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Investment Strategy : निवेशकों को प्रभावशाली इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजी बनाने में निवेश सलाहकार की मदद लेनी चाहिए या नहीं, इसका फैसला करने से पहले दोनों तरीकों का नफा-नुकसान समझना जरूरी है. (Representational Image)
How to make better Investment Strategy, DIY or take help from Investment Adviser : क्या आप निवेश के लिए प्रभावशाली स्ट्रैटेजी यानी रणनीति बनाना चाहते हैं ताकि अपनी बचत के पैसों को सुरक्षित रखते हुए उन पर बेहतर रिटर्न हासिल कर सकें? ऐसा करने के लिए आप किसी निवेश सलाहकार (Financial Adviser) की मदद ले सकते हैं या फिर खुद रिसर्च करके डू-इट-योरसेल्फ (DIY) का तरीका भी अपना सकते हैं. तीसरा रास्ता इन दोनों ही तरीकों का इस्तेमाल करके एक हायब्रिड यानी मिलीजुली रणनीति पर काम करने का भी हो सकता है. इनमें से कौन सा तरीका आपके लिए बेहतर होगा ये समझने के लिए इन तीनों ही तरीकों की खूबियों और खामियों को जानना जरूरी है.
वित्तीय सलाहकार की मदद लेने के फायदे
अगर आप अपनी निवेश की रणनीति तैयार करने के लिए किसी वित्तीय सलाहकार (Financial Adviser) की मदद लेते हैं तो इससे आपको कई फायदे होंगे :
अनुभव और विशेषज्ञता का लाभ : वित्तीय सलाहकार प्रोफेशनल एक्सपर्ट होते हैं, जिनके पास फाइनेंशियल प्लानिंग और इनवेस्टमेंट की प्रोफेशनल जानकारी और अनुभव होता है. वे आपको प्रभावशाली निवेश रणनीति तैयार करने के लिए सही सलाह दे सकते हैं. उनकी सलाह आपको निवेश पर बेहतर रिटर्न हासिल करने के साथ ही साथ जोखिम कम करने में भी मददगार साबित हो सकती है.
वक्त की बचत : निवेश सलाहकार की मदद से निवेश करने पर आपका वक्त भी बचता है, क्योंकि आपको बाजार पर नजर रखने और निवेश के अलग-अलग माध्यमों के बारे में जानकारी जुटाने और रिसर्च करने पर वक्त नहीं खर्च करना पड़ता.
चिंताओं से मुक्ति : निवेश सलाहकार आपको बाजार में उथल-पुथल के दौरान सही सलाह देकर निवेश से जुड़ी चिंताओं से दूर रख सकता है और इस तरह भावनात्मक रूप से परेशान होने से बचा सकता है.
वित्तीय सलाहकार की मदद लेने के नुकसान
ऐसा नहीं है कि फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद से इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजी बनाने में सिर्फ फायदे ही फायदे हैं. इस रणनीति की कुछ नकारात्मक बातें भी हैं, जिन्हें जानना जरूरी है.
एडवाइजर की सलाह पर होने वाला खर्च : किसी निवेश सलाहकार से परामर्श लेने के लिए आपको उसे फीस चुकानी पड़ सकती है. यह फीस सलाहकार के अनुभव, उसकी विशेषज्ञता और आपके पोर्टफोलियो के साइज जैसी बातों के आधार पर अलग-अलग हो सकती है. छोटे निवेशकों को यह फीस काफी महंगी लग सकती है.
हितों का टकराव : हो सकता है कोई फाइनेंशियल एडवाइजर आपको मुफ्त में सलाह देने को तैयार हो. लेकिन ऐसी हालत में आपको हमेशा यह सवाल पूछना चाहिए कि आखिर वो ऐसा क्यों कर रहा है? आमतौर पर इसका एक ही जवाब होता है. वो आपको निवेश के जो भी रास्ते बताता है, जैसे म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस स्कीम या कोई कॉरपोरेट एफडी या कोई और उपाय - उन्हें उपलब्ध कराने वाली कंपनी उसे पैसे देती है. अगर ऐसा है, तो सलाहकार दरअसल आपके लिए नहीं, बल्कि उस कंपनी के लिए ही काम कर रहा है. ऐसे में इस बात की काफी गुंजाइश रहती है कि वो सलाहकार की बजाय सेल्स पर्सन की तरह बर्ताव करे. ऐसे में जरूरी नहीं कि उसकी सलाह आपके हित में ही हो.
