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इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट समझने में हो रही परेशानी! एक्सपर्ट टिप्स की मदद से चेक करें डिटेल, क्लेम के वक्त नहीं होगी दिक्कत

पॉलिसीधारकों की सहूलियत के लिए यहां एक्सपर्ट ने बेहद आसान तरीकों के बारे में बताएं हैं. इन टिप्स की मदद से आप भी इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट्स को समझ सकते हैं.

पॉलिसीधारकों की सहूलियत के लिए यहां एक्सपर्ट ने बेहद आसान तरीकों के बारे में बताएं हैं. इन टिप्स की मदद से आप भी इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट्स को समझ सकते हैं.

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FE Hindi Desk
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to understand insurance policy documents

इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट में इन 8 प्वॉइंट को गौर से चेक करें. (फोटो एक्सप्रेस ड्राइव)

Easy way to Understand insurance Policy Documents: इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट्स जटिल कानूनी शब्दावली (legal terminology) से भरे होते हैं जिनसे अक्सर बेखबर होकर पॉलिसीहोल्डर नरअंदाज कर देते हैं. हालांकि पॉलिसीहोल्डर के लिए इंश्योरेंस प्लान के डाक्यूमेंट्स- 'फाइन प्रिंट' को समझना जरूरी है. बीमा कंपनी द्वारा जारी "फाइन प्रिंट" में इंश्योरेंस प्लान के सभी खासियतों और सीमाओं का ब्योरा होता है. इन जरुरी जानकारियों को नज़रअंदाज़ करने से आपके क्लेम अस्वीकार हो सकते हैं और जरूरत के वक्त वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा सकता हैं.अगर आपको इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट्स की जानकारी रहेगी, बीमा के कवरेज के लिए क्लेम कर सकेंगे.

इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट पर दर्ज अक्षरों का महत्व कानूनी और संविदात्मक प्रकृति पर आधारित है. अनिवार्य रूप से यह बीमा कंपनी और पॉलिसीहोल्डर के बीच एक तरह के एग्रीमेंट से जुड़ा होता है, जो स्पष्ट अपेक्षाएं स्थापित करता है और कवरेज की सीमा को चित्रित करता है. अगर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं जो प्रारंभिक अपेक्षाओं को पूरा नहीं करती हैं, तो पॉलिसीहोल्डर के पास बीमाकंपनी से स्पष्टीकरण मांगने का विशेषाधिकार होता है. इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट के जटिल कानूनी डिटेल को समझने और व्यक्तिगत जरूरतों के लिए इसकी उपयुक्तता का आकलन करने में नियम और शर्तें अहम है. यह संपूर्ण जांच न केवल पर्याप्त कवरेज की गारंटी देती है बल्कि संभावित बहिष्करणों के बारे में जागरूकता भी बढ़ाती है. इस ज्ञान से लैस, पॉलिसीहोल्डर अपने बीमा विकल्पों के संबंध में सही फैसले ले सकते हैं, और ऐसा करके वे अपने वित्तीय हितों को सुरक्षित कर सकते हैं.

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कहा जाता है कि प्रस्ताव प्रपत्र किसी भी विवाद के मामले में संदर्भित करने के लिए दस्तावेज है और इसलिए ओटीपी पर हस्ताक्षर करने या साझा करने से पहले सुनिश्चित करें कि जो कुछ भी उल्लेख किया गया है वह आपकी जानकारी के लिए सर्वोत्तम है. इसके निहितार्थों को पूरी तरह से समझने के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट्स की बारीकियों की समीक्षा करते वक्त इन बातों को जरूर चेक कर लें.

किसी इंश्योरेंस पॉलिसी पर हस्ताक्षर करने के बाद पॉलिसीहोल्डर पर प्रभावी ढंग से प्लान के नियम और शर्तें लागू होते हैं. ऐसे में जरूरी है कि इंश्योरेंस पॉलिसी पर अपनी सहमति देते वक्त भी प्लान के नियमों और शर्तों के बारे में अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. पॉलिसीधारकों की सहूलियत के लिए यहां एक्सपर्ट ने बेहद आसान तरीकें बताएं हैं. इन टिप्स की मदद से इंश्योरेंस पॉलिसी डाक्यूमेंट्स के बारे में समझ सकते हैं.

