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करियर के शुरूआती दिनों से करें रिटायरमेंट प्लानिंग, सबसे कारगर योजना बनाने के लिए अपनाएं ये तरीका

रिटायरमेंट प्लानिंग 60 साल की आयु के बाद रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए लाइफ में पर्याप्त कैश फ्लो बना रहे उसके लिए है.

रिटायरमेंट प्लानिंग 60 साल की आयु के बाद रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए लाइफ में पर्याप्त कैश फ्लो बना रहे उसके लिए है.

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FE Hindi Desk
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रिटायरमेंट के बाद मनमुताबिक लाइफ स्टाइल के साथ जीवन जीने के लिए रिटायरमेंट प्लानिंग पर्याप्त रिटर्न मुहैया कराता है.

वित्तीय लिहाज से देखें तो रिटायरमेंट प्लानिंग 60 साल की आयु के बाद रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए लाइफ में पर्याप्त कैश फ्लो बनाए रखने के लिए है. रिटायरमेंट के बाद मनमुताबिक लाइफ स्टाइल के साथ जीवन जीने के लिए रिटायरमेंट प्लानिंग पर्याप्त रिटर्न मुहैया कराता है. साथ ही, ये भी सुनिश्चित कर लें कि आपके रिटायरमेंट प्लानिंग के साथ इंश्योरेंस कवर भी है. दरअसल इस कवर से इंसान को किसी भी तरह के खर्च के लिए वित्तीय समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. उम्र से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों या मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में इंश्योरेंस कवर काम आ सकता है.

बेहतर हेल्थकेयर और न्यूट्रीशन से बढ़ती है लाइफ एक्सपेक्टेंसी

इंसान की लाइफ में ये एक अहम पड़ाव है पैरेंट्स और बच्चों के प्रति सभी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए रिटायरमेंट की आयु तक पहुंचने का प्रयास किया जाना चाहिए. ऐसा करने से ये सुनिश्चित होगा कि इंसान न केवल अपनी भलाई बल्कि रिटायरमेंट के बाद होने वाले खर्चों के लिए ही जिम्मेदार होगा. बेहतरीन हेल्थकेयर की सुविधा और अच्छा न्यूट्रीशन से लाइफ एक्सपेक्टेंसी को सुधार देखने को मिलती है. मसलन हेल्थकेयर और न्यूट्रीशन बढ़िया होने से रिटायरमेंट के बाद जीवन जीने के सालों की संख्या में वृद्धि होती है नतीजन बढ़ती उम्र के साथ रोजमर्रा की जरूरतों पर आने वाला खर्च भी बढ़ जाता है. हर साल 4 फीसदी रिटायरमेंट कॉर्पस से खर्च करने का नियम ऐतिहासिक रुप से अब सही नहीं है.

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इसलिए यह अनिवार्य है कि कंपाउंडिंग की शक्ति का लाभ उठाने के लिए इंसान को अपने करियर की शुरुआत में ही रिटायरमेंट प्लानिंग के तहत पर्याप्त फंड जुटाने के लिए इंतजान करना शुरू कर देना चाहिए. मान के चलिए कि एक इंसान की लाइफस्टाइल उसकी कमाई पर निर्भर करती है. बेहतर और खुशहाल जीवन जीने के लिए इंशान को करियर के शुरूआती दिनों से ही मंथली इनकम के करीब 15 फीसदी हिस्से को रिटायरमेंट प्लानिंग यानी कॉर्पस के लिए अलग से बचा के रखना चाहिए.

महामारी ने बढ़ाई सीनियर सिटिजन हाउसिंग की डिमांड

महामारी ने उजागर किया कि अपने दम पर और "स्वतंत्र जीवन" जीने वाले सीनियर सिटिजन वास्तव में लगभग हर एक दैनिक गतिविधि के लिए बाहरी संसाधनों पर निर्भर थे. औसत मध्यवर्गीय या उच्च मध्यवर्गीय घर में इतने सारे लोग हैं जो जीवन को आरामदायक बनाने वाली सेवाएं देते हैं. चाहे हाउसकीपिंग, खाना बनाना, खरीदारी, सुरक्षा, बागवानी और यहां तक कि कचरा हटाना भी हो, भारतीय परिवार हमेशा किसी और पर भरोसा करने में सक्षम रहे हैं कि वे उनके लिए इन गतिविधियों को एक कीमत पर करें.

किसी भी समय ये सर्विस प्रोवाइडर वास्तविक या अन्य कारणों से नहीं आते हैं, तो सीनियर सिटिजन के लिए किसी और सर्विस प्रोवाइडर को खोजने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. महामारी विभिन्न शहरों और दूर देशों में रहने वाले सीनियर सिटिजन और उनके बच्चों के लिए एक बहुत ही भद्दी चेतावनी थी. नतीजन सीनियर लिविंग कम्युनिटीज में घरों की मांग में डिमांड बढ़ गई.

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सीनियर लिविंग कम्युनिटीज में जाने के लिए तैयार संभावित निवासियों की एक प्रतीक्षा सूची है जो किराए पर घर लेना चाहते हैं या अपना घर बेचकर दूसरा घर खरीदना चाहते हैं. ये ग्राहक उम्र में बड़े होते हैं, उन्हें तत्काल जरूरत होती है और किसी नए प्रोजेक्ट के तैयार होने की प्रतीक्षा ज्यादा लंबे समय तक नहीं करना चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर, नई लॉन्च की गई प्रोजेक्ट के ग्राहक युवा हो गए हैं, क्योंकि पचास के दशक में इंसान सीनियर लिविंग कम्युनिटीज को भविष्य की सभी जरूरतों के लिए एक समाधान के रूप में देखते हैं.

इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि बच्चे और उनके पैरेंट्स दोनों एक साथ नहीं रह रहे हैं, अब वे दोनों काफी खुले विचारों वाले हैं और सक्रिय रूप से सीनियर लिविंग कम्युनिटीज को एक पूर्ण और चिंता मुक्त जीवन जीने में सक्षम होने के लिए सीनियर सिटिजन पसंदीदा विकल्प के रूप में देख रहे हैं. सीनियर लिविंग कम्युनिटीज में, निवासी अपने हितों और जुनून के लिए खुद को समर्पित करते हुए दैनिक कार्यों की सभी चिंताओं को सर्विस प्रोवाइडर पर छोड़ सकते हैं.

(Article By Mohit Nirula, CEO, Columbia Pacific Communities)

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