा सकता है. मोनार्क ग्लोबल की सीओओ आशमा जावेरी के मुताबिक आमतौर पर इंडस्ट्री एनालिसिस के दो आम तरीके हैं जिसमें डिमांड-सप्लाई डायनेमिक्स, प्रतियोगिता, भविष्य के प्रॉस्पेक्टस और तकनीकी बदलाव को भी शामिल करते हैं.
- SWOT एनालिसिस: यह किसी भी इंडस्ट्री को एनालिसिस करने का सबसे आम टूल है. इसमें इंडस्ट्री के स्ट्रेंथ, वीकनेस, अपॉर्यूनिटीज और थ्रेट्स का आकलन किया जाता है. अन्य इंडस्ट्री की तुलना में इंडस्ट्री किस तरह बेहतर है, ऐसे कौन से फैसले हैं जिससे इंडस्ट्री आगे जाएगी और तकनीकी बदलाव का क्या असर होगा, इन सब पहलुओं का अध्ययन करते हैं. दूसरी तरफ इंडस्ट्री की कमजोरियों का आकलन करते समय यह देखते हैं कि कर्ज का स्तर क्या है और मार्केट में किस तरह की प्रैक्टिसेज चल रहा हैं. इंडस्ट्री को प्रभावित करने वाले वाह्य कारकों से अवसर और चिंता की वजहों का अध्ययन करते हैं जिससे इंडस्ट्री पर असर पड़ सकता है. जैसे कि लंबे समय से जारी कोरोना महामारी के चलते अधिकतर इंडस्ट्रीज के लिए थ्रेट की स्थिति बनी हुई है, हालांकि इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश से सेक्टर व संबंधित इंडस्ट्रीज में नए अवसर भी बने हैं.
- पोर्टर्स फाइव फोर्सेज मॉडल: इसे माइकल पोर्टर ने डिजाइन किया था और इसके जरिए किसी इंडस्ट्री की स्ट्रेंथ और वीकनेस को एनालाइज किया जाता है. यह इंडस्ट्री के भीतर ही प्रतियोगिता को समझने में मददगार साबित होता है. इस मॉडल के तहत प्रतियोगिता, इंडस्ट्री में नए कंपनियों के आने की संभावना, सप्लायर्स के साथ-साथ ग्राहकों के कमांड और सब्स्टीट्यूट प्रॉडक्ट्स के चलते आने वाली चुनौतियों के जरिए इंडस्ट्री को एनालाइज किया जाता है. उदाहरण के लिए जिस इंडस्ट्री में नए खिलाड़ियों का प्रवेश बहुत मुश्किल है, उसमें कम कंपनियों की मौजूदगी के चलते बेहचर प्राइसिंग पॉवर रहेगी और उसमें प्रतियोगिता भी कम होगी. इसके अलावा अगर किसी इंडस्ट्री में सप्लायर्स का प्रभाव बहुत अधिक है तो इससे इनपुट कॉस्ट्स पर प्रभाव पड़ेगा.
अंडरवैल्यू वाली कंपनियों की भी मिलेगी जानकारी
इन दोनों मॉडल्स के जरिए निवेशक अर्थव्यवस्था में शामिल किसी भी इंडस्ट्री की एनालिसिस कर सकते हैं, चाहे वह भारतीय इंडस्ट्री हो या वैश्विक. इन मॉडल्स के जरिए किसी इंडस्ट्रियल सेक्टर में ऐसी कंपनियों की भी जानकारी हासिल की जा सकती है, जो अंडरवैल्यूड हैं यानी कि उनकी वर्तमान बाजार कीमत उससे कम है, जितनी होनी चाहिए. ऐसी कंपनियों की जानकारी होने पर उसमें लंबे समय के लिए निवेश कर बेहतर निवेश कमाया जा सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन कंपनियों में आगे बढ़ने की संभावना बहुत अधिक होती है और निवेश की गई पूंजी पर रिटर्न उसी हिसाब से अधिक बढ़ने की संभावना रहती है.