DIY एप्रोच यानी खुद रिसर्च करने के फायदे
इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजी बनाने का दूसरा रास्ता डू-इट-योरसेल्फ (DIY) यानी खुद रिसर्च करके फैसले लेने का है. आइए समझते हैं इस इस रणनीति को अपनाने के फायदे:
खर्च की बचत : अपनी निवेश रणनीति खुद बनाकर और इनवेस्टमेंट को खुद मैनेज करके आप एडवाइजर को दी जाने वाली फीस की बचत कर सकते हैं. एक तरह से देखें तो यह बचत आपके रिटर्न में ही जुड़ी जाती है.
हितों के टकराव की गुंजाइश नहीं : जब आप अपनी निवेश रणनीति खुद बनाते हैं, तो इसमें हितों के टकराव की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती. आप अपना अच्छा-बुरा समझकर खुद ही सारे फैसले करते हैं. लिहाजा सभी फैसलों पर आपका पूरा नियंत्रण होता है.
सीखने का मौका : जब आप अपनी निवेश रणनीति बनाने के लिए बाजार पर नजर रखते हैं और निवेश के तमाम माध्यमों के बारे में विस्तार से जानकारियां जुटाते हैं, तो आपकी जानकारी बढ़ती है. इस तरह आप वे बातें सीखते हैं, जो आपके लिए बेहद फायदेमंद होती हैं.
DIY एप्रोच से जुड़ी दिक्कतें
अपनी निवेश रणनीति बनाने के लिए खुद ही रिसर्च करने के फायदे जहां कई फायदे हैं, वहीं इससे जुड़ी कुछ दिक्कतें भी हैं, जिनका आपको सामना करना पड़ सकता है.
विशेषज्ञता की कमी : अगर आपका एजुकेशनल बैकग्राउंड फाइनेंस के फील्ड से बिलकुल अलग रहा है, तो आपको निवेश से जुड़ी बारीकियां समझने में दिक्कत हो सकती है. विशेषज्ञता की यह कमी निवेश से जुड़े सही फैसले लेने में अड़चन पैदा कर सकती है.
वक्त और मेहनत : निवेश से जुड़े फैसले खुद लेने के लिए आपको इनवेस्टमेंट के अलग-अलग तरीकों के बारे में काफी जानकारी जुटानी होगी. इसके अलावा अगर आप इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं तो इसके लिए बाजार पर लगातार नजर रखनी होगी. इन सभी बातों में आपका काफी वक्त खर्च होगा साथ ही काफी मेहनत भी करनी होगी. अपने बाकी प्रोफेशनल कामकाज के बाद क्या आप ऐसा कर पाएंगे, ये आपको सोचना होगा.
चिंताओं का बोझ : निवेश के फैसले खुद लेने पर उससे जुड़ी चिंताएं भी बढ़ जाती हैं. खास तौर पर अगर बाजार या इकॉनमी में माहौल बहुत अच्छा न हो, तो निवेशक काफी परेशान हो सकते हैं.
हायब्रिड एप्रोच : छोटे निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प
निवेश की रणनीति तैयार करने का तीसरा तरीका यह है कि निवेशक किसी सलाहकार की मदद लेने के साथ ही साथ खुद भी रिसर्च करें. इस हायब्रिड या मिलेजुले एप्रोच की मदद से आप ऊपर बताए दोनों तरीकों का फायदा लेते हुए भी उनके नुकसान से दूर रह सकते हैं. आइए जानते हैं कि आप इस हायब्रिड स्ट्रैटेजी पर कैसे अमल कर सकते हैं.
फाइनेंशियल एडवाइजर के साथ मिलकर काम करें. यानी सारा फैसला उस पर न छोड़ दें. एडवाइजर की सलाह लें, लेकिन निवेश करने से पहले अपनी तरफ से भी छानबीन कर लें. पर्सनल फाइनेंस से जुड़े मामलों में अपनी जानकारी बढ़ाते रहें. निवेश से जुड़े दस्तावेजों और डिसक्लेमर वगैरह को पूरी सावधानी से पढ़ें. जहां कोई बात समझ न आए उसे एडवाइजर से खुलकर पूछें. उसकी बातों से शंका दूर न हो तो फाइनेंशियल सूचनाएं देने वाली विश्वसनीय वेबसाइट्स पर चेक करें या किसी जानकार दोस्त की मदद से समझने की कोशिश करें. निवेश के दूरगामी लक्ष्य को अपनी जरूरतों के हिसाब से खुद ही तय करें. निवेश करने के बाद उसे पूरी तरह भूल न जाएं. समय-समय पर उनकी समीक्षा करते रहें. बाजार पर हर वक्त गौर न करते हों, तो भी उसके ट्रेंड पर नजर बनाए रखें. इन सुझावों पर अमल करके आप न सिर्फ एक प्रभावशाली इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजी बना सकते हैं, बल्कि अपने निवेश को अच्छी तरह मैनेज भी कर सकते हैं.