पॉलिसी डाक्यूमेंट में इन अहम बातों को करें चेक

चेक करें पॉलिसी की लिक्विडिटी

कुछ इश्योरेंस पॉलिसी पर लॉक-इन पीरियड लागू होते हैं. लॉक-इन पीरियड से मतलब है कि इस अवधि के पूरा हो जाने तक पॉ़लिसीहोल्डर इंश्योरेंस प्लान से पैसा नहीं निकाल सकते हैं. लॉक-इन पीरियड के भीतर पॉ़लिसी सरेंडर करने पर जुर्माना देना पड़ता है. मिसाल के तौर यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान पर 5 साल की लॉक-इन पीरियड लागू होती है. अगर कोई पॉ़लिसीहोल्डर यूलिप प्लान (यूलिप-ULIP) को 4 साल के भीतर समय से पहले सरेंडर करता है तो ऐसे में समाप्ति शुल्क लगाया जाता है. इसलिए इश्योरेंस पॉलिसी खरीदने से पहले उस प्लान की लिक्विडिटी की शर्तों को समझना काफी अहम होता है.

पॉलिसी की वेटिंग पीरियड समझें

हेल्थ या गंभीर बीमारी से जुड़ी पॉलिसी आमतौर पर कवर की गई बीमारियों के क्लेम को सक्रिय करने से पहले वेटिंग पीरियड लगाती हैं. हर बीमा कंपनी के प्लान के आधार पर अपने अलग-अलग वेटिंग पीरियड होते हैं. ऐसे में पॉलिसी खरीदते वक्त समझदारी दिखाते हुए कम वेटिंग पीरियड वाले प्‍लान को खरीदना चाहिए. अगर आपको लगता है कि किसी विशेष बीमारी के लिए वेटिंग पीरियड अवधि बहुत लंबी है, तो थोड़ा अधिक पैसे खर्च करके भी कम वेटिंग पीरियड वाले प्लान को वरीयती दे सकते हैं. इंश्‍योरेंस प्‍लान खरीदते वक्त ही वेटिंग पीरियड पर ध्यान देना चाहिए. इसके लिए कई बीमा कंपनियों के प्‍लान की तुलना करके फैसला लेना चाहिए.

बोनस की गारंटी है या नहीं, चेक करें

पॉलिसियों में पे-ऑउट बोनस की गारंटी नहीं है; उनका जारी होना बीमा कंपनी के विवेक और फायदे के डील पर निर्भर करता है.

दावे के शर्तों को जांच लें

पॉलिसी शुरू होने के पहले दो साल के भीतर बीमा कंपनी गलत विवरण या गैर-प्रकटीकरण के कारण दावे अस्वीकार कर सकता हैं. हालांकि, उसके बाद 1938 बीमा अधिनियम की धारा 45 के तहत पॉलिसी शुरू होने के तीन साल की अवधि के बाद बीमा कंपनी किसी दावे को अस्वीकार नहीं कर सकती, भले ही पॉलिसीहोल्डर द्वारा कोई गलत बयान दिया गया हो या खुलासा न किया गया हो.

कवरेज की शर्तों को चेक कर लें

पॉलिसी कुछ परिस्थितियों में कवरेज को बाहर कर सकती हैं, भले ही वे कवर किए गए प्रतीत होते हों. पॉलिसी गंभीर बीमारी, मृत्यु और विकलांगता जैसी स्थिति में कवरेज को शामिल कर सकती है लेकिन मादक द्रव्यों के दुरुपयोग से उत्पन्न मामलों में कवरेज को बाहर रखा जा सकता है.

प्रीमियम भुगतान की शर्तों को समझें

लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसियों में रेगुलर या लिमिटेड प्रीमियम भुगतान शामिल हो सकते हैं, जबकि जनरल इंश्योरेंस के मामले में पॉलिसीहोल्डर के पास 2 से 5 साल में एक ही बार प्रीमियम भुगतान का विकल्प हो सकता है.

हेल्थ इंश्योरेंस प्लान के इस फायदे को समझें

यदि आपने अपना हेल्थ इंश्योरेंस ट्रांसफर कर दिया है, तो सुनिश्चित करें कि इसका आपके मौजूदा पॉलिसी में विधिवत उल्लेख किया गया है.

विकल्प के आधार पर पेंशन स्कीम के फायदे समझें

पॉलिसी को समझें और तय करें कि आप कैसे लाभ लेना चाहते हैं. पेंशन दर आपके चुने हुए विकल्प पर निर्भर करेगी- चाहे वह आजीवन पेंशन हो, खरीद मूल्य की वापसी के साथ पेंशन हो, या संयुक्त जीवन विकल्प हो.

(Article by Shilpa Arora, Co-Founder and COO, Insurance Samadhan. Views expressed are personal )